1.      उत्तम गुणवत्ता युक्त बीज का उत्पादन एवं वितरण

  • उत्तम गुणवत्ता युक्त बीज के उत्पादन एवं वितरण ने इस संस्थान को ख्याति अर्जित करने में योगदान दिया है। पूसा बीज गुणवत्ता का प्रतीक बन गया है।
  • इस स्टेशन पर 100 से भी अघिक प्रजातियों के 33 विभिन्न प्रक्षेत्र एवं सब्जी की फसलों के केन्द्रीय, प्रजनक एवं लेबल (पूसा बीज) बीजों का उत्पादन हुआ । कड़े नियमों के पालन द्वारा उच्च गुणवत्ता युक्त बीज प्राप्त हुये है। 2003 से 2012 में कुल 3758.10 टन बीज का उत्पादन हुआ है। इसमें 1124.71 टन विभिन्न फसलों के प्रजनक बीज, 33.38 टन प्रक्षेत्र एवं सब्जी फसलों का केन्द्रीय बीज एवं विभिन्न फसलों जैसे अनाज, दलहन, तिलहन, चारा और सब्जियों की प्रजातियों के कुल 2600.01 टन पूसा बीज तैयार किया गया था।

 

 

 

 

 

 

  • ग्रो आऊट टैस्टः केन्द्रीय, प्रजनक और लेबल बीज का ग्रो आऊट टैस्ट बीज की गुणवत्ता और सुधार के लिये एक आन्तरिक निगरानी एवं गुणवत्ता निंयत्रण के उपाय के रूप में हर साल आयोजित किया जाता है ।

     

 

 

 

 

 

 

2.      रखरखाव प्रजनन प्रक्रिया में शोधन

  • केन्द्रीय बीज उत्पादन प्रक्रिया को गेहूं, चावल आदि की तरह स्वपरागित फसलों में संशोधित किया गया था ताकि उच्च स्तर की अनुवांशिकी शुद्धता प्राप्त की जा सके। अन्य किस्मों में अनुवांशिक संक्रमण से बचने के लिये एक ही किस्म की पुष्पगुच्छ/बाली पंक्तियों को उसी किस्म के प्रजनक बीज कें फसल से घिरा होता है।
  • बासमती चावल की किस्मों में पुष्पगुच्छ वंशज की क्षेत्र स्क्रीनिंग को खाना पकाने के परीक्षण के साथ संभवित किया गया था। इस कारणवश राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बासमती की प्रजातियां पी बी 1 और पी बी 1121 की स्वीकार्यता बढ़ गई है।

  • म्प्रूवड पी बी 1 (पूसा 1460) में मार्कर की सहायता से रखरखाव प्रजनन की शुरूआत अनुवांशिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के सहयोग से इसमें बी एल बी रोधक जीन Xa13 और Xa 21 की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए की गयी।

 

 

3.      किस्मों के विकास में सहयोग

धान

पूसा बासमती 1121, इम्प्रूवड पी बी 1, पी बी 6, पूसा पंजाब बासमती 1509

गेहूं

एच डी 2687, एच डी 2733, एच डी 2824, एच डी 2894, एच डी 2932
एच डी 2967, एच डी 2985, एच डी 2987, एच डी 3043, एच डी 3059
एच एस 375,  एच एस 420, एच एस 490 (पूसा बेकर), एच एस 507

जों

बी एच एस 352, बी एच एस 380

मूंग

पूसा 0672

सरसों

पूसा मस्टर्ड 21, पी एम 24, पी एम 25, पी एम 26 एवं पी एम 28

सब्जी फसलें

गाजर (पूसा वसुदा), खीरा (पूसा बरखा), प्याज (पूसा रीधी), फाबा बीन (पूसा उदित) की संकर/प्रजातियाँ    

 

