गेहूं की दो किस्में (एच डी 2894 तथा एच डी 4713, पूसा बैकर (एच एस 490), मालवा क्रान्ति (एच आई 8638); चावल की एक किस्म (पूसा बासमती 6); चना की एक किस्म (बी जे 2024); मसूर की एक किस्म (एल 4596); अरहर की एक किस्म (पूसा 2002); सरसों की 5 किस्में {एन पी जे 93, एल ई टी 17, एल ई एस 1-27 (पूसा मस्टर्ड 21) तथा एल ई टी 18 (पूसा मस्टर्ड 24), पूसा तारक}; तथा गाजर की दो किस्में नामत: पूसा रूधिरा और पूसा आसिता संस्थान द्वारा विकसित की गई।
बाजरा का एक संकुल पूसा 443, करेले का सफेद फल वाला आशाजनक चयन डी बी टी जी 1, गांठ गोभी की एक किस्म पूसा विराट तथा गाजर की एक किस्म पूसा नयन ज्योति जारी किए जाने के लिए पहचानी गई।
चावल के तीन जीन प्ररूप, पूसा 1484-03-1-3-2-1 (पूसा 1302/हरियाणा सुगंध की संतति, लंबे दाने वाली; 11.0 मि.मी.), पूसा 1484-03-1-3-2-2 (लंबा दाना; 10.5 मि.मी.) तथा पूसा 1554-06-6 (शाहपसंद/पूसा1121, लंबा दाना; 10.5 मि.मी.) विकसित किए गए हैं जिनके दाने की लंबाई अन्य लोकप्रिय बासमती चावल की किस्मों से अधिक होती है और उपज उनके बराबर होती है।
चावल का एक नया उन्नत झुलसा प्रतिरोधी बासमती जीन प्ररूप पूसा 1526-04-25 विकसित किया गया है। पूसा 121xआई आर बी बी 60 के संकर से एम ए एस का उपयोग करते हुए एक वंशक्रम विकसित किया गया है इसमें सभी चार जीन (एक्स ए 4, एक्स ए 5, एक्स ए 13 एवं एक्स ए 21) विषमयुग्मजी अवस्था में होते हैं। इसके पौधे की लंबाई पूसा 1121 की तुलना में कम होती है तथा उपज व गुणवत्ता श्रेष्ठ होते हैं।
संस्थान के इंदौर स्थित केन्द्र द्वारा विकसित सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध डयूरम गेहूं की एक किस्म एच आई-8671, पंजीकरण हेतु प्रस्तावित की गई है।
भा.कृ.अ.सं. द्वारा अनुरक्षित 34 जननद्रव्य वंशक्रम यू जी 99 रोगजनक (जो गेहूं का सर्वाधिक खतरनाक तना रतुआ प्रजाति है) के प्रतिरोधी पाए गए। ऐसा अफ्रीका परीक्षण सुविधा में देखा गया और यह भारतीय गेहूं वंशक्रमों की प्रजाति के प्रतिरोध के संसाधन का अत्याधिक उत्साहवर्धक लक्षण है।
एल आर 48 और एल आर 24, एल आर 48 एवं एल आर 28 को एक साथ लाकर पी बी डब्ल्यू 343 किस्म की पृष्ठभूमि में पहली बार पत्ती रतुआ के पौद में प्रतिरोधी जीन से युक्त वयस्क पादप प्रतिरोध की पिरामिडिंग की गई।
पहली बार करेले के उभयलिंगी संकर, डी बी जी वाई-201½ प्रिया, डी बी जी वाई-201½ डी वी बी टी जी 5-5 और डी बी वाई जी -201 पूसा दो मौसमी विकसित किए गए तथा इन्हें अत्यधिक आशाजनक पाया गया।
शिमला मिर्च की किस्म कैलीफोर्निया वंडर के बीज को ऑस्मोटिकम लवण तथा जल के साथ प्राइम करके भली प्रकार तैयार की गई नर्सरियों में बोया गया। परिणामों से यह सुझाव मिला कि शिमला मिर्च के बीजों के अंकुरण व उनकी पुष्टता को सुधारने के लिए ठोस मैट्रिक्स प्राइमिंग का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
परवल की निधानी आयु और गुणवत्ता बढाने के लिए कटाई उपरांत पैकेजिंग, आम में विसंक्रमण और अरहर की दाल से भुने हुए उत्पाद बनाने की क्रियाविधियां विकसित की गईं।
