पिछले दस वर्षों के दौरान संभाग ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं
- सिंचाई द्वारा चने की उपज में आने वाली कमी पुष्पन के शमन के साथ संबद्ध थी जबकि पुष्पन के शमन का संबंध 29 तथा 42 केडी प्रोटीनों में आने वाली कमी तथा रूबिस्को प्रोटीन में होने वाली वृद्धि से था।
- गेहूं के मामले में प्रकाशसंश्लेषकों के लम्बवत स्थानांतरण में प्रतिबंध का कारण दाने के विकास का सीमित होना हो सकता है। कणिशिकाओं में प्रकाशसंश्लेषकों का स्थानांतरण सुदूर दानों की तुलना में निकटतम दानों में अधिक पाया गया।
- गेहूं की कणिशिकाओं में सुदूर स्थित दानों की बढ़वार, निकट स्थित दानों की तुलना में उच्च एकांतरिक श्वसन वाली पाई गई।
- गेहूं में बेन्जाइलेडिनीन से प्रकाशसंश्लेषण तथा प्रति बाली दाने के भार में वृद्धि हुई। गेहूं की सूखा सहिष्णु किस्म ने उच्च प्रकाशसंश्लेषण दर बनाए रखी तथा जल की कमी की स्थिति में एबीए अंश भी उच्च रहा।
- जब बीज पत्र छल्ले को प्रतीप अभिमुखन (रिवर्स ओरिएन्टेशन) अर्थात् माध्यम को छूते हुए प्लूमूल छोर के छल्ले की ओर संरोपित (इनाकुलेट) किया गया तो प्ररोह में कलिकाओं के लगने की आवर्तता उच्च रही।
- गेहूं में उच्च नाइट्रेट रिडक्टेज़ (एचएनआर) तथा निम्न नाइट्रेट रिडक्टेज़ (एनएनआर) जीनप्ररूप एन्ज़ाइम नाइट्रेट रिडक्टेज़ (एनआर) की सक्रियता के स्तर के मामले में दोगुने तक भिन्न थे। यौगिकों अर्थात् हार्मोनों तथा पॉलीएमिनों के बाहरी अनुप्रयोग की अनुक्रिया में एनआर सक्रियता में वृद्धि एलएनआर जीनप्ररूपों की तुलना में एचएनआर जीनप्ररूपों में अधिक थी।
- उद्ग्रहण की दोनों यांत्रिकियों अर्थात् निम्न संबद्धता परिवहन प्रणाली (एलएटीएस) और उच्च संबद्धता परिवहन प्रणाली (एचएटीएस) के अन्तर्गत माध्यम से नाइट्रेट (उच्च वीमैक्स) के उच्च स्तरों पर एचएनआर के ग्रहण करने की मात्रा अधिक थी। पूर्णत: उत्प्रेरणशील एचएटीएस की उपस्थिति संभवत: विलुप्त होते संसाधन के लिए प्रतियोगिता की दृष्टि से उल्लेखनीय रूप से लाभदायक थे।
- एचएटीएस के लिए केएम में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ा हुआ स्तर अपरिवर्तित रहा लेकिन इष्टतम कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर की तुलना में वीमैक्स उच्च पाया गया। एचएटीएस की सक्रियता तथा अभिव्यक्ति, कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने पर बढ़ गए।
- गेहूं के जीनप्ररूपों में जड़ के आकृतिविज्ञानी गुणों जैसे जड़ के द्रव्यमान, आयतन, सतह क्षेत्र व कुल लंबाई में स्पष्ट विविधता देखी गई जिसका कारण अलग-अलग फास्फोरस उद्ग्रहण क्षमता का होना था। वीएएम का टीका लगाने के कारण फास्फोरस की सांद्रता में उल्लेखनीय वृद्धि से फास्फोरस प्राप्त करने में वीएएम की प्रमुख भूमिका का संकेत मिलता है।
- उच्च तापमान पर बोए गए संवेदनशील जीनप्ररूपों ने सामान्य तापमान पर बोए गए जीनप्ररूपों की तुलना में एमाइलेज़ सक्रियता में कमी प्रदर्शित की।