4.      बीज उत्पादन में किसानों की भागीदारी
        भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अन्तर्गत महाबीज परियोजना रबी 2006-07 में शुरू की गई थी। इस परियोजना की तहत स्टेशन पर बीज की उप्लब्धता दो गुणा से ज्यादा हो गयी। कृषक सहभागीता द्वारा बीज उत्पादन कार्यक्रम के अन्तर्गत किसानों के खेतों पर बीज उत्पादन क्षेत्र ने उत्तम बीज उत्पादन तकनीकों के प्रदर्शन का कार्य किया ताकि किसान द्वारा उत्पादित बीज की गुणवत्ता में वृद्धि हो सके।

 

 

 

 

 

 

 

5.      गेहूं की अग्रिम प्रजनक पंक्तियों के अनेक स्थान पर परीक्षण में भागीदारी परीक्षण
        प्रत्येक वर्ष 3-4 उभयनिष्ट प्रजाति परीक्षण (कोमन वैरायिटल ट्रायल) किया गया। इस ट्रायल में प्रदर्शन के आधार पर अच्छी लाईनों को समन्वित परीक्षण में प्रविष्ठित किया गया।

6.      पूसा आर एच 10 का व्यवसायीकरण
        भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने आई एफ एस एस ए और अनेक राष्ट्रीय एवं बहूराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ एम ओ यू हस्ताक्षर किया है ताकि विश्व का पहला अति विशिष्ठ, लम्बा, खुशबूदार संकर चावल का व्यवसायीकरण कर सके। संस्थान ने 2007-08 और 2008-09 में एक करोड़ से ज्यादा की रायल्टी प्रजनक बीज द्वारा एकत्रित की थी। इस स्टेशन से चावल संकर पूसा आर एच 10 के पैतृक लाईन के प्रजनक बीज की आई एफ एस एस ए और विभिन्न राष्ट्रीय और बहू राष्ट्रीय कम्पनियों में आपूर्ति की गई।

7.     डी यू एस परीक्षण

  • डी यू एस परीक्षण केन्द (चावल), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन, करनाल ने पौधा, प्रजाति और कृषक अधिकार संरक्षण का आधिकरण के दिशा निर्देशों के अनुसार चावल की 441 आर सी वी एस (किस्मों के सन्दर्भ संग्रह) का विशिष्टीकरण कार्य किया।
  • चावल की तीन दावेदार प्रजतियों का डी यू एस परीक्षण और दो कृषक प्रजातियों का जी ओ टी खरीफ 2012 में कार्यान्वित हुआ।

 

 

8.     अनुसंधान की उपलब्धियाँ
विभिन्न फसलों के बीज उत्पादन में सस्य आवश्यकताओं पर अध्ययन

