कवकविज्ञान

1.1   जैववर्गिकी तथा पहचान सेवाएं

हरबेरियम क्रिप्‍टोगेमी इन्‍डीई ओरिएंटेलिस (एचसीआईओ)

कवकीय जैव विविधता में वृद्धि : पचास किस्‍म नमूनों सहित विभिन्‍न समूहों के रोगग्रस्‍त (772) कवकीय नमूने एचसीआईओ में प्रविष्‍ट किये गए और इस प्रकार अब इनकी कुल संख्‍या 48,222 हो गई है।

नई प्रजातियां प्रस्‍तावित : कवकीय जैव विविधता में जोड़ी गई कुछ नई प्रजातियां हैं : आल्‍टरनेरिया पाल्‍मीवोरा, एस्‍टेरीना एरिडीसिकोला, ए. कैसीई, ए. एमसीसियाना, एस्‍टरडिएला एमसीसियाना, सर्कोस्‍पोरा एटाइलोसीई, सी. मिचीगेना, सी. नीम्‍फीज़ेना, मेल्‍योलास्‍टर एपोरूसी, मेलियोओला वास्‍तवयानी, एम. लोफोपैटालीलोला, एम. कायराटीई, पैसालोरा, सिसेलपिनीकोला, स्‍यूडोसर्कोस्‍पोरा, एम्‍पीलोसिसीकोला, पी. बिस्‍कोफिगेरा, पी. सिसेलपिनयाना, पी. कोकूलिगेना, पी. थम्‍बरजियाना, शिफनेरूला विडीलीई, सर्कीनेला लिमोनीई, स्‍टेनेला पेन्‍टाट्रोपिडीकोला और एस. शलेईकेरियोलियोसा

भारतीय टाइप कल्‍चर संकलन (आईटीसीसी) (आईटीसीसी सूचीपत्र)

रखरखाव तथा नई प्रविष्टियां : मेस्‍टीगोमाईकोटिना, जाइगोमाइकोटिना, एस्‍कोमाइकोटिना और डेयूटेरोमाइकोटिना वर्ग के लगभग 3663 कवकीय कल्‍चरों का आईटीसीसी में संरक्षण किया जा रहा है। इस संकलन को 143 विभिन्‍न कवकीय कल्‍चरों को जोड़कर और अधिक समृद्ध बनाया गया है। उल्‍लेखनीय पादप रोगजनक प्रविष्टियों में शामिल हैं : एक्रेमोनियम रोज़ेऑग्रीसेयम, करवूलेरिया फैलेक्‍स, सी. एराग्रोस्टिडिस, सी. क्‍लावाटा, फ्यूज़ेरियम, फ्यूज़ारॉयडेस, टेलारोमाइसिस फ्लेवस, स्‍टेमफिलियम वैसीकेरियम, स्‍क्‍लेरोटियम डेलफिनी आदि।

कल्‍चर आपूर्ति तथा पहचान सेवाएं : ज़ाइगोमाइसिटीस (38), हाइपोमाइसिटीस (91), एस्‍कोमाइसिटीस (22), पैनीसिली (17), एस्‍परजिली (27), कोइलोमाइसिटीस (12) तथा फ्यूज़ेरिया (98) वर्ग के कुल 305 वैध कल्‍चर आपूर्त किये गए। इसके अतिरिक्‍त हाइपोमाइसिटीस, कोइलोमाइसिटीस और ज़ाइगोमाइसिटीस वर्ग के 345 कल्‍चर नमूने प्रजाति स्‍तर तक पहचाने गए हैं।