- चने तथा गेहूं के जीनप्ररूपों में सहिष्णुता व संवेदनशीलता झिल्ली क्षति, क्लोरोफिल अंश तथा रसापकर्षण क्षमता से संबद्ध थे।
- सर्वोच्च उपज प्राप्त करने के लिए सशक्त सिंक का निर्माण उच्च जीवद्रव्य के लिए अनिवार्य है।
- जल, उच्च तापमान तथा लवणता संबंधी प्रतिबल से हाइड्रोजन परॉक्साइड जैसे मुक्त मूलक संग्रहित होते हैं जिसके परिणामस्वरूप लिपिड परॉक्सीडेशन (थियोबारबीटयूरेटिक अम्ल सक्रिय पदार्थ) सृजित होते हैं व झिल्ली क्षतिग्रस्त होती है।
- जल, उच्च तापमान तथा लवणता प्रतिबल सहिष्णुता जैसे गुण निम्न हाइड्रोजन परॉक्साइड संचयन, लिपिड परॉक्सीडेशन, झिल्ली क्षति, सुपरॉक्साइड डिसम्यूटेज़ की उच्च सक्रियता, एस्कोरबेट परॉक्सीडेज़, ग्लूटाथियोन रिडक्टेज़ तथा केटालेज़ से संबद्ध पाए गए।
- जड़ों में घुलनशील शर्कराओं विशेषकर अवकरणशील (रिडयूसिंग) शर्कराओं के उच्च स्तरों से जलाक्रांत अवस्था के प्रति सहिष्णुता प्राप्त होती है।
- सहिष्णु जीनप्ररूप भी सुक्रोज़ सिंथेज तथा एल्कोहॉल डिहाइड्रोजनेज़ की अधिक सक्रियता व जीन अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं जो एरिंगकाइमा निर्माण में सम्मिलित शर्करा गतिशीलन, अवायवीय श्वसन और ज़ाइलोग्लूकॉन एंडोट्रांसग्लूकोसाइलेज़ (एक्सईटी) में सम्मिलित हैं।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बढ़े हुए स्तरों के परिणामस्वरूप C3 फसल के प्रकाशसंश्लेषण में वृद्धि हुई। CO2 के उच्च स्तर की स्थिति में उगाए गए पौधों को उस स्थिति से हटाने के पश्चात् प्रकाशसंश्लेषण पुन: पुराने स्तर पर आ गया, इष्टतम CO2 स्थिति में यह उन पौधों की तुलना में कम था जो लंबी अवधि तक CO2 के उच्च स्तर पर रखे गए थे।
- गेहूं की छोटे दानों वाली किस्म कल्याण सोना तथा प्रति बाली अधिक दानों की संख्या वाली किस्म एचडी 4502 में बड़े दानों वाली किस्मों कुंदन और बी 449 की तुलना में CO2 के बढ़े हुए स्तर के अन्तर्गत उपज में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि देखी गई।
- गेहूं की कुंदन और कल्याण सोना किस्मों को जब CO2 के बढ़े स्तर के अन्तर्गत उगाया गया तो प्रकाशसंश्लेषण का निम्न विनियमन प्रदर्शित हुआ जो पत्तियों में रूबिस्को प्रोटीन के घटने तथा शर्करा का स्तर बढ़ने से संबंधित था।
- CO2 के बढ़े हुए स्तर से कार्बोहाइड्रेट अंश में वृद्धि होने के कारण नमी प्रतिबल के प्रभाव में आंशिक रूप से सुधार हुआ जो सरसों की पत्तियों में जल के स्तर में सुधार के द्वारा संभव हुआ था।
- ब्रैसिका जुन्सिया में CO2 की वृद्धि से इपिडर्मन व पालीसेड पेरनकाइमा कोशिकाओं के आकार में वृद्धि, प्रति कोशिका क्लोरोप्लास्ट की संख्या में वृद्धि और प्रति क्लोरोप्लास्ट स्टार्च के दानों में वृद्धि पाई गई।
- बढ़े हुए CO2 के कारण मूंग के पौधों के पत्ती क्षेत्र, गांठों की संख्या तथा गांठों के भार में वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फसल के जीवद्रव्य व उसकी उपज में वृद्धि हुई।