  • धान की पूसा बासमती 1121 प्रजाति की 25 जून से 30 जुलाई तक देरी से रोपण करने पर इसके पूष्पन समय में कमी हुई।
  • 15-30 दिनों की धान पूसा बासमती 1 और पूसा सुगन्ध 3, 4 की रोपाई के बाद खेतों में पानी खड़ा रखने पर 20-23 प्रतिशत खेती के लिए उपयोग होने वाले पानी की बचत संभव है। इससे धान के बीजों के उत्पादन व सुगन्ध पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ा।
  • धान की पूसा सुगंध-4 में बीज का भार/पुष्प गुच्छ और बीज उपज में 23 जुलाई और 30 जुलाई की रोपाई करने पर 25 जून की तुलना में क्रमशः 29.7 और 59.4 प्रतिशत तक की सार्थक कमी पाई गई।
  • पी बी-1 और पी एस-4 की बीज उपज जैविक उपचारों और संस्तुत उर्वरक प्रयोग के बीच समान रही।
  • करनाल में अध्ययन के दोरान विभिन्न अन्तरालों में, पी आर एच 10 प्रजाति के माता (पूसा 6ए) और पिता (पी आर आर 78) में निकिंग 4-8 दिनों के अन्तराल पर उचित रही।
  • धान की पी बी 1 प्रजाति में 22 जून की रोपाई में 50 प्रतिशत पुष्पण में सबसे अधिक दिन दर्ज किये गये । 16 जुलाई, 24 जुलाई एवं 1 अगस्त की रोपाई करने पर उपज क्रमशः 19.2, 37.2, 47.01 प्रतिशत कम हो गई। 100 किलोग्राम नाईट्रोजन/है0 तक 20 x 15 सै. मी. अन्तराल रखने पर उपज सार्थतकतः बढ़ गई।
  • एस आर आई तकनीक से धान की खरपतवार मुक्त तथा स्वस्थ नर्सरी प्राप्त हुई। इसमें पुराने गनी बैग का प्रयोग करने से कम श्रम, ज्यादा पौध वृद्धि एवं कम से कम खरपतवार स्पर्धा मिली।
  • एफ वाई एम @10 टन/है0 (एस आर आई तथा परम्परागत, दोनों के लिये) हरी खाद, आरगैनिक खाद, सिफारिशी खाद से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा परन्तु खुशबूदार धान 4 साल के एवं उर्वक की संस्तुत दर का प्रयोग करने पर बीज उपज सांख्यिकी रूप से एक समान थी। यह संकेत करता है कि सुंगधित धान की तुलनात्मक उपज कारबोनिक खाद के उपचार से 4 वर्ष बाद भी प्राप्त की जा सकती है।
  • एस आर आई एवं परम्परागत विधि की तुलना में पी आर एच 10 की सीधी बुवाई करने पर पूष्पन क्रमशः 11 एवं 21 दिन पहले हुआ। सीधे बुवाई की गई धान एवं एस आर आई की बीज उपज परम्परागत विधि से क्रमशः 29.5 और 17.6 प्रतिशत अधिक थी।
  • पूसा 1460 में खुशबूदार बीज का उत्पादन 22 जून की रोपाई की तुलना में 16 जुलाई  से 1 अगस्त  की देरी से करने पर 24 से 47 प्रतिशत कम हुआ।
  • 100 किलोग्राम नत्रजन/है0 तक प्रयोग करने पर बीज उपज में निंयत्रण की तुलना में 44.9 प्रतिशत वृद्धि हुई। 20 x 15 सै. मी. अन्तराल पर 30 x 15 सै. मी. अन्तराल की तुलना में बीज उपज सार्थकतः अधिक थी जबकि यह 15 x 15 सै. मी. और 25 x 15 सै. मी. पर एक समान थी।