जीनस कीटोमियम और एस्‍परजिलस का लक्षण वर्णन : कीटोमियम की 18 विभिन्‍न प्रजातियों का आकृतिविज्ञानी लक्षण वर्णन किया गया तथा उन्‍हें आईटीसीसी में परिरक्षित किया गया है। दिल्‍ली के बाजार से एकत्रित किये गए फलों/बीजों से एस्‍परजिलस के 20 पृथक्‍करों को उनके कॉलोनी संबंधी गुणों तथा सूक्ष्‍मदर्शी पर्यवेक्षणों नामत: शंक्‍वाकार शीर्ष, कोनीडियोफोर, वेसाइकिल, स्‍टेरिगमाटा और कोनेडिया के आधार पर पांच समूहों में भंडारित किया गया है। समूह 1 को ए. फ्लेवस के रूप में, समूह 2 को ए. पेरासिटीकस के रूप में, समूह 3 को ए. ऑक्रेसियस के रूप में, समूह 4 को ए. टेरियस के रूप में और समूह 5 को ए. नाइज़र के रूप में संदर्भित किया गया है।

कवकीय रोग (गेहूं)

चपाती गेहूं की किस्‍मों में तना रतुआ के विरूद्ध प्रतिरोधिता की वंशानुगतता : गेहूं की तीन किस्‍मों नामत: जीडब्‍ल्‍यू 322, एचयूडब्‍ल्‍यू 533 और एचडब्‍ल्‍यू 2045 का पक्‍सीनिया ग्रेमिनीस एफएसपी ट्रिटिकी के तीन रोगप्ररूपों नामत: 21 (9 जी 5), 40ए (62 जी 29) और 117 ए (36 जी 2) के साथ आनुवंशिक विश्‍लेषण करने पर जीडब्‍ल्‍यू 322 तथा एचयूडब्‍ल्‍यू 2045 के प्रति प्रतिरोध के लिए तीन प्रभावी स्‍वतंत्र जीनों तथा एचयूडब्‍ल्‍यू 533 में प्रतिरोध के विरूद्ध दो प्रभावी स्‍वतंत्र जीनों को F2 जनसंख्‍या में पाया गया। रोगप्ररूप 117 ए (36 जी 2) के साथ BC1 और  BC2 के विश्‍लेषण से उपरोक्‍त निष्‍कर्षों की पुष्टि हुई। रोगप्ररूप 21 (9 जी 5) की परीक्षण किस्‍मों के अन्‍तर-संकरों (द्विगुण प्ररूपी संकरों) के F2 पृथक्‍करण से कोई संवेदी पृथक्‍कर नहीं दिखाई दिया जिससे इन किस्‍मों में कम से कम एक सामान्‍य जीन की उपस्थिति का संकेत मिलता है। पौधों पर मुरझान प्रभाव के आधार पर जीडब्‍ल्‍यू 322 और एचडब्‍ल्‍यू 2045 में Sr2 जीन की वयस्‍क पौधा प्रतिरोध के रूप में पहचान की गई।

 

पीसीआर द्वारा (क) सी. ग्‍लोबोसम 8 ग्राम/कि.ग्रा. के साथ मृदा सुधार (लेन 1) तथा (ख) सी. ग्‍लोबोसम के साथ 106 प्रति मि.ली. की दर से छिड्के गए पत्‍ती नमूनों (लेन 2) तथा (ग) सी. ग्‍लोबोसम से प्राप्‍त डीएनए (लेन 3) में सीजी 5 पी (फॉरवर्ड प्राइमर) तथा सीजी 2 (2) (रिवर्स प्राइमर) के रूप में उल्लिखित विशिष्‍ट प्राइमरों का उपयोग करके कीटोमियम ग्‍लोबोसम की पहचान, लेन एम: मार्कर

 

कीटोमियम ग्‍लोबोसम जैव संरूप की दक्षता : सी. ग्‍लोबोसम (सीजी 2) का डब्‍ल्‍यूपी संरूप नियंत्रित स्थिति की तुलना में पत्‍ती रतुआ संक्रमण (पक्‍सीनिया ट्रिटिसिना) के संक्रमण की गहनता को कम करने में 10 प्रतिशत अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ। इससे टीका लगाने के पूर्व पत्तियों पर 107 सीएफयू/मि.ली. की दर से छिड़काव करने पर गहनता में 100 प्रतिशत कमी देखी गई। इस जैव संरूप से आलू के पछेती झुलसा के प्रकोप में कमी देखी गई जो नियंत्रित अवस्‍था में 6 प्रतिशत था और इस उपचार से घटकर 0.25 प्रतिशत रह गया। नियंत्रित स्थिति की तुलना में उपचारित प्‍लाटों में आलू की उपज में 30 प्रतिशत वृद्धि देखी गई।

