उपलब्धियां
· बैसिलस थुरिन्जियेन्सिस का पृथक्करण और गुणधर्म लक्षण निर्धारण
पिछले एक दशक से हमने भारत के विभिन्न क्षेत्रों से मृदा, गोदामों और मृत कीटों से बैसिलस थुरिन्जियेन्सिस (बीटी) के 250 से भी अधिक विभेदों को पृथक किया है। एक दर्ज़न प्रभावी पृथक्कों में से, बैसिलस थुरिन्जियेन्सिस किस्म कारस्ताकी पृथक Aug 5 (प्रविष्टि संख्या JX674043)को सबसे अधिक आशाजनक पाया गया और एक दर्ज़न शल्कपंखियों नामत-हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा, स्पोडोपटेरा लिटूरा, स्पोडोपटेरा एक्सीगुआ, प्लूटेला ज़ाइलोस्टेला, ल्यूसीनोडस आर्बोनालिस, पायरिस ब्रासिका, चाइलो पार्टेलेस, प्लूसिया ऑरीचेलशिया, कोरकाइरा सेफलोनिका, इयरेस विटेला, स्पिलसोसोमा ऑब्लीक और उथेशियल ऑटरिक्स के विरुद्ध उस दक्षता का मूल्यांकन किया गया। Aug 5 को सभी जांचे गए कीटों के नवशावों और पी. ज़ाइलोस्टेला के चौथे इनस्टार लार्वा के प्रति अत्यधिक आविषालु पाया गया। यह एस. लिटूरा सहित शल्कपंखियों की अधिकांश प्रजातियों के लिए बी. थुरिन्जियेन्सिस किस्म कारस्ताकी एचडी-1 के समतुल्य या उससे बेहतर पाया गया। Aug 5 को उनके विशिष्ट आण्विक मार्करों और उनमें शामिल Cry1Ac और Cry2Ab आविषों की पर्याप्त मात्रा के आधार पर Cry1Ac/ Cry1Ab, Cry2A, Cry3 और Cry9 की उपस्थिति में सकारात्मक पाया गया। स्थानीय बैसिलस प्रजातियों के 100 से भी अधिक जीन अनुक्रमणों को एनसीबीआई जीन बैंक में जमा कराया गया।
· बीटी आविषों के प्रति आधारभूत संवेदनशीलता
बीटी कपास की विभिन्न घटनाओं में रूपांतरण के लिए इस्तेमाल की गई विभिन्न Cry1Ac जीनों को ध्यान में रखते हुए, कपास के बॉल वॉर्म, हैलिकोवर्पा आर्मीजेरा के नवशावों के प्रति कुछ Cry1Ac प्रोटीनों की आविषालुता भिन्न थी और वह BGSC Cry1Ac (23 जनसंख्या) के लिए 0.158 - 5.42 µg/g, JK Cry1Ac (24 जनसंख्या) के लिए 0.076 - 5.76µg/g और MVP Cry1Ac (21 जनसंख्या) के लिए 0.0085 - 0.822µg/g की रेंज में थी। आनुवंशिक रूप से विविध कीटों की जनसंख्या का प्रयोग करने के बावजूद इन Cry1Ac प्रोटीनों की आविषालुता में बहुत अधिक अन्तर था जिससे कि पता चलता है कि एच. आर्मीजेरा के लार्वा की Cry1Ac प्रतिरोधिता की मॉनीटरिंग पर सहमति तैयार करने की आवश्यकता है।
· हैलिकोवर्पा आर्मीजेरा में Cry1Ac प्रतिरोधिता की वंशागति
·प्रतिरोधी हैलिकोवर्पा आर्मीजेरा विभेद (BH-R)(227.9 गुना) का संवेदी वडोडरा (VA-S)विभेद के बीच व्युत्क्रमी आनुवंशिक संकरों के विश्लेषण से 0.65-0.89 की प्रभाविता (h) का प्रदर्शन हुआ और प्रभाविता की डिग्री (D) 0.299-0.782 की थीं जिससे पता चलता है कि Cry1Ac प्रतिरोधिता एक अर्ध प्रभावी विशेषक था। मादा प्रतिरोधी जनक के F1 हाइब्रिडों केD और h मान मादा संवेदी जनक से उच्चतर थे जिससे कि Cry1Ac प्रतिरोधिता की बढ़ी हुई मातृक प्रभाविता का प्रदर्शन हुआ।