100 वर्गमीटर (20x5)के पॉलीहाउस में टमाटर के संकर पूसा हाइब्रिड 4 से 3.4 कि.ग्रा. बीज उपज प्राप्त करने के लिए एक संपूर्ण सस्यविज्ञानी पैकेज विकसित किया गया जिसकी लागत लगभग 50,000 रूपये आती है।
संस्थान ने भारत में पहली बार किन्नो संतरे (लुधियाना) में हरीतिमा कारक जीवणु (कैन्डीडेटस लाइबेरीबैक्टर एसीएटिकस) के राइबोसोमी डी एन ए के 16एस (1417 बी पी), 23 एस (247 बी पी) और 16 एस-23 एस अंतरआनुवंशिक स्पेसर क्षेत्र (620 बी पी) का क्रमण किया है। इस क्रमण में अन्य देशों द्वारा किए गए क्रमण की तुलना में उक्त जीवाणु के संबंध क्षेत्र में सर्वाधिक समानता देखी गई।
जीन साइलेंसिंग कार्यनीतियों पर आधारित आर एन ए आई का उपयोग करते हुए टमाटर के पत्ती मोड़क रोग के प्रतिरोधी पराजीनों का विकास किया गया है। विषाणु के ट्रंकेटेड रिपलीकेस जीन से प्राप्त प्रभावी कंसट्रेक्ट को मैसर्स बैजो शीतल लिमिटेड, जालना को हस्तांतरित किया गया।
नाइट्रिक ऑक्साइड के स्त्रोत के रूप में नाइट्रो-प्रूसाइड (एस एन पी) तथा 2,2½ (हाइड्रोक्सीनाइट्रोसोहाइड्राजिनों)- बाइसेथानेमाइन दोनों से युक्त घोल वाले गुलदान में रखने से ग्लेडियोलेस के पुष्प अधिक समय तक ताजे बने रहे।
संस्थान में उच्च जल अवशोषण क्षमता 17000-35000 प्रतिशत वाले अति श्रेष्ठ अवशोषक हाइड्रोजैल विकसित किए हैं जो विभिन्न फसलों की अंकुरण उपज में सुधार की दृष्टि से बहुत प्रभावी पाए गए हैं।
संस्थान ने 4-5 क्विं./है. की क्षमता वाले सब्जियों के बीज निकालने के यंत्र, बारानी क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई के लिए 0.36 है./घंटा की क्षमता वाले बीज व उर्वरक ड्रिल, भौतिक दिखावट बढ़ाने के लिए पूर्ण दलहन पॉलिश करने की युक्ति, साबुत दलहनों की निधानी आयु व गुणवत्ता बढाने तथा मक्का व ज्वार के दानों को भूनने के लिए उपयुक्त मशीनों का विकास किया है।
मूंग में जलाक्रांत अवस्था से सुपर ऑक्साइड ऑक्सीजन में वृद्धि का कारण डी पी आई संवेदी एन ए डी पी एच ऑक्सीडेज से संबंधित झिल्ली का सक्रिय होना था क्योंकि इससे जलाक्रांत स्थितियों के अंतर्गत एन ओ एक्स जीन की अभिव्यक्ति में अभिवृद्धि होती है।
ट्राइकोडर्मा प्रजातियों के दो जैव-संरूप (पूसा 55 डी और पूसा बायोपैलेट) चना के नम जड़ सड़न तथा शुष्क जड़ सड़न झुलसा की रोकथाम के लिए विकसित किए गए।
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गेहूं की एसटाइवम (पी बी डब्ल्यू 343) और डयूरम किस्मों (एच डी 2936) के 25-30 पी पी बी उच्च ओजोन सांद्रता में रहने से खुले शीर्ष वाले चैम्बरों में पूरी अवधि के दौरान इन फसलों के परागण में वृद्धि हुई और इन दोनों ही किस्मों के वर्तिकाग्र पर परागों के अंकुरण में वृद्धि हुई।
एक अध्ययन के अंतर्गत तिलहनों से तेल निकालने के बाद जैटरोफा के बीज कवच एवं फल कवच के अपशिष्ट को अवशिष्ट जल से सीसा और कैडवियम जैसी भारी धातुओं के जैव उपचार के लिए श्रेष्ठ पाया गया।
तरल संवर्धन में पी.ल्यूमिनसेंस कीटरोगजनक जीवाणु से पहली बार एक डाइकीटोपाइपेराजीन(1) को पृथक किया गया और 1 एच-एन एम आर तथा 13 सी-एन एम आर के आधार पर इसे 3-आइसोब्यूटाइलहाइड्रोपाइरूलो (1,2-जेड) पाइफाफजीन-1,4-डाइओन अथवा साइक्लो (-प्रो-ल्यू) जो एक साइक्लिक पैप्टाइड 9 (1) है, की पहचान की गई। इसने राइजोक्टोनिया बैटाटिकोला, स्क्लेरोटियम रॉलसील, पाइथियम एपैनिडरमेटम, पी.डेबारिनम और आर.सौलेनी जैसे कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण कवकों के प्रति सशक्त कवकनाशी सक्रियता प्रदर्शित की है।