आईटीएस क्षेत्र पर आधारित बाईपोलेरिस प्रजातियों में विविधता : बाइपोलेरिस सोरोकिनयाना के 12 पृथक्‍कर तथा बी. स्‍पेसीफेरा, बी. टेट्रामेरा, बी. माइडिस और बी. ओराइज़ी, प्रत्‍येक के दो पृथक्‍करों का आईटीएस क्षेत्र पर आनुवंशिक विविधता के आधार पर विश्‍लेषण किया गया। आईटीएस-1 क्षेत्र के क्रम विश्‍लेषण से यह प्रदर्शित हुआ कि बी. सोरोकिनयाना पृथक्‍करों ने आपस में 99-100 प्रतिशत क्रम समानता में भागीदारी की, जबकि बी. स्‍पेसीफेरा तथा बी. टेट्रामेरा पृथक्‍करों के बीच 92 प्रतिशत समानता व बी. ओराइज़ी और बी. माइडिस पृथक्‍करों के बीच केवल 30 प्रतिशत क्रम समानता थी।

रोगों के विरूद्ध प्रतिरोध के लिए छटाई : भा.कृ.अ.सं. से 632 प्रगत गेहूं प्रविष्टियों में से 12 को परीक्षण स्‍थलों पर सभी तीनों रतुओं के विरूद्ध प्रतिरोधी के रूप में पहचाना गया। संस्‍थान द्वारा विकसित 105 प्रगत गेहूं वंशक्रमों में से 51 को जब अस्‍टीलागो सेगेटम ट्रिटिकी से कृत्रिम रूप से संक्रमित किया गया तो उन्‍हें खुले कंडुवे के संक्रमण से मुक्‍त पाया गया।

आच्‍छद झुंसा उत्‍पन्‍न करने वाले राइज़ोक्‍टोनिया सोलेनी का आण्विक लक्षण वर्णन : आर. सोलेनी के 25 पृथक्‍करों का पीसीआर-आरएपीडी तकनीक के माध्‍यम से गुणनिर्धारण किया गया। छांटे गए 23 प्राइमरों में से 10 प्राइमर युग्‍मों में बहुरूपण के उच्‍च प्रतिशत के साथ उत्‍पादनशील तथा स्‍कोर करने योग्‍य पट्टियां देखी गईं। ओपीजेड-20 तथा ओपीएफ-06 नामक प्राइमर पृथक्‍करों में भेद स्‍थापित करने में उपयोगी पाए गए। जेकॉर्ड समानता गुणांक के आधार पर चार प्रमुख समूह बनाए गए। सर्वाधिक समानता (84 प्रतिशत) केरल से प्राप्‍त किये गए। आरएस-14 तथा आरएस-15 पृथक्‍करों के बीच पाई गई जबकि सबसे कम समानता (17 प्रतिशत) आरएस-25 (नई दिल्‍ली-मक्‍का) तथा आरएस-20 (सिक्किम) पृथक्‍करों के बीच देखी गई।

