डॉ. जी. के. महापात्रो |
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(2014 से औंध, पुणे) |
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इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च द्वारा स्थापित भारत में पादप विषाणु रोगों पर अनुसन्धान हेतु प्रथम मार्गदर्शक (पायनियर) प्रयोगशाला देश भर के पादप विषाणु रोगों पर अनुसंधान कार्यों का समन्वय करने के उद्देश्य से ब्रिटिश इंडिया द्वारा “प्लांट वायरोलोजी लैब” को 1938 में स्थापित किया गया. इस प्रयोगशाला के राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए, 01 अप्रैल, 1956 को इसका नियंत्रण भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आई.ए.आर.आई), नई दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया; और इसका नाम आई.ए.आर.आई, क्षेत्रीय केंद्र , पुणे रखा गया. इसके कार्यालय और प्रयोगशालाओं को पुणे में ही शिवाजीनगर परिसर से 16 फरवरी, 2014 को औंध में स्थित प्रायोगिक क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया. यह स्टेशन अपनी तरह का एकमात्र केंद्र है जो विशेष रूप से फलों और सब्जियों के विषाणु और विषाणु जैसे रोगों पर अनुसंधान और विस्तार में लगा हुआ है. |
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(1956 से 2013 तक, शिवाजीनगर) |
स्टेशन ने कई विषाणु रोगों के वर्णन (करैक्टरराइजेशन), नैदानिक (डायग्नोस्टिक) और प्रबंधन को विकसित किया है. अनेकों विषाणु रोगों और रोग वाहक कीट (वैक्टर) की कई पहली रिपोर्ट इसी स्टेशन से प्रकाशित हैं, जैसे कि लौकी की विरेस्संस (virescence) और फिल्लोडी (phyllody) (2017), पपीता में पपीता रिंग्स स्पॉट वायरस (पीआरएसवी) और फाइटोप्लाज्मा का मिश्रित संक्रमण (2016), पपीता में एक्सिलरी शूट प्रोलिफरेशन फाइटोप्लाज्मा बीमारी (2014), ज़ुकीनी, लौकी, खरबूजे, और ककड़ी में ज़ुकीनी येलो मोज़ेक वायरस (2003-2006), खरबूजे में टॉस्पोवायरस (2004) की वजह से वाटरमेलोन बड नेक्रोसिस, शिमला मिर्च में पेपर वेनल मोटेल वायरस और टोबाको एच वायरस (2004), कागज़ी लाइम (1981) में येलो मिड-वेन, सावा (Panicum crusgalli) का मोज़ेक रोग और Rhopalosiphum maidis और Myzus persicae की वेक्टर के रूप में स्थापना (1977), Justicia jendarussa में लिटिल लीफ़ सिंड्रोम (1976), साइट्रस की एक्सोकोर्टीस बीमारी (1975), कपास की स्माल लीफ स्टेनोसिस बीमारी (1972), याम का मोज़ेक रोग वेक्टर (1969), ज्वार (सोरघम) का क्लोरोसिस रोग और इसका डेलफेसिड (delphacid) वेक्टर (1968), सिट्रस साइलीड, सिट्रस ग्रीनिंग का वेक्टर (1967), मक्के का ब्रोकन स्ट्राइप रोग और उसका वेक्टर लीफ हॉपर (1966), जंगली जूट का येलो मोजेक रोग (1965), फिंगर मिलेट का मोजेक रोग और इसके सात एफ़िड-वेक्टर की पहचान (1965), मक्के की स्ट्रिप बीमारी (1965), धतूरा और कैथारान्थस पर बैंगन का लिटिल लीफ रोग (1965), बड़ी इलायची की फोर्की बीमारी के लिए Elettaria cardamom और Amomum speciesa नामक अतिरिक्त होस्ट (1964), सूरजमुखी का मोज़ेक रोग (1962), बैगन और टमाटर में चिली लीफ कर्ल रोग (1959), छोटी इलायची के 'काटे' रोग के वेक्टर के रूप में Pentalonia nigronervosa की पहचान (1958), भिंडी का येलो वेन मोजैक रोग तथा इसके वेक्टर के रूप में वाइट फ्लाई और सह होस्ट के रूप में Hibiscus tetraphyllus की पहचान (1950), एम्.एल.ओ. के कारण गन्ने की ग्रासी शूट बीमारी (1949), पपीते पर मोज़ेक रोग (1947-48), मिर्च पर मोज़ेक रोग (1940), आदि.
नवीनतम महत्वपूर्ण योगदान:
- पाया रिंग्सपॉट वायरस के पुणे आइसोलेट का पूरा जीनोम; महाराष्ट्र और गुजरात से पीआरएसवी के सीपी जीन सीक्वेंस का मॉलिक्यूलर चित्रण (characterization).
- पपीता में पीआरएसवी तथा सब्जियों (टमाटर, मिर्च, ककड़ी, खरबूजा, शिमला मिर्च, भिंडी) में विभिन्न विषाणुओं के लिए एकीकृत वायरस प्रबंधन मॉड्यूल
- टमाटर पिन वोर्म लीफ माईनर (Tuta absoluta) नामक आक्रमक कीट की पहली रिपोर्ट.
- भारत में सर्वप्रथम पीआरएसवी सह पपीता लाइनें (PS-1 और PS-3) का विकास जो राष्ट्रीय जर्मप्लाज्म पंजीकरण समिति (भा.कृ.अनुप), नयी दिल्ली के साथ पंजीकृत हैं.