  • पी आर एच 10, पूसा बासमती 1121 एवं इम्परूवड पूसा बासमती 1 में एफ वाई एम, हरी खाद एवं रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने पर हरी खाद एवं संस्तुत उर्वरको की तुलना में 19.6 एवं 23.6 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त हुई। इम्परूवड पूसा बासमती 1 एवं पी आर एच 10 की अपेक्षा पूसा बासमती 1121 एस आर आई विधि में अधिक उपयोगी है। 
  • बरसीम बीज उत्पादन तकनीक में विभिन्न बुवाई तिथियों की फसल के एक से तीन बार कटाई करने पर फसलों को बीज उत्पादन के लिए छोड़ने से पहले सांख्यिकी रूप से अधिक बीज उपज प्राप्त हुई।  4-5 बार कटाई करने पर बीज उपज सार्थकतः कम हो जाती है।
  • बरसीम बीज उत्पादन तकनीक में 25 अक्तूबर की बुआई की तुलना में 15-25 नवम्बर पर उगाने पर हरे चारे की उपज में 38.4 और 59.1 प्रतिशत की कमी पाई गई।
  • शाकनाशी  कलोडिनाफॉपप्रोपारजिल 15 डबलू बी (टोपिक) और अलग अलग मात्रा में कलोडिनाफॉप मैटसल्फयूरोन @ 45+3 ग्राम, 54+3.6 ग्राम और 60+4 ग्राम से फैलेरिसमायनर की घनत्व को अनओपचारित एवं मैटसल्फयूरोन डब्लू बी की तुलना में सार्थकतः कम करता है।
  • रोपाई के तीन दिन बाद पायराजोसल्फयूरोन @  25 ग्राम/है0 : इसके बाद क्लोमाजोन, 2,4-डी एवं फिनाक्साप्रोप एफ बी, 2,4-डी से खरपतवार का शुष्क भार कम प्राप्त हुआ और ब्यूटाक्लोर एवं अनउपचार की तुलना में उच्च खरपतवार निंयत्रण दक्षता प्राप्त हुई।
  • शाकनाशियों में साइक्लोफोपब्यूटाईल + मैटस्लफयूरान मिथाईल, ब्यूटाकलोर+मैटस्लफयूरोन @ 80+4 ग्राम, 1500+4 ग्राम से मिश्रित खरपतवार की जनसंख्या सार्थकतः कम हुई। क्लोडिना फॉपप्रोपारजिल 15 डब्लू पी का चौड़े पत्ते वाली खरपतवार पर कोई असर नहीं हुआ। परन्तु मैटसल्फयूरोन मिथाईल 20 डब्लू पी @ 6 ग्राम से चौड़े पत्ते वाली खरपतवार की प्रभावी रूप से रोकथाम हुई।
  • गेहूं की प्रजाति एच डी 2851 में पंचकव्य के दो छिड़काव 30 व 60 दिन की बुआई के बाद से पैदावार तथा बीज उत्पादन मे बढ़वार पाई गई।
  • अकेले कारफेन्टराज़ोन के छिड़काव की तुलना में सल्फोसल्फयूरोन @ 25 ग्राम/है0 का छिड़काव रूमैक्समेरीटिम्स पर कम प्रभावी था एवं कोई असर नहीं हुआ। कारफेन्टराज़ोन@सलफोसलफरोन प्रीमिक्स फारमूलेशन (डब्ल डी जी और डब्लू पी) 45, 54, 90 ग्राम/है0 से गेहूं में अकेले कारफेन्टराजोन की तुलना में उच्च खरपतवार नियंत्रण प्राप्त हुआ। कारफेन्टराज़ोन+ सल्फोसल्फरोन  @ 45, 54/है0 डब्लूडी जी और डब्लू पी के छिड़काव से क्रमशः 30.9, 34,7 व 34.7 और 31.2 प्रतिशत अधिक बीज उत्पादन हुआ।
  • कारफेन्टराज़ोन 20 ग्राम/है0 और मैटसलफरान 4 ग्राम/है0 से क्रमशः 83.7 और 84.1 प्रतिशत तक चौड़े पत्ते वाले खरपतवार का नियंत्रण हुआ तथा गेहूं पर छिड़काव करने पर अन्य उपचारों की अपेक्षा बीज उपज भी बढ़ी।