खेत में कवकनाशियों की दक्षता : पांच कवकनाशियों नामत: मेटामिनोस्‍ट्रोबिन 20 एससी, सैनिट 70 डब्‍ल्‍यूडीजी (मेटीरेम), ताकत 75 डब्‍ल्‍यूपी (कैप्‍टान +  हैक्‍साकोनाज़ोल), कोनटॉफ 5 एससी (हैक्‍साकोनाज़ोल), धानटीम 75 डब्‍ल्‍यूपी (ट्राइसाइक्‍लाज़ोल) का परीक्षण किस्‍म के रूप में पूसा बासमती को लेते हुए नियंत्रित अवस्‍था के साथ आच्‍छद झुलसा के विरूद्ध विभिन्‍न सांद्रताओं में परीक्षण किया गया। सभी कवकनाशी आच्‍छद झुलसा के विरूद्ध परीक्षण में प्रभावी पाए गए। ताकत 75डब्‍ल्‍यूपी को 1.5 ग्रा./लीटर की दर पर सर्वाधिक प्रभावी पाया गया जिससे रोग में 53.1 प्रतिशत कमी देखी गई जिसके बाद क्रमश: 2.0 मि.ली./ली. की दर से कोनटॉफ 5 एससी (50 प्रतिशत) तथा मेटोमिनोस्‍ट्रोबिन 20 एससी को 2.0 मि.ली./ली. की दर से प्रभावी पाया गया (48.2 प्रतिशत)।

आच्‍छद झुलसा के विरूद्ध प्रतिरोध के लिए छटाई : खेत में कृत्रिम इपीफाइटोटिक स्थितियों के अन्‍तर्गत आच्‍छद झुलसा के विरूद्ध भा.कृ.अ.सं., नई दिल्‍ली तथा चावल अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद से प्राप्‍त 408 प्रविष्टियों में से आरपी 4092-365-117 (आईईटी 15120 X आईआर 64), ओआर 2351-6 (महानदी पीएआरबीसी2), सीएन 1387-51-10-4 (आईआर 29429 X स्‍वर्ण), आईएचआरटी-एमएस (आईईटी 20740), एनडीआर 621, टीकेएम-6, सोनासाल, बिनाम, सीआर 2340-5, एचबीसी-19 तथा पूसा 1554 की एसपीएस श्रृंखला को आशाजनक पाया गया।

बासमती चावल में प्रध्‍वंस का प्रकोप : खरीफ 2008 के दौरान उत्‍तर प्रदेश और हरियाणा के चावल के खेती वाले क्षेत्रों में प्रध्‍वंस रोग का असामान्‍य प्रकोप देखा गया। प्रध्‍वंस का यह प्रकोप फसल की नर्सरी से पुष्‍पन तथा परिपक्‍वन अवस्‍थाओं में देखा गया। फसल मौसम के दौरान जिन स्‍थलों का सर्वेक्षण किया गया वहां पूसा बासमती-1 तथा पूसा 1121 में संक्रमण की गहनता बहुत अधिक पाई गई। मथुरा में किसानों के खेतों में पूसा बासमती 1 की फसल में 40 प्रतिशत तक कंठ प्रध्‍वंस देखा गया।

मक्‍का

रोगों का प्रतिरोध : कृत्रिम संचारण (इनाकूलेशन) स्थितियों में माइडिस पत्‍ती झुलसा (एमएलबी)  और पट्टीदार पत्‍ती तथा आच्‍छद झुलसा (बीएलएसबी) के विरूद्ध मक्‍का के 219 श्रेष्‍ठ जीनप्ररूपों का मूल्‍यांकन किया गया। इनमें से 18 वंशक्रमों डीएमआर 428, डीएमआर 432, डीएमआर 365, डीएमआर 383, डीएमआर 389, डीएमआर 391, डीएमआर क्‍यूओएम-3, डीएमआर क्‍यूओएम-5, डीएमआर 1301, डीएमआर 1306, डीएमआर 1307, डीएमआर 1313, डीएमआर 1315, डीएमआर 1322, डीएमआर 1324, डीएमआर 1325, डीएमआर 1329 और डीएमआर 1343 में दोनों रोगों के विरूद्ध सहिष्‍णुता देखी गई। एमएलबी तथा बीएलएसबी के विरूद्ध मूल्‍यांकित किये गए 90 अन्‍तर प्रजनकों में से तीन वंशक्रमों (पीढ़ी 72278-7; 6589-2 ओर 6584-2) में एमएलबी रोग के विरूद्ध प्रतिरोधता देखी गई जबकि बीएलएसबी के विरूद्ध किसी में प्रतिरोधिता नहीं थी। राष्‍ट्रीय जीन बैंक, एनबीपीजीआर, नई दिल्‍ली में एमएलबी के लिए प्रतिरोधी स्रोत के रूप में मक्‍का के एक अन्‍तर प्रजनित वंशक्रम एससी 24-(92)-3-2-1-1 को पंजीकृत किया गया (पंजीकरण संख्‍या आईएनजीआर 08117)।