संस्थान में पादप के भूरे फुदके के प्रबंधन के लिए कार्यनीतियां विकसित की है।
विभिन्न नियंत्रण व्यय तथा उत्पाद के बाजार मूल्य के अंतर्गत इंफोक्रॉप मॉडल से चावल की पूसा बासमती 1 किस्म को चावल के पादप फुदके से होने वाली आर्थिक क्षति के स्तरों का पता लगाया गया।
बी.सोरोकिनियाना (बी एस 25) से पहली बार रोग-आविष नामत: बाइपोलौरोक्सिन की पहचान की गई जो फैलेरिस माइनर, एविना सेटाइवा और साइनोडॉन डेक्टिलोन के प्रति आविषालु पाया गया।
विशिष्ट प्राइमरों के उपयोग से क्रूसिफर में जैनथोमोनास कैम्पेस्ट्रिस पी वी कैम्पेस्ट्रिस से उत्पन्न होने वाले काला सड़न रोग के निदान पर आधारित एक पी सी आर विकसित किया गया।
फयूजेरियम मोनिलीफोर्मे, आल्टरनेरिया सोलनी एवं पाइथियम एफेनीडरमिटम चयनित पादपरोगजनकों के विरूद्ध जीवनाशी सक्रियता के लिए एनाबिना वंश से 70 एक्सेनाइज्ड पृथक्कर का मूल्यांकन किया गया। इनमें से 35 एनाबिना प्रभेदों ने एक या इससे अधिक कवकों के विरूद्ध निरोधन की प्रवृत्ति दर्शायी।
देशी तापसहिष्णु कीटरोगजनक सूत्रकृमि, स्टेइनरनिमा थर्मोफिलम पर आधारित एक जैवनाशक जीवनाशी संरूप नामत पूसा नेमाजैल विकसित किया गया है। नेमाजैल की दक्षता का परीक्षण भा.कृ.अ.सं. के फार्म में भूमिगत दीमक से अत्यधिक संक्रमित मक्का के खेत में किया गया। इससे यह सपष्ट हुआ कि इस उपचार से दीमकों में 90-100 प्रतिशत की कमी हो जाती है और अनुपचारित स्थिति की तुलना में फसल के स्वास्थय व उसकी उपज में भी सुधार होता है।
कीट रोगजनक सूत्रकृमि का एक गैर जलविरागी जल में घुलनशील संरूप विकसित किया गया है और इसे सफेद गिडार (होलोट्राइका प्रजातियों) के विरूद्ध सर्वाधिक प्रभावी पाया गया है। उल्लेखनीय है कि यह कीट उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में आलू और गन्ना की फसलों के एक प्रमुख कीट के रूप में उभर रहा है। संस्थान ने पूसा चना गहीय यंत्र, लेपिडोक्टेरन नाशकजीवों (विशेषकर हैलिकोवर्पा आर्मीजेरा, स्पोडोप्टेरा लिटुरा और इएरिअस विटेला) को बड़े पैमाने पर पालने के लिए कृत्रिम आहार की संरचना व उसकी क्रियाविधि; बीजोपचार के लिए ट्राइकोडर्मा हारजिएनम (भा.कृ.अ.सं.पी-4) जैव संरूप पूसा 5 एस डी- और ट्राइकोडर्मा हारजिएनम (भा.कृ.अ.सं.पी-4) के लिए पूसा बायो-पैलेट जो एक जैव संरूप है, मृदा में अनुप्रयोग के लिए; संक्रमित कीट के शवों से कीट रोगजनक सूत्रकृमियों के विसंक्रमित शिशुओं के लिए मोहन्स इंफेक्टिव जुविनाइल आसोलेटर; चिटोमियम ग्लोबोसम-एक सशक्त जैव नियंत्रक एजेंट की पहचान के लिए स्कार मार्कर के विकास से संबंधित पेटेंट नई दिल्ली स्थित भारत सरकार के पेटेंट नियंत्रक कार्यालय में फाइल किए हैं। संस्थान द्वारा मेनकोजेब तैयार करने की उन्नत प्रक्रिया; अवकृत एजाडिरेक्टिन नाशक जीवनाशियों पर आधारित नीम नाशक जीव तैयार करने की कारगर प्रक्रिया पर पेटेंट प्रदान किए हैं अथवा उनका नवीनीकरण किया गया है।