 

 

प्रजनक बीज फसलों में समन्वित नाशी बीज प्रबंधन

  • फंफूद नाशक (थाईरम, कैपटान, कारबोक्सिन) तथा जैव नियंत्रक फंफूद (ट्राइकोडरमाहरजीएनम, ट्राइकोडरमा विरडी तथा सूडोमोनासफलोरीसेंस) के द्वारा चने में अधिक बीज अंकुरण हुआ तथा ग्लानि रोग में कमी आई।
  • धान की इन्ब्रैड लाईनस (आई आर 58025ए और आई आर 58025 बी) के बीज को निंयत्रित वातावरण (तापमान 200 सी व 40 प्रतिशत आर्दता) में भण्डारित करने पर उसकी बीज अंकुरण क्षमता साधारण भण्डारण (24 महीनों) की तुलना में 60 महीने तक एम एस सी एस 80 प्रतिशत से अधिक पाई गई।
  • विभिन्न फसलों की प्रजातियों के प्रजनक बीजों को ब्लोटर तकनीक द्वारा स्वास्थ्य जानकारी के लिए मूल्यांकन किया गया। इनमें फफूंद संक्रमण लगभग 1-7 प्रतिशत था। सबसे अधिक फफूंद संक्रमण अलटरनेरियाअलटरनेटा, एस्परजिल्सफलेवस, राईजोप्सप्रजाति,क्लेडोस्पोरियमप्रजाति का था। कद्दू वर्गीय बीज में सबसे अधिक फफूंद संक्रमण था परन्तु टमाटर के बीज फफूंद संक्रमण से मुक्त थे।
  • धान के बीजों को गोबर के उपले से 30 मिनट और 60 मिनट के लिए धूम्र करने पर कार्बन डाईक्साईड के विपरीत अच्छा कवक निंयत्रण मिला।
  • लोबिया प्रजाति सी-152 में कापर आक्सीकलोराईड फफूंद नाशक के छिड़काव से 88 प्रतिशत डाईबैक रोग की रोकथाम प्राप्त की गई।
  • धान के 26 उपचारित बीजों में से 9 उपचारित बीज अंकुरण तथा खेत उद्भव दोनों को बढ़ाने में अनुपचारित से सार्थकतः बेहतर थे। सूखे बीज उपचार समान रूप से प्रभावी था और इससे लैब में अधिक बीज अंकुरण तथा ओज प्राप्त हुई तथा इनमें कम फफूंद प्राप्त हुई । भिगोने से अंकुरण पर कोई असर नहीं पड़ा परन्तु 12 घण्टे तक भिगोने से सभी उपचारों में खेत उद्भव के अच्छे परिणाम मिले।
  • धान की पूसा बासमती-1121 पर बैवीस्टीन 0.25 प्रतिशत के दो छिड़काव तथा एक बेवीस्टीन+ट्राईकोडर्माविरिडी का छिड़काव करने पर बकानी रोग को खेत में प्रभावी तरीके से रोका गया है।
  • धान की पूसा बासमती-1121 प्रजाति में एफ वाई एम +ट्राईकोडर्माविरिडी से उपचारित मृदा में बकानी रोग सबसे कम आंका गया और उसके पश्चात केवल ट्राईकोडर्माविरिडी से उपचारित मृदा में आंका गया । अनुपचारित बीजों की तुलना में बेवीस्टीन से उपचारित बीजों से तैयार नर्सरी में बकानी रोग कम फैला ।
  • गेहूं की एच डी-2687 पर टिल्ट या वीटावैक्स का पर्णीय छिड़काव करने पर करनाल बंट पर सबसे प्रभावशाली निंयत्रण हुआ।
  • धान में शीथ ब्लाइट रोग को नियंत्रित करने के लिए बीजों को कैप्टान 0.2 प्रतिशत +  स्ट्रेपटोसाईकलीन 100 पी पी एम से उपचारित करने पर अकेले स्ट्रीपटोसाईकलीन उपचार तथा कानटैफ 0.2 प्रतिशत के दो पर्णीय छिड़काव करने से ज्यादा अच्छे परिणाम प्राप्त हुये।
  • कोसाईड 2000 @ 262.5 ग्राम सक्रिय तत्व/है0, 350 ग्राम सक्रिय तत्व/है0, 437.5 ग्राम सक्रिय तत्व/है0 और ब्लाईटॉक्स 50 के प्रयोग से मिर्च के पौधों में श्यामवर्ण रोग को निंयत्रित करने में अत्यधिक प्रभावी पाये गये। इसके प्रयोग से पौधों व फल की उपज में वृद्धि हुई। इसका पौधों में पाद्प विशाक्त प्रभाव दिखाई नही दिया ।