चना

चना के फ्यूज़ेरियम झुलसा के विरूद्ध पूसा 5एसडी और पूसा बायो-पैलेट संरूपों का मूल्‍यांकन : पूसा बायो-पैलेट 4जी (पीबीएस 10 जी) आधारित ट्राइकोडर्मा विरडी के मृदा में उपयोग तथा पूसा 5एसडी और कार्बोक्सिन पर आधारित टी. हार्जीएनम के साथ बीजोपचार की अन्‍तरक्रिया सर्वोच्‍च बीज अंकुरण (59.1 प्रतिशत), प्ररोह की लंबाई (54 सें.मी.), जड़ की लंबाई (15.3 से.मी.), दाना उपज (18.88 क्विं/है.) और न्‍यूनतम झुलसा प्रकोप (9.4 प्रतिशत) के लिए चना में सर्वश्रेष्‍ठ पाई गई।

राइज़ोक्‍टोनिया बटाटीकोला और आर. सोलेनी पृथक्‍करों के बीच विविधता : चना की 10 किस्‍मों के एक सेट पर आर. बटाटीकोला के 23 पृथक्‍करों के उग्रता संबंधी विश्‍लेषण से 6 रोगप्ररूपों को विलगित किया गया। ये रोगप्ररूप समूह पृथक्‍करों के कृषि-पारिस्थितिकीय क्षेत्रों से घनिष्‍ठ रूप से सह-संबंधित नहीं थे। 26 टीईएन-एमईआर प्राइमर जो 0.40 आनुवंशिक समानताओं पर 6 समूहों में पृथक्‍क किये गए थे, उनसे सृजित 226 आरएपीडी मार्करों के गणितीय औसत विश्‍लेषण के साथ गैर-भारयुक्‍त युग्‍म-समूह विधि का उपयोग किया गया। प्राइमर ओपीएन-4, ओपीएन-12 और ओपीएन-20 विभिन्‍न दलहनी फसलों से पृथक्‍क किये गए आर. सोलेनी के 360 पृथक्‍करों में से क्षेत्र विशिष्‍ट समूहीकरण के लिए उपयुक्‍त पाए गए और ये संवर्धनात्‍मक तथा आकृतिविज्ञानी गुणों जैसे बढ़वार व्‍यास, हाइफन चौड़ाई, स्‍क्‍लेरोटिक की संख्‍या और आकार की दृष्टि से भिन्‍न-भिन्‍न थे। इनमें से अधिकांश पृथक्‍कर रोगजनकता के परीक्षण के दौरान लोबिया, मूंग तथा उड़द के लिए रोगजनक पाए गए।

पीसीआर आधारित एफ. ऑक्‍सीस्‍पोरम एफ.एसपी. साइसेरिस की नैदानिकी : आईटीएस क्षेत्र (एफओसी एफ2 : एएएसीसीसीसीजीटीजीटीजीएएसीएटीएसीसी तथा एफओसी आर2 : टीटीजीएएएटीजीएसीजीसीटीसीजीएएसीएजी) से व्‍युत्‍पन्‍न प्राइमरों का उपयोग करके पीसीआर आधारित नैदानिकी का विकास चने में झुलसा उत्‍पन्‍न करने वाली एफ. ऑक्‍सीस्‍पोरम एफएसपी साइसेरिस की पहचान के लिए किया गया। विभिन्‍न स्‍थानों जैसे भा.कृ.अ.सं., नई दिल्‍ली; रांची; गुरदासपुर; रोपड़; फरीदकोट; लुधियाना; जयपुर; गंगानगर; उदयपुर; सरदारगढ़ और हिसार से प्राप्‍त किये गए 11 पृथक्‍करों के विरूद्ध प्रोटोकॉल का सत्‍यापन किया गया है (चित्र-2)।