संस्थान ने अपनी प्रौद्योगिकियों के व्यवसायीकरण के लिए विभिन्न संस्थानों, संस्थाओं, एजेंसियों या निजी कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं;
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सब्जी वाली फसलों के लिए परिशुद्ध रोपाई पर संयुक्त डिजाइन व विकास कार्य करने हेतु संस्थान द्वारा मैकेनिकल इंजीनियरिंग रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन, लुधियाना के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
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संस्थान और एडवेंटा इंडिया लिमिटेड, सिकन्दराबाद; जुआरी सीडस लिमिटेड, बैंगलुरू; देवगन सीडस एंड क्रॉप टैक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद; जे के एग्री जेनेटिक्स लिमिटेड, सिकन्दराबाद; और नाथ बॉयोजीन (1) लिमिटेड, औरंगाबाद के बीच अति महीन दानों वाली सुगंधित चावल की संकर किस्म पूसा आर एच 10 के वाणिजीकरण हेतु पांच समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए।
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भा.कृ.अ.सं. और सिपानी कृषि अनुसंधान फार्म, मंदसौर (मध्य प्रदेश) के बीच अरहर, सोयाबीन, मक्का और गेहूं की किस्मों में सुधार के लिए अनुसंधान और विकास पर आधारित एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
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कीट रोगजनक सूत्रकृमि (स्टेइनरनिम थर्मोफिलम) पर भा.कृ.अ.सं.-मल्टीप्लेक्स बॉयोटेक प्राइवेट लिमिटेड, बैंगलुरू के बीच समझौता ज्ञापन।
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भा.कृ.अ.सं. व नुजिवीडू सीडस लिमिटेड, नई दिल्ली; भवानी सीडस एंड बॉयोटेक, मथुरा; नामधारी सीडस प्राइवेट लिमिटेड, बैंगलुरू; अमरेश्वर एग्रीटेक लिमिटेड, हैदराबाद; यशोदा हाइब्रिड सीडस लिमिटेड, वर्धा; अताश सीडस प्राइवेट लिमिटेड, बैंगलुरू; आर कृषि धन सीडस लिमिटेड, जालना के बीच अत्यंत महीन दानों वाली सुगंधित चावल की संकर किस्म पूसा आर एच 10 के वाणिजीकरण पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए।
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गेहूं, सरसों और चावल की किस्मों के वाणिजीकरण पर भा.कृ.अ.सं. व भवानी सीडस एंड बॉयोटेक, मथुरा के बीच समझौता ज्ञापन।
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सरसों और चावल की किस्मों के वाणिजीकरण के लिए इस संस्थान और अमरेश्वर एग्रीटेक लिमिटेड, हैदराबाद के बीच समझौता ज्ञापन हुआ।
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भा.कृ.अ.सं. व रासी सीडस प्राइवेट लिमिटेड, अतूर; और आंध्र प्रदेश स्टेट सीडस डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हैदराबाद; के बीच सुगंधित चावल की संकर किस्म पूसा आर एच 10 के वाणिजीकरण पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए।
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उन्नत बासमती 1 (पूसा 1460) के वाणिजीकरण के लिए भा.कृ.अ.सं. और जी ई ओ बॉयोटेक्नोलॉजीस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, बैंगलुरू के बीच समझौता ज्ञापन।