  • बहुत सारे कीटनाशकों में से भिण्डी में जैसिड (ए.डिवासटस), को नियंत्रण करने के लियेथायोडाईकारब 75 डब्लू पी 75 ग्राम/है0, प्रोफिनीफोक्स 50 ई सी @ 1500 मि0 ली0/है0 और ईमामेकटिन बेन्जोयेट 5 एस जी 200 ग्राम/है0 अधिक लाभदायी है।
  • ए.डिवासटेंस की रोकथाम के लिये कीटनाशकों में से थायामिथोजैम @ 20 ग्राम/एकड़ सबसे अधिक प्रभावी था उसके बाद, कारबटैबहाईड्रो 4 जी @ 7.5 कि.ग्राम/एकड़ और इन्डोक्सा कार्ब 14.552 एस एल @ 200 मि0ली0/है0 प्रभावशाली थे है। भिण्डी का फल एवं तना भेदक इरियास प्रजाति के विरूद्ध प्ररोह अवस्था में स्पिनोसैड @ 25 ग्राम/एकड़ सबसे अधिक प्रभावशाली था उसके बाद इमामैक्टिन बेन्जोएट 5 एस जी @ 80 ग्राम/एकड़ प्रभावशाली था।
  • गेहूं के बीजों को छः महीनों तक कीड़ों से बचाने के लिए इकोनीम 300 पीपीएम @ 2.5, 50 मि0ली0 ईकोनीम 10000 पीपीएम @ 2.5 मि0ली0 एक किलोग्राम बीज इसके अतिरिक्त डैल्टामैथलीन@10 पीपीएम प्रभावशाली रूप से उपयोगी है। यह बीज गुणवत्ता को हानि नहीं पंहुचाता है।
  • बेधक के नियन्त्रण के लिये फलूबेडियामाइड 480 एस जी @ 125 ग्राम/एकड़ स्पिनोसैड 45 एस जी @ 137.5 ग्राम/एकड़, इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस जी @ 200 ग्राम/एकड़ एसिव मिपिड 20 एस जी @ 150 ग्राम/एकड़ बहुत प्रभावशाली पाये गये।
  • बैंगन के फल तथा प्ररोह बेधक लयूसीनोडसऔरबैनेलिस को रोकने के लिए स्पाईनोसैड @ 137.5 मि0ली0, फलूबैनडायामाईट 125 ग्राम, थायोडाईकार्ब 750 ग्राम, इमामेकटिन बैन्जोएट ग्राम तथा एसिटा मेप्रिड 150 ग्राम/है0 अधिक प्रभावशाली है।
  • बैंगन में जैसिड अमरासकाडिवास्टैंस को रोकने के लिए थायोडाइकार्ब @ 750 ग्राम, एसिटामिपिड @ 150 ग्राम औsर कार्बोसल्फान @1000 मि0ली0/है0 काफी प्रभावशाली है।
  • बैंगन में माहू एफिसगोसीपाई को रोकने के लिए थायोडाइकार्ब @ 750ग्राम, प्रोफेनाफास @1500 मि0ली0, एसिटामिपरिड @ 150 ग्राम ओर कार्बो सल्फान @ 1000 मि0ली0/है0 अधिक प्रभावशाली है।
  • दाल की बीटल सीमेक्यूलेटस, चने के बीजों में गाय के गोबर के उपले (सीडीसी) के धूएं को आधा घण्टा मिट्टी के बर्तन में 10 मिनट वैक्यूमिंग करने के बाद तथा धूएं को 12 घण्टे तक रखने पर 100 प्रतिशत मृत्यू दर देखी गई। सीडीसी के धूएं को 2 मिनट वैकयूमिंग तथा एक घण्टा धूएं के साथ रखने पर दाल की बीटल में 100 प्रतिशत मृत्यू संख्या पाई गई तथा एक घण्टे के उपचार के बाद भी बीज अंकुरण उत्पादकता तथा विद्युत चालकता पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा ।
  • धान के बीज को सीडीसी और 100 ग्राम नीम की पत्तियों से तैयार धूएं के साथ आधा घण्टे तक धान में विविल की जनसंख्या पर काबू पाया जा सकता है। धूएं के उपचार के 4 और 8 दिन बाद मृत्यू संख्या 88 प्रतिशत और 93 प्रतिशत है। एक घण्टे के उपचार के बाद भी बीज अंकुरण उत्पादकता तथा विद्युत चालकता पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा।