- बढ़ी हुई CO2 के अन्तर्गत उगाए गए बरसीम में घुलनशील प्रोटीन तथा कुल पत्ती नाइट्रोजन में कमी और कार्बन : नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि प्रदर्शित हुई।
- दशहरी आम की तुलना में आम्रपाली आम का जल्दी पकना पॉलीगैलेक्टूरोनेज़ (पीजी) तथा पैक्टिन मिथाइल इस्टरेज़ (पीएमई) की उच्च सक्रियता से संबंधित पाया गया।
- आम के फलों को निर्वात स्थिति में रखने से सामान्य स्थिति की तुलना में परिपक्वन को 10-12 दिन विलंबित किया जा सकता है, तथापि ऐसा करने पर फलों का स्वाद सामान्य नहीं पाया गया।
- टमाटर के फलों को 24 घण्टों के लिए 8-10 मि.ली. इथेनॉल से उपचारित करके उनका परिपक्वन 30 दिन तक विलंबित किया गया।
- टमाटर के फलों के इथेनॉल उपचार से क्लाइमैट्रिक पीक 3-6 दिन तक विलंबित हुआ जिससे इथेलीन का निर्माण कम हुआ व कोषिका भित्ती की सक्रियता घट गई और पीजी तथा पीएमई जैसे एंजाइम अपघटित हो गए।
- गुलदाउदी में पंखुडि़यों का जीर्णन काल ताजे भार व घुलनशील प्रोटीन में होने वाली क्षति तथा आयन के रिसाव, कोशिका भित्ती अपघटित करने वाले एन्जाइमों व एन्टी ऑक्सीडेंट एन्जाइमों में वृद्धि से संबद्ध पाया गया।
- 5-सल्फोसेलीसिलिक अम्ल (100 पीपीएम) से ग्लेडियोलस को गुलदानों में लंबे समय तक ताजा रखा गया।
- ऐजास्पिरलम तथा कुर्थिया का सम्मिलित टीका लगाने से गेहूं में क्लोरोफिल अंश, नाइट्रेट रिडक्टीज़ सक्रियता तथा उपज में वृद्धि हुई।
विकसित प्रौद्योगिकियां
- फसल पौधों में CO2 के बढ़े हुए स्तर पर अध्ययनों के लिए खुले हुए शीर्ष वाली कोष्ठ प्रौद्योगिकी विकसित की गई।
- टमाटर के फलों की निधानी आयु बढ़ाने के उद्देश्य से फलों को इथेनॉल से उपचारित करने की मानकीकृत तकनीक विकसित की गई।
- अरहर तथा चना के उप-पौधों के विभिन्न प्रकारों से प्लांटलेटों के पुनर्जनन के प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं।
- विभिन्न प्रतिबलों (सूखा/तापमान/लवणता) के लिए जीनप्ररूपों की छटाई हेतु नई तकनीकें (झिल्ली स्थिरता सूचकांक) विकसित की गईं हैं।
उपलब्ध सुविधाएं
प्रकाशसंश्लेषण प्रणाली, गैस क्रोमेटोग्राफ, यूवी-दृष्टव्य स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, रेफ्रिजरेटिड सेंट्रीफ्यूग (फ्लोर मॉडल), रेफ्रिजरेटिड सेंट्रीफ्यूग (टेबल टॉप मॉडल), आसमोमीटर, आईस फ्लेंकिंग मशीन, डीप फ्रीजर (-800सी) डी-फ्रीजर (-200सी), पीसीआर मशीन, जेल डाक्यूमेंटेशन सिस्टम, तापमान नियंत्रक उष्मायक शेकर, ट्राइनोकुलर माइक्रोस्कोप, ओपेन टॉप चैम्बर्स, फ्री एयर कार्बन डाइऑक्साइड इनरिचमेंट (एफएसीई), एटॉमिक एब्ज़ारप्शन स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, हाइब्रिडडाइजेशन ओवन, रेडियोट्रेसर प्रयोगशाला, जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस, कांच घर आदि।