· एच. आर्मीजेरा के प्रतिरोधी विभेदों में उत्परिवर्ती युग्म विकल्पी की पहचान और कैडहेरिन जीन अनुक्रमण में भिन्नता
·एच; आर्मीजेरा कैडहेरिन जीन से इक्सॉन 26 के प्रवर्धन से दो उत्परिवर्ती युग्म विकल्पियों r9(553 bp) और r10(717 bp) की जंगली S युग्म विकल्पी (588 bp)के विरुद्ध पहचान की गई। r9 के अनुक्रमण विश्लेषण से इनट्रॉन क्षेत्र में 45 bp के विलोपन का प्रदर्शन हुआ और इक्सॉन 26 के 5'-समबद्ध स्थल में उत्परिवर्तन के परिणाम स्वरूप अतिरिक्त एमीनो एसिड प्राप्त हुआ। जबकि r10 युग्म विकल्पी में एक कालपूर्व स्टॉप कोडॉन के परिणामस्वरूप संवेदी विभेद के 1756 एमीनों एसिड के एकल प्रोटीन के सापेक्षिक 1343 और 335 एमिनों एसिड के दो विभिन्न प्रोटीनों में तथाकल्पित अनुलेखन हुआ।
चित्र: जेन स्कैन (GENSCAN)सॉफ्टवेयर का प्रयोग करते हुए अनुमानित एमीनो एसिड अनुक्रमण। प्रतिरोधी युग्म विकल्पी r9 (HQ453270) और r10 (HQ441197) और संवेदी युग्म विकल्पी (HQ 453271)। सीधे तीर के निशान तथाकल्पित प्रारंभिक स्थलों को निर्दिष्ट करते हैं डोमेन आई जी; सिग्नल पेप्टाइड; सीआर, कैडहरिन रिपीट; एमपीआर मेम्ब्रेन प्रिऑक्सीमल रीज़न; टीएम ट्रांस मेम्ब्रेन डोमेन और सीवाईटी साइटोप्लाज्मिक डोमेन *r10 में पूर्वकाल स्टॉप कोडोन को दिखाता है
· RNA व्यतिकरण के माध्यम से कीट आण्विक लक्ष्यों की साइलेंसिंग
आवधिक रूप से कीटों के विकास के दौरान काइटिन का निम्नीकरण किया जाना होता है और इसके लिए कीटों की वृद्धि और विकास के दौरान काइटिनेस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए काइटिनेस की अभिव्यंजना गलन प्रक्रिया के साथ-साथ ही होती है और कीटों में विकास को निगमित किया जाता है। क्रमश: एस. लिटूरा और एच. आर्मीजेरा से तथाकल्पित काइटिनेस जीनों को जीनोम व्यापी खोज के माध्यम से पहचाना गया। एच. आर्मीजेरा के साथ ही साथ एस. लिटूरा के काइटिनेस जीन के ईएसटी क्षेत्र से siRNAs को अभिकल्पित और संश्लेषित किया गया। क्रमश: नवशावों और दस दिन पुराने लार्वे के विरुद्ध siRNAs के साथ ही साथ dsRNA के पोषण और इन्जेक्शन आमापन ने अन्तर-मोल्ट मृत्युता का प्रदर्शन किया। यह काइटिनेस जीन को समाप्त करने के लिए siRNAs का इस्तेमाल करने का सबूत उपलब्ध कराता है।
· कीटों के प्रति परपोषी पौधों की प्रतिरोधिता
·तनावेधक और प्ररोह मक्खी के प्रति बहु प्रतिरोधिता के लिए मक्का के विविध जीनप्ररूपों का खेत में प्रतिगमन मूल्यांकन करने से यह पता चला कि मक्का के 9 जीनप्ररूप जैसे कि CPM 1, CPM 2, CPM 4, CPM 5, CPM 8, CPM 13, CPM 14, CPM 15 और CPM 18 में प्रतिरोधी तुलनीय CML 334 (7.2 % प्ररोह मक्खी और 13.1% तना वेधक डेड हार्ट) की तुलना में प्ररोह मक्खी (1.2-3.1% डेड हार्ट) और तना वेधक (5.2-9.3% डेड हार्ट) के कारण बहुत ही कम डेड हार्ट हुए। मक्का के इन जीनप्ररूपों में इन नाशीजीवों की प्रतिरोधिता के लिए उत्तरदायी वांछनीय सस्य विज्ञानी और आकारिकीय विशेषक भी थे और इनका मक्का प्रजनन कार्यक्रम में कीट प्रतिरोधिता के लिए इस्तेमाल किया गया।
· कीट नियंत्रण के लिए प्रोटीएज़ निरोधक प्रोटीन
·सोयाबीन, फ्रेंचबीन से पृथक किए गए प्रोटीएज़ निरोधक (पीआई) अणुओं, एमिलोटिका और ए. सेनेगल ने कपास के बॉल वॉर्म, एच. आर्मीजेरा की 78 प्रतिशत से अधिक मध्यांत्र प्रोटोएज़ का निरोधन किया। पीआई अणुओं का SDS - PAGE गुणधर्म लक्षण निर्धारण करने से यह पता चला कि वे बहुत छोटे प्रोटीन अणु हैं जिनका आण्विक भार 17-19 KDa की रेंज में है।
· बीटी पराजीनी फसलों की जैव सुरक्षा
·बीटी कपास की बड़े पैमाने पर खेती के गैर लक्षित जीवों, संधिपादों की जैव विविधता और नाशीजीव पुनरुत्थान पर प्रभावों के अध्ययन से पता चला कि i) बीटी और गैर बीटी कपासों में मुख्य गैर लक्षित चूषक कीटनाशी जीवों जैसे कि कपास का फुदका, श्वेत मक्खी, एफिड, लाल और काले कपास के कीड़े तथा हरे पूति कीड़े तथा सामान्य परभक्षी जैसे कॉक्सिनेलिड, क्रायसोपिड्स और मकड़ी की जनसंख्या में बहुत अधिक अन्तर नहीं था। ii) बीटी और गैर बीटी कपास में प्रजातियों की समृद्धिशीलता और पौधों में रहने वाले तथा मृदा में निवास करने वाले संधिपादों की विविधता सूची एकसमान थी। iii) पुष्पन और बॉल बनने की स्थिति के दौरान कीटनाशियों के छिड़काव में कमी से कुछ गौण नाशीजीव जैसे कि मीली मत्कुण, स्पोडोप्टेरा लिटूरा, थ्रिप्स, एफिड, फुदके, श्वेत मक्खी और हरा पूति कीड़ा आदि का पुनरुत्थान हो गया। iv) बीटी कपास में कीटनाशियों के घटे हुए प्रयोगों के परिणामस्वरूप, उत्तर भारत में मधुमक्खी पालन करने वाले बीटी कपास के खेतों में अपने मधुमक्खी के छतों (एपिस मेलीफेरा) को बना रहे हैं और उन्होंने मधुमक्खी की कॉलोनियों पर बीटी कपास के किसी भी नकारात्मक प्रभाव की रिपोर्ट नहीं की है। v) कपास की पारिस्थितिकी प्रणालियों में गैर लक्षित कीटनाशी जीवों और प्राकृतिक शत्रुओं पर बीटी कपास के कारण कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ है।
· जैव वर्गिकीय
v क्राइपटोरहाइनचिनिए की प्रजाति विविधता की एक विस्तृत जांच सूची बनाई गई जिसमें इन्फ्रा विशिष्ट टैक्सा, निक्षेपण प्रकार, सहनाम वाली और प्राणी भौगोलिक वितरण के विवरण तैयार किए गए।
v उप कुल एफीडिनीय (हाइमेनोप्टेरा : ब्राकोनीडिए) जो कि पूरी तरह से एफिड के परजीव्याभ हैं, से संबंधित 20 वंशों के तहत 125 प्रजातियों द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय प्राणी जात की एक जांच सूची संकलित की गई। वंश एफिडस वंश अधिकतम प्रजातियों के साथ सबसे अधिक प्रचुर है और उसके बाद बिनोडॉक्सिस वंश आता है। शुद्ध विश्वव्यापी वितरण के साथ एकमात्र एफिडिनीय डायरेटियेला रापीए है।
v भण्डारण किए गए अनाजों के नाशीजीवों के साथ जुड़े हाइमेनोप्टेरा परजीव्याभों पर जैव वर्गिकी अध्ययन किए गए और विस्तृत पहचान कुंजी का निरुपण किया गया। परजीव्याभ थे : लैसियोडर्मा सेरीकोर्ने पर एनीसोपटेरोमालस कालानड्रिए, कालोसोब्रूचस काइनेसिस पर डिनारमस बासालिस, सी. माकूलाटा और सी. अनालिस, सिटोफिलस ओराइज़े पर केटियोस्पिला एलीगेनस और राइज़ोपर्था डोमीनिसा पर राबडेप्रिस प्रजाति।
v विश्व की विभिन्न कृषि पारिस्थितिकियों में होने वाले अहेर प्रजातियों के साथ सात उपकुलों नामत: एपियोमेरिनिए, हार्पाक्टोरनिए, पियेराटिनिए, रेडूविनए, साल्वीटिनिए, स्टेनोपोडनिए और ट्राइबेलोसेफालिनिए से संबंधित रेडूविडिए की लगभग 150 परभक्षी प्रजातियों की विस्तृत जांच सूची बनाई गई।
v उत्तर भारत के सात राज्यों जैसे कि दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से भारतीय घातक मत्कुणों की उनके वितरण के साथ एक जांच सूची तैयार की गई।
· एकीकृत नाशीजीव प्रबंध और नाशीजीव पूर्वानुमान मॉडल
v पिछले 30 वर्षों के दौरान भारतीय-गंगा के मैदानी क्षेत्रों में धान-गेहूं सस्यन प्रणाली में नाशीजीव प्रोफाइलों में परिवर्तन का विश्लेषण करने से कृषि के सघनीकरण के कारण हरित क्रान्ति के बाद के नाशीजीव परिदृश्य में अभूतपूर्व परिवर्तन का पता चला।
v धान और गेहूं की फसलों के नाशीजीवों के लिए इन्फोक्रॉप (INFROCROP), एक सामान्य फसल बढ़वार अनुकरण मॉडल वैधीकृत किया गया। इसके साथ ही धान में तना वेधक और जीवाण्विक अंगमारी के लिए तथा गेहूं में रतुए और तना वेधक के कारण होने वाले हानि वक्रों को अलग-अलग और संयुक्त रूप से विकसित किया गया।
v धान पर लीफ फोल्डर, स्नेफेलोक्रोसिस मेडीनालिस के कारण होने वाली क्षति के लिए स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर का प्रयोग करते हुए सुदूर संवेदन के साथ स्पेक्ट्रल सिग्नेचर स्थापित किए गए। लगभग अवरक्त (एनआईआर) (780-1350 मि.मी.) में स्पेक्ट्रल परावर्तकता में अन्तर था जहां संक्रमित फसल की तुलना में असंक्रमित फसल में उच्चतर परावर्तकता थी। यह अन्तर संक्रमण की गंभीरता और फसल की आयु के साथ बढ़ गया।
v जांचे गए लेक्टिनों में से, मटर लेक्टिन एच. आर्मीजेरा के विरुद्ध सबसे अधिक प्रभावी था, क्योंकि LC 50 मान निम्नतम थे (0.008 प्रतिशत) और उसके बाद गेहूं के कीटाणु एगल्यूटिनिन (0.0022 प्रतिशत) थे जबकि अन्य लेक्टिन जैसे कि जैकालीन लेक्टिन और सोयाबीन एगल्यूटिनिन ने क्रमश: 0.0079 और 0.0136 प्रतिशत की LC 50 मान के साथ निम्न आविषालुता का प्रदर्शन किया।
v मुख्य नाशजीवों का सामना करने के लिए 1-1.5 ली/मि.ली. जल की दर पर एज़ाडिरेक्टिन समृद्ध नीम संरूपण (az 5%) निम्नतर एज़ाडिरेक्टिन मात्रा वाले संरूपणों की अपेक्षा अधिक प्रभावी पाया गया।
v एण्ड्रोग्रेफिस पेनीकुलाटा के हैक्सेन और मैथोनॉल निष्कर्ष की प्रतिफिडेंट गतिविधि ने हैक्सेन निष्कर्ष की तुलना में उच्चतर प्रतिफिडेंट गतिविधि का प्रदर्शन किया और यह विभिन्न खुराकों के लिए 64.88 - 71.66 प्रतिशत की रेंज में थी।
v क्लेरोडेन्ड्रॉन इन्फॉरटयूनाटम की पत्तियों से तीन शुद्ध यौगिक जैसे कि क्लेरोडिन 15 मैथॉक्सी - 14, 15 डाइहाइड्रोक्लेरोडिन और 15 हाइड्रॉक्सी 14, 15 डाइहाइड्रोक्लेरोडिन पृथक किए गए। हैलिकोवर्पा आर्मीजेरा के तीसरे इनस्टार लार्वा के विरुद्ध नो-च्वाइस विधि द्वारा विभिन्न निष्कर्षों, शुद्ध यौगिकों और एज़ाडिरेक्टिन का जैव दक्षता के लिए पुन: मूल्यांकन किया गया।
चित्र: कीटनाशीजीव पूर्वानुमान के लिए युग्मित फसल नाशीजीव मॉडल
· भण्डारित अनाज के नाशीजीवों का प्रबंधन
v विभिन्न एनएसपी केन्द्रों जैसे करनाल, कानपुर, लुधियाना, हिसार, राजकोट और अकोला से एकत्रित की गई दलहन के भृंगों की अधिकांश जनसंख्या ने मैलाथियॉन और फेनीट्रोथियॉन के प्रति कम संवेदनशीलता और डीडीवीपी और डेल्टामेथ्रिन के प्रति उच्च संवेदनशीलता का प्रदर्शन किया।
v कैलोसोबर्चस माकुलाटस (संवेदनशील विभेद) और ट्राइबोलियम कास्टानेयम (फॉस्फाइन प्रतिरोधी विभेद) के 1-4 दिन पुराने अण्डों पर गोबर के उपले को जलाने से पैदा होने वाले धुएं के प्रभाव पर किए गए अध्ययनों से यह पता चला कि अनुपचारित की अपेक्षा दोनों कीटों के अण्डों को सेने का प्रतिशत बहुत कम था।
v जूट से बनाए गए थैलों के स्थान पर आसानी से प्लास्टिक से बनाए गए थैले (एचडीपीई और पीपी) इस्तेमाल कर सकते हैं और इन थैलों में सुरक्षित रूप से भंडारण किया जा सकता है।
v
· कीटनाशी जीवों का जैविक नियंत्रण
v प्रयोगशाला की स्थितियों के तहत कपास और आर्थिक महत्व की अन्य फसलों को संक्रमित करने वाले अन्यस्थानिक मीली मत्कुण के साथ जुड़े चार महत्वपूर्ण कॉक्सिनेलिड परभक्षियों के जीवविज्ञान का अध्ययन किया गया। सी. मॉन्ट्रोजि़येरी का संपूर्ण विकास समय (वयस्क दीर्घ आयु के साथ) अन्य तीनों प्रजातियों (58.60 ± 2.38 से 72.40 ± 2.11 दिन) की अपेक्षा लंबा पाया गया (97.80 ± 1.32 दिन) जिससे यह पता चला गया कि इस परभक्षी को मीली मत्कुणों के प्रबंधन के लिए प्रभावकारी रूप से लगाया जा सकता है।
v अण्ड परजीव्याभों ट्राइकोग्रामा चिलोनिस और टी. ब्रेसिलियेन्सिस के अंड निक्षेपण व्यवहार पर विभिन्न पादप निष्कर्षों का कैरोमोनल प्रभाव का अध्ययन किया गया। उच्चतम प्रतिशत परजीविता और वयस्क उद्भवन हैक्सेन द्वारा उपचारित कार्डों में और उसके बाद बीटी कपास और टमाटर की पत्तियों के निष्कर्षों के साथ उपचारित अण्डकार्डों में पाया गया।