 

आईटीएस क्षेत्र क पीसीआर प्रवर्धन द्वारा फ्यूज़ेरियम ऑक्‍सीस्‍पोरम एफ.एसपी. साइसेरस (एफओसी) पृथक्‍करों (लेन 1-11) की पहचान। लेन 12 = फ्यूज़ेरियम ऑक्‍सीस्‍पोरम एफ.एसपी. साइसेरस, लेन 13 = राइज़ोक्‍टोनिया बटाटीकोला, लेन एम - 1 केबी बाएं छोर पर आण्विक मार्कर

द्वितीयक चयापचयजों तथा ट्राइकोडर्मा प्रजातियों द्वारा उत्‍पन्‍न कोशिका भित्‍ती अपघटन करने वाले एन्‍ज़ाइमों का लक्षण वर्णन : जीएस-एमएस/एमएस द्वारा लक्षण वर्णन किये गए ट्राइकोडर्मा प्रजातियों के कुछ द्वितीय चयापचयज हैं : 6-नोनीलीन एल्‍कोहल, मासोइलेक्‍टॉन, 3-(2-प्रोपेनाइल)-4-(हैक्‍सा-2, 4-डाइनाइल)-2 (5एच फ्यूरानोन), 1-मिथाइल साइक्‍लोहैक्‍सेन, पालमिटिक अम्‍ल, कीटोट्रायल और कोनिनगिन-ए। ट्राइकोडर्मा प्रजातियों द्वारा कोशिका भित्‍ती का अपघटन करने वाले एन्‍ज़ाइमों की निगरानी की गई। 3 ग्‍लूकानेज़ टी. विरिडी में सर्वोच्‍च थी जिसके बाद टी. वाइरेंस और टी. हारजिएनम का स्‍थान था, जबकि चिटीनेज़ सक्रियता टी. वाइरेंस में सर्वोच्‍च थी जिसके बाद टी. विरिडी तथा टी. हारजिएनम का स्‍थान था।

प्रमुख रोगों के विरूद्ध जीनप्ररूपों का मूल्‍यांकन : प्रमख रोगों के विरूद्ध जिन 127 जीनप्ररूपों का मूल्‍यांकन किया गया उनमें से चना के 10 जीनप्ररूप नामत: एच04-31, एच04-87, डब्‍ल्‍यूसीजी 2000-एच, बीजी 391, जीएनजी 1778, आईपीसी 2005-64, फुले जी 31-01, एचके 04-178, आईपीसीके 2003-56 और एचके 04-162 झुलसा के विरूद्ध प्रतिरोधी थे, जबकि केवल दो नामत: एच04-11 तथा एच 99-9 एस्‍कोकाइटा झुलसा के विरूद्ध प्रतिरोधी थे।

उड़द

प्रमुख रोगों के विरूद्ध प्रतिरोध के स्रोत : तीन प्रविष्टियों नामत: पी 1059, पी 1065 तथा पी 1070 में सार्कोस्‍पोरा पत्‍ती चित्‍ती, मैक्रो‍फोमिना झुलसा और पीले चित्‍ती विषाणु जैसे प्रमुख रोगों के विरूद्ध बहु प्रतिरोधी प्रतिक्रियाएं प्रदर्शित हुईं।
     
मूंग

मूंग के प्रमुख रोगों का समेकित प्रबंधन : विशेष स्थितियों के अन्‍तर्गत मूंग के प्रमुख रोगों के लिए समेकित प्रबंध की कार्यनीति विकसित की गई। थियामैथोक्‍सेम 70 प्रतिशत डब्‍लयूएस (क्रूइज़र) + पूसा 5 एसडी (टी. वाइरेंस), प्रत्‍येक को 4 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से बीजोपचार के साथ बुवाई के 21 और 35 दिन बाद थियामैथोक्‍सेम 25 प्रतिशत डब्‍ल्‍यूजी (एक्‍टारा) 0.02 प्रतिशत तथा कार्बनडेजि़म (बेविस्टिन) 0.05 प्रतिशत के मिश्रण के पत्तियों पर दो छिड़काव से सर्वोच्‍च बीज अंकुरण, प्ररोह और जड़ लंबाई व दाना उपज में वृद्धि देखी गई जबकि नम जड़ गलन, सार्कोस्‍पोरा पत्‍ती चित्‍ती व पीले चित्‍ती रोग के विकास में मूंग के मामले में न्‍यूनता पाई गई (चित्र-3)। तथापि उपरोक्‍त मिश्रण के साथ एक छिड़काव करते हुए (प्रति रूपये 10.91 रूपये का लाभ) समान बीजोपचार को दो छिड़कावों की तुलना में अधिक किफायती पाया गया (प्रति रूपये 7.92 रूपये का लाभ)।

 

मूंग में सार्कोस्‍पोरा पत्‍ती चित्‍ती, पीले चित्‍ती विषाणु, पौधे की पुष्‍टता तथा दाना की उपज पर कवकनाशी के उपयोग के साथ पत्‍ती पर छिड़कावों तथा बीजोपचार का प्रभाव। एसटी-1 =  थियामैथोक्‍सेम (क्रूसज़र) +  पूसा 5 एसडी- 4 ग्रा./कि.ग्रा. के साथ बीजोपचार; एफएस 1 = बैविस्टिन का एक छिड़काव (0.05 प्रतिशत) + थियामैथाक्‍सेम (एक्‍टारा) 0.02 प्रतिशत, बुवाई के 21 दिन बाद; तथा एफएस-2 = बैविस्टिन के दो छिड़काव (0.05 प्रतिशत) + थियामैथाक्‍सेम (एक्‍टारा) 0.02 प्रतिशत, बुवाई के 21 और 35 दिन बाद

मटर

चूर्णिल फंफूद के विरूद्ध प्रतिरोधिता के स्रोत : खेत मटर के 16 जीनप्ररूप नामत: आईएफपीएस-19 टी, पंत पी25डी, पंत पी79, पंत पी107टी, वीएल 47सी, डीडीआर 7डी, डीडीआर 81टी, केपीएमआर 745टी, केपीएमआर 747, केपीएमआर 814, केपीएमआर 815डी, एनडीपी 7-101, एनडीपी7-201डी, एचएफडी 528डी, एचएफपी 531डी और एचएफपी 4आर चूर्णिल फंफूद के विरूद्ध प्रतिरोधी पाए गए।

अरहर

अरहर में धीमे मुरझान के घटक : क्‍लोनीकृत किये गए (एन) तथा उष्‍मायन अवधि (आईपी) वाले अनेक पौधे अरहर के जीनप्ररूपों में धीमे मुरझान के घटक के रूप में पहचाने गए और उन्‍होंने उल्‍लेखनीय सह-संबंधता प्रदर्शित की। एयूडीपीसी तथा प्रतिरोध घटकों के बीच का संबंध एयूडीपीसी = 4845.799  16.127 (एन)  139.302 (आईपी) था जिससे निर्धारण के घटक (आर2) के 0.986 के साथ गुणांक की दो विविधताओं के बीच सांख्यिकीय संबंध का पता चलता है।