 

 

उच्च मूल्य बीज में बीज की गुणवत्ता का उन्ययन

  • करेले के बीज में इष्टतम तापमान (250 सै0) पर नियंत्रण की तुलना में सोलिड मैट्रिक्स प्राईमिंग द्वारा अंकुरण में 10 प्रतिशत की बढ़त हुई मगर सोलिड मैट्रिक्स प्राईमिंग तथा ओसमो प्राईमिंग दोनो से 150 सै0 तापमान पर अंकुरण में 35 प्रतिशत की बढ़त हुई।
  • भिण्डी के बीज में सोलिड मैट्रिक्स प्राईमिंग+ट्राईकोडरमा से उपचारित बीजों में नियंत्रण तथा अनुपचारित की तुलना में समान्तर अंकुरण व जल्दी उपगमन हुआ।
  • सब्जी के बीज अंकुरण मानकों के तुलनात्मक मूल्यांकन प्रदर्शित करते हैं कि निर्देशित आई एम एस सी एस के मानक सोलेनेसियस सब्जियों, कद्दूवर्गीय एवं जड़ वाली फसलों के विभिन्न  विकसित एवं विकासशील क्षेत्रों (यू एस ए को छोड़कर) में बराबर थे । बैंगन एवं टमाटर के सन्दर्भ में ये कम थे।
  • उपोष्णीय तापक्रम में ओसमो प्राईमिंग से शिमला मिर्च में एक साथ अंकुरण व सोलिड मैट्रिक्स प्राईमिंग से भिण्डी ए 4 मे बीज अंकुरण में सुधार पाया गया।
  • खरबूजा, करेला और तोरई मे पहले से अंकुरित बीजों की रूपाई करने पर अधिक लम्बाई भार, एवं शुष्क भार बुवाई के 25 दिनों के बाद की कटाई के बाद अधिक पाया गया।
  • गैंदे की पूसा नांरगी प्रजाति में फूल तोड़ने की संख्या से बीज उपज एवं फूल गुणवत्ता पर काफी प्रभाव पड़ा । सबसे अधिक 49.27 कि0/है0 फूल उपज तीन बार तुड़ाई करने पर चार बार प्राप्त हुई। दो बार तोड़ने पर उससे कुछ कम उसके बाद उपज घट गई । ज्यादा तुड़ाई करने पर परीक्षण भार घटता है । कोई भी तुड़ाई न करने पर सर्वाधिक बीज भार मिला।
  • गाजर मे ओज परीक्षण का पौध उद्भव को जानने के लिये मूल्यांकन किया गया। खेत में पौध उद्भव 33.2 से 56.5 प्रतिशत तक पाया गया। गाजर के बीज लोट का खेत में प्रतिशत पौध अंकुरण, मानक अंकुरण, गैर मानक तापक्रम पर अंकुरण एवं सोडियम कलोराईड द्वारा संतृप्त लवण त्वरित परिपक्वण पर अंकुरण से सकारात्मक एवं सार्थकतः से सह-संबंधित थे ।

 

गुणवत्ता बीज की उच्च वसूली के लिए फसल कटाई के बाद मापदण्डों का मानकीकरण

  • स्टेशन पर विभिन्न प्रकार की फसलों की किस्मों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए आधुनिक बहुचरणीय बींज प्रसंस्करण का प्रयोग कर 99.9 प्रतिशत भौतिक तुलना प्राप्त की गई।
  • अरहर के लिये स्ट्रिपिंग एवं गहाई के लिये एक यन्+त्र विकसित किया गया । परिवर्तित ओलपैड धान थ्रैशर से स्ट्रीपिंग की गई तथा छिन्न फलियों को दलहन थ्रेसर से गहाई मडाई उपयुक्त मानको पर की गई।

 

  • पडलिंग विधि का प्रदर्शन तथा मूल्यांकनः उच्चतम पडलिंग सूचकांक धान फसल की खेती में रोलर और डिस्क हेरो पल्वराईजिंग द्वारा रोटावेटर के पष्चात किया गया था। पौध की लम्बाई, जड़वज़न और पौध के वजन के उच्चतम मूल्यों को रोटावेटर पडल क्षेत्र में पाया गया।

 

कृषक सहभागिता द्वारा बीज उत्पादन एवं प्रदर्शन से भारतीयकृषिअनुसंधानसंस्थानद्वाराविकसितकिस्मोंकोलोकप्रियकरना
विभिन्न फसलों जैसे धान, गेहूं, मूंग, मटर, बरसीम, चना का कृषक सहभागिता के द्वारा बीज उत्पादन एवं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित तकनीको का प्रदर्शन किया गया। बीज विस्थापन अनुपात में वृद्धि के लिये किसानों को अपने खेत में गुणवत्ता युक्त बीज पैदा करने के लिये विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।