डॉ. के. के. प्रमाणिक
अध्यक्ष
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भा.कृ.अ.सं. का यह क्षेत्रीय केन्द्र अपने वर्तमान स्वरूप में शिमला स्थित संस्थान के दो क्षेत्रीय केन्द्रों को समेकित करके 1 अप्रैल 2005 में गठित हुआ था। इस प्रकार, इस क्षेत्र के दो केन्द्र हैं, नामत: धान्य प्रजनन केन्द्र, टुटीकंडी और बागवानी फसल अनुसंधान संस्थान, ढांडा। प्रशासनिक कार्यालय एवं प्रयोगशालाएं, अमरतारा परिसर में स्थित हैं।
वर्ष 1934 में यह तथ्य अनुभव किया गया कि गेहूं और जौ में रतुओं का वार्षिक प्रकोप पहाड़ियों की विभिन्न ऊंचाइयों पर गेहूं, जौ एवं संबंधित प्रजातियों के पौधों पर बीजाणुओं के अति प्रकोप के कारण होता है और ऐसा स्वर्गीय डॉ. के.सी.मेहता के उत्कृष्ट अनुसंधान कार्य से सिद्ध हुआ। इसके परिणामस्वरूप रतुआ प्रतिरोध पहाड़ी गेहूं पर प्रजनन के लिए एक स्कीम के अंतर्गत अप्रैल 1935 में डॉ. बी.पी.पाल की देखरेख में एक परियोजना स्वीकृत की गई (जौ की फसल को इसमें बाद में जोड़ा गया)। यह उस कार्य का एक अंग था जो डॉ. के.सी.मेहता के सहयोग से भा.कृ.अ.सं. में पहले से ही चल रहा था। डॉ मेहता शिमला की रतुआ अनुसंधान प्रयोगशाला में कार्यरत थे। मई 1951 में टुटीकंडी, शिमला में गेहूं प्रजनन केन्द्र ने कार्य करना आरंभ किया। यह केन्द्र 320एन अक्षांश और 770 ई देशांतर पर समुद्र तल से औसतन 1900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। वर्तमान में, इस केन्द्र में प्रयोगशाला की इमारत, दो कांच घर, भंडार सहित एक फील्ड प्रयोगशाला, एक सम्मेलन कक्ष है और टैरेसों पर लगभग 70 फसलें उगाई जाती हैं (लगभग 3 हैक्टर में)।
बागवानी अनुसंधान केन्द्र की स्थापना 19 अक्तूबर 1965 में 'पोम और गुठलीदार फलों के वन्य जननद्रव्य का संकलन, रखरखाव एवं मूल्यांकन' शीर्षक की पीएल 480 स्कीम (अमेरिका की सहायता प्राप्त) की परियोजना के रूप में हुई थी। यह परियोजना आरंभ में भा.कृ.अ.सं. के औद्यानिकी, पादप रोग और पादप परिचय संभागों के सामुहिक प्रयासों से आरंभ की गई थी तथा इसके अंतर्गत शिमला में पादप परिचय केन्द्र से कार्य आरंभ किया गया। तथापि, जैसे-जैसे इसके क्रियाकलाप पूर्ण रूप से संचालित हुए, वैसे-वैसे यह अनुभव किया गया कि परियोजना के कार्य के लिए स्थान अपर्याप्त है और अंत में यह केन्द्र 1969 में अपने वर्तमान स्थान 'अमरतारा काटेज' में हस्तांतरित किया गया। प्रायोगिक फार्मों पर 1974 में कार्य आरंभ किया गया।
वर्ष 1974 में शिमला से लगभग 6 कि.मी. दूर शिमला-मंडी हाइवे पर लगभग 12 हैक्टर (30 एकड़) भूमि अधिगृहीत की गई। अनुसंधान पर क्षेत्रों का विकास तथा स्थाई स्थलों पर एकत्रित किए गए जननद्रव्य के रोपण का कार्य 1975 से आरंभ किया गया। अनुसंधान फार्म की भूमि अत्यंत ढलावदार है जिसकी समुद्र तल से औसत ऊंचाई 1825 मी से 1975 मी. तक है। शरद ऋतू में औसत तापमान -20से. और ग्रीष्म ऋतु में लगभग 400 से. तक रहता है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 1615 मि.मी. होती है जिसमें से लगभग 993 मि.मी. वर्षा मध्य जून से मध्य सितम्बर के बीच होती है। इस प्रकार यह क्षेत्र शीतोष्ण फलों पर गहन अनुसंधानों के लिए आदर्श है।
केन्द्र का बागवानी अनुसंधान फार्म प्रयोगशाला सुविधाओं, नेटहाउस में बने प्रजनन ब्लॉक, गमला प्रयोगों के लिए बने एक नेट हाउस तथा पादप प्रवर्धन संबंधी यह अध्ययन करने के लिए तापमान व आर्द्रता नियंत्रित एक मिस्ट हाउस जैसी सुविधाओं से युक्त है। प्रक्षेत्र प्रयोगशाला में पादप रोग वैज्ञानिक, पादप प्रवर्धन एवं पोषण संबंधी अध्ययनों के लिए सुविधाएं प्रदान की गई हैं। सिंचाई संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति तीन सदाबहार पानी के झरनों से होती है। इसके अतिरिक्त सिंचाई जल के संग्रहण हेतु लगभग 100000 लिटर क्षमता का जलाशय भी निर्मित किया गया है।
क्षेत्रीय केन्द्र के मुख्यालय में कार्यिकीय, परखनली में सुक्ष्म प्रवर्धन, समांगीय जैव-मूल्यांकन एवं पादप रोगविज्ञानी अध्ययनों के लिए प्रयोगशाला की सुविधाएं उपलब्ध हैं। केन्द्र में कार्यालय स्वचालन की सभी सुविधाएं और द्विभाषी कम्प्यूटर उपलब्ध कराए गए हैं।
अधिदेश एवं उद्देश्य
- उत्तरी पहाड़ियों के लिए गेहूं का सुधार
- उत्तरी पहाड़ियों के लिए जौ का सुधार
- शीतोष्ण फली वाली फसलों के देसी एवं विदेशी जननद्रव्य का संकलन, रखरखाव एवं मूल्यांकन
- शीतोष्ण फलदार फसलों के सुधार में शीतोष्ण फल जननद्रव्य का उपयोग
- देश की विविध कृषि जलवायु वाली स्थितियों में शीतोष्ण फली वाली फसलों की उत्पादकता में सुधार के लिए अनुसंधान संबंधी अंतरालों की पहचान
- शीतोष्ण फलदार फसलों के नाशकजीवों एवं रोगों के नियंत्रण के लिए लागत प्रभावी विधियों का विकास।
यह केन्द्र अपने पिछले अनुसंधान निष्कर्षों के आधार पर तथा पर्वतीय पर्यावरणों की मांग को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर अपनी अनुसंधान अग्रताओं की समीक्षा करके उनका पुनर्निर्धारण करता रहता है।
उत्तर पहाड़ी क्षेत्र में गेहूं के लिए आंचलिक समन्वयन का कार्य गेहूं के लिए चल रही अखिल भारतीय गेहूं सुधार परियोजना तथा जौ के लिए अखिल भारतीय जौ नेटवर्क के अंतर्गत किया जाता है।