पीले चित्‍ती विषाणु संक्रमण की निगरानी के लिए परावर्तन अवरक्‍त प्रकाश : पीले चित्‍ती विषाणु संक्रमण की निगरानी के लिए आर565, आर888, आर1133, आर1700 और आर2250 वर्णक्रम संकेतों का उपयोग किया गया। दृष्‍टव्‍य, निकट के अवरक्‍त प्रकाश और अल्‍प तरंगीय अवरक्‍त प्रकाश क्षेत्रों में दृष्‍टव्‍य सोयाबीन वितान परावर्तन (आर) पीले चित्‍ती विषाणु के संक्रमण के कारण प्रभावित हुए (चित्र 4)। पीली चित्‍ती विषाणु से संक्रमित सोयाबीन की फसल के वितान में दृष्‍टव्‍य (आर565) में आर, निकट अवरक्‍त (आर888 और आर1133) तथा अल्‍प तरंगीय अवरक्‍त (आर1700 और आर2250) क्षेत्र में वृद्धि प्रदर्शित हुई (चित्र 4)।

 

 

चित्र 4 - पीले चित्‍ती विषाणु से संक्रमित सोयाबीन की पत्तियों में वर्णकर्मीय परावर्तन की पद्धति

 स्‍वस्‍थ (नीला); गहनता श्रेणी 2 (गुलाबी); गहनता श्रेणी 7 (पीला)

तोरिया और सरसों

विभिन्‍न रोगों के विरूद्ध ब्रैसिका के प्रतिरोधी स्रोतों की पहचान : प्रविष्टियों पीबीसी 9221 और जीएसएल 1 ने सफेद रतुआ (डब्‍ल्‍यूआर), मृदु रोमिल फंफूद (डीएम) और तना सड़न (एसआर) के विरूद्ध प्रतिरोधिता प्रदर्शित की। प्रविष्टियों ईसी 338997 और एनआरसीडीआर 515 ने सफेद रतुआ (डब्‍ल्‍यूआर), चूर्णिल फंफूद (पीएम) के विरूद्ध जबकि एनआरसीडीआर-513 ने सफेद रतुआ (डब्‍ल्‍यूआर) और तना रतुआ के विरूद्ध प्रतिरोधिता प्रदर्शित की।

सब्जियां

जैव नियंत्रण एजेन्‍टों की कॉलोनीकरण क्षमता : स्‍क्‍लेरोटीनिया स्‍क्‍लेरोटियोरम से संक्रमित स‍ब्‍जी वाली फसलों और राइज़ोक्‍टोनिया सोलेनी से संक्रमित चावल और मक्‍का की फसलों में जैव नियंत्रण एजेन्‍टों जैसे ट्राईकोडर्मा हारजि़येनम (टीएच3), एस्‍परजिलस नाइज़र (एएन27), पाइथीयम ओलीगेन्‍ड्रम (एफ1524) और पी. लाइकोपर्सिकम (केएस121) की पौधों की जड़ों में कॉलोनी बनाने की क्षमता का अध्‍ययन किया गया है। ट्राइकोडर्मा हारजि़येनम (टीएस3), एस्‍परजिलस नाइज़र (एएन27) की तुलना में जड़ों में बेहतर कॉलोनी बनाने वाला पाया गया। पाइथीयम ओलीगेन्‍ड्रम (एफ1524) और पी. लाइकोपर्सिकम (केएस121) जड़ों में कम कॉलोनी बनाने वाले पाए गए। तथापि इन्‍होंने दोहरे कल्‍चर में एस. स्‍क्‍लेरोटियोरम और आर. सोलेनी के विरूद्ध सशक्‍त एन्‍टागोनिज्‍म प्रदर्शित किया।

ट्राइकोडर्मा आधारित जैव संरूप (पूसा टीएच 3एसडी) का सत्‍यापन : पाउडरीकृत जैव संरूप (पूसा टीएच 3 एसडी) सब्‍जी वाली फसलों के मृदा और पर्णीय रोगजनकों के विरूद्ध प्रभावी पाया गया है और इसे पेटेन्‍ट करा लिया गया है। गेहूं, जौं, फूलगोभी, बंदगोभी, मिर्च, