संभाग की अनुसंधान उपलब्धियां

मृदा भौतिकी तथा मृदा एवं जल संरक्षण

  • जल भंडारण तालाब की सतह पर रिसाव रोकने हेतु बेन्टोनाइट का सफल प्रयोग;
  • मृदा की भौतिक अवस्था के सुधार के लिए सघनता एवं चिजलिंग तकनीक का विकास;
  • क्यारी रोपण तकनीक के माध्यम से पारम्परिक जुताई की तुलना में नाइट्रेट सांद्रता की अधिक मात्रा पाई गई। गेहूं, टमाटर, मक्का तथा सोयाबीन में संशोधित मृदा भौतिक प्रक्रिया परिवेश से जल एवं पोषक पदार्थ उपयोग प्रभावशीलता में वृध्दि हुई;
  • धान की भूसी का 8 टन प्रति हैक्टर की दर पर अनुप्रयोग करने से मृदा समुच्चय और इसके कार्बन भण्डारण में सुधार हुआ, मृदा तापमान अनुकूल रहा तथा साथ ही उन्नत जड़ बढ़वार से मक्का तथा गेहूं की अनुकूलतम पैदावार प्राप्त हुई;
  • मौसम, फसल एवं मृदा प्राचलों (पैरामीटरों) का उपयोग करते हुए विकिरण संतुलन संघटकों, फसल की वास्तविक एवं सक्षम वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन क्षमता की गणना करने के लिए 'एक परत वाले मृदा जल संतुलन मॉडल' का विकास;
  • बारह मृदा भौतिकी, रासायनिक और जैविक पैरामीटरों पर आधारित; आठ मृदा गुणवत्ता अक्षांकों का मूल्यांकन किया गया। इनमें से 'लीनियर वैटिड एडीटिव सॉयल क्वालिटी इंडेक्स’ को मृदा गुणवत्ता परिवर्तनों को दर्शाने के लिए अधिक संवेदनशील पाया गया;
  • मृदा की सघनता को जानने के लिए आभासी घनत्व की तुलना में, सिंचाई के दो दिन पश्चात्, वेधन प्रतिरोधिता की उपयोगी संकेतक के रूप में पहचान;
  • मृदा ढांचागत गुणवत्ता व जल उपलब्धता को जानने के लिए ‘न्यूनतम सीमित जल क्षमता’ की एक बेहतर संकेतक के रूप में पहचान;
  • आसानी से निर्धारित किए जाने वाले मृदा भौतिकी पैरामीटरों का उपयोग करके एवं फसल क्षमता के साथ इन्हें जोड़कर ‘रेटिंग सूचकांक’ की गणना व दिल्ली क्षेत्र की मृदा श्रृंखलाओं की उत्पादन क्षमता के मूल्यांकन हेतु इसका प्रयोग;
  • मृदा के जल-भौतिक प्रक्रिया गुणों को जानकर इनका ‘भौतिक प्रक्रिया गुणवत्ता सूचकांक’ के साथ संबंध का मूल्यांकन; और
  • प्रमुख फसल चक्र प्रणालियों (चावल-गेहूं एवं मक्का-गेहूं) में अल्पावधि एवं दीर्घावधि आधार पर मृदा भौतिक प्रक्रिया परिवेश की गतिशीलता का मात्रात्मक निर्धारण;

 

कृषि मौसम विज्ञान

  • सरसों में माहू (एफिड) तथा काल्टनबैक (लेपेफिस एरीसिमी) के व्यापक संक्रमण को एक माह पूर्व ही जानने के लिए ‘डिग्री दिवस अवधारणा’ का उपयोग करके व्यवहारजन्य नियम का विकास;
  • भारत में पहली बार तापमान की निश्चित मात्रा के संचयी घण्टों, सापेक्षिक आर्द्रता और प्रकाशीय घण्टों का उपयोग करते हुए सरसों की फसल में सफेद रतुआ बीमारी की पूर्व चेतावनी के लिए व्यवहारजन्य नियम का विकास;
  • तापीय प्रतिक्रिया वक्र’ का विकास जिनके द्वारा पत्ती क्षेत्रफल सूचकांक एवं बायोमास उत्पादन का डिग्री दिवसों के साथ संबंध जानकर जैविक एवं किफायती पैदावार का पूर्वानुमान संभव;
  • बढ़े हुए डिग्री दिवसों (मृदा तापमान पर आधारित) से गेहूं के घटनाविज्ञान के अनुमान में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। हालांकि मृदा तापमान, गेहूं की बढ़वार स्थितियों का अनुमान लगाने में सहायक है; तथा
  • आम में ‘चूर्णिल आसिता’ प्रगति का अनुमान लगाने के लिए एक मॉडल का विकास और जड़ क्षेत्र में मृदा नमी का अनुमान लगाने के लिए मौसम आधारित दो मॉडलों नामत: ‘कैम्पवेल-डियाज़’ और ‘एस.पी.ए.डब्ल्यू.’ के प्रदर्शन का मूल्यांकन;

 

सुदूर संवेदन एवं जी.आई.एस.

  • ‘इन्वर्जन ऑफ रेडिऐटिव ट्रांसफर मॉडल’ (प्रोसेल) के माध्यम से गंगा पार के मैदानों में उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों से खेत तथा क्षेत्रीय स्तर पर गेहूं के जैव भौतिक प्रक्रिया पैरामीटरों का अध्ययन और फसल बढ़वार की परिस्थितियों का किसी स्थान विशिष्ट की मॉनीटरिंग के लिए ‘फसल स्वास्थ्य सूचकांक’ का विकास;
  • मल्टी स्पैक्ट्रल सुदूर संवेदन आंकड़ों का उपयोग करते हुए भारत के पूर्वी गंगा मैदानों : मऊ तथा पटना जिले के किसानों के खेतों में संसाधन संरक्षण तकनीकों को अपनाने के लिए क्षमता वाले क्षेत्रों की पहचान;
  • ‘लॉजीस्टिक रिगरैशन’ और ‘स्पैक्ट्रल एंगल मैपर’ तकनीकों का उपयोग करते हुए उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों से करनाल जिले में गेहूं बुवाई क्षेत्रों में संरक्षण एवं पारम्परिक जुताई के साथ फसलीय खेतों में भेद करने हेतु कार्यप्रणाली का विकास;
  • उपग्रह से प्राप्त बीस वर्षों के आंकड़ों का उपयोग करके भारतीय गंगा के मैदानों हेतु फसल घटनाविज्ञान पैरामीटरों का विकास;
  • सुदूर संवेदी आंकड़ों का उपयोग करते हुए ‘टैम्पोरल सैटेलाइट इमेजरीज’ तथा ‘चेंजडिटक्शन एप्रोच’ से दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भूमि उपयोग एवं आवरण परिवर्तन (1977-2001) के विश्लेषण का मूल्यांकन और हुए परिवर्तनों का मात्रात्मक निर्धारण;
  • ‘स्पैक्ट्रल एंगल मैपिंग’ के माध्यम से ‘टाइम सीरीज सैटेलाइट आंकड़ो’ से फसल चक्र अनुक्रम और कृषि भूमि उपयोग पैटर्न को जानने हेतु कार्यप्रणाली का निर्माण और टाईम सीरीज आंकड़ों में वातावरणीय प्रदूषण को हटाने के लिए सुधार तकनीक का विकास;
  • गेहूं पैदावार के पूर्वानुमान हेतु ‘फसल अनुरूपण मॉडल’ में पहली बार सुदूर संवेदी उत्पन्न फसल निवेश का उपयोग;
  • वर्षा विसंगति की संभाव्यता, उपग्रह से फसल स्वास्थ्य की जांच, मृदा विशेषताओं और सिंचित क्षेत्र के आधार पर अगेती, मध्यम तथा पछेती कृषि सूखा मौसम के फसल क्षेत्र के मानचित्रण हेतु कार्यप्रणाली का नियोजन;
  • करनाल जिले के लिए 27 समजातीय कृषि भूमि इकाइयों एवं जैव-भौतिक पहलुओं को जी.आई.एस. परिवेश में रखकर स्थान विशिष्ट निवेशों की सिफारिश;
  • सुदूर संवेदन एवं जी.आई.एस. का उपयोग करते हुए भूमि स्वरूप का चरित्रांकन एवं वर्गीकरण करने हेतु कार्यप्रणाली का विकास;
  • ‘क्वेफ्ट मॉडल’ का उपयोग करते हुए चावल, गेहूं तथा मक्का फसलों की लक्षित पैदावार के लिए ‘समजातीय उर्वरता इकाइयों’ का सृजन और नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की खुराकों की सिफारिश;
  • सुदूर संवेदन एवं जी.आई.एस. तकनीकों के माध्यम से बिहार में दिआरा भूमि, कृषि भूमि उपयोग विकल्प, फसल भेदभाव और अगेती, समय से तथा पछेती बुवाई फसलों के चित्रण (गेहूं एवं मक्का), बाढ़ की भरमार और जल की कमी के पैटर्न, इसकी गतिशीलता और नदी की गतिशीलता की जैव-भौतिक प्रक्रिया के चरित्रांकन हेतु कार्यप्रणाली का विकास; और 
  • बहु-स्पैक्ट्रल सुदूर संवेदी आंकड़ों का उपयोग करते हुए प्राकृतिक संसाधनों के चरित्रांकन हेतु एक ‘एकल परिमाण सूचकांक’ का विकास।

 

पादप जैव भौतिकी

  • चुम्बकीय तकनीक से मक्का, चना तथा सूरजमुखी के उपचारित बीजों की अंकुरण क्षमता एवं विकसित पौधों की जड़ विशेषता में वृध्दि हुई जिससे बीजों की बेहतर गुणवत्ता का पता चला। जड़ की बेहतर कार्यप्रणाली का सीमित जल परिस्थितियों के तहत गहरी मृदा परतों से जल एवं पोषक पदार्थ तत्व प्राप्त करने में उपयोग;
  • जल शोषण आइसोथर्म के विश्लेषण से बीजों का चुम्बकीय उपचार करने पर, अनुपचारित बीजों की तुलना में, ‘वीक बाईंडिंग साईटस’ में बढ़ोतरी;
  • गेहूं एवं चावल के बीजों में शुष्क सहिष्णुता की जांच के लिए शैथिल्य (हिस्टेरिसिस) विधि का प्रयोग; और
  • आण्विक अध्ययनों में आधारभूत विश्लेषण के लिए आसान सूचनागत युक्तियों का प्रयोग।

 

मौसम आधारित कृषि परामर्श सेवाएं

  • मध्यम श्रेणी मौसम पूर्वानुमान आधारित कृषि परामर्श सेवाओं को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान वेबसाइट (www.iari.res.in), टेलीफोन, समाचारपत्रों तथा व्यक्तिगत संपर्कों से दिल्ली तथा आसपास के किसानों को सफलतापूर्वक प्रसारित किया गया, जिससे वे लाभान्वित हुए। यह जानकारी सप्ताह में दो बार (मंगलवार व शुक्रवार) दी जाती है;
  • डब्ल्यू.टी.जी.आर.ओ.डब्ल्यू.एस. अनुरूपण मॉडल के प्रयोग से मध्यम श्रेणी मौसम पूर्वानुमान द्वारा गेहूं फसल के लिए अनुरूपण मॉडल, सुदूर संवेदन और जी.आई.एस. के उपयोग की महत्ता को जाना गया; तथा
  • कृषि निवेशों (सिंचाई, उर्वरकों और नाशकजीवनाशियों आदि) की अनुसूचीकरण के लिए मध्यम श्रेणी के मौसम पूर्वानुमान का सफलतापूर्वक प्रयोग।

 

विकसित प्रौद्योगिकियां

  • अधिक रिसाव वाली भूमि के प्रबंधन हेतु ‘सघनता तकनीक’;
  • कम गहराई पर प्रतिबाधा वाली मिट्टी की परतों के प्रबंध के लिए ‘चीजलर’ का उपयोग;
  • उत्पादकता बढ़ाने के लिए जल एवं नाइट्रोजन निवेशों के बेहतर उपयोग हेतु ‘क्यारी रोपण प्रौद्योगिकी’;
  • सुदूर संवेदन, जी.आई.एस. तथा अनुकरण युक्तियों के माध्यम से वास्तविक फसल समय और मृदा निगरानी प्रणाली; व

 

 

 

 

 

  • सरसों में विकिरण उपयोग दक्षता बढ़ाने हेतु ‘डिंब्राचिंग तकनीक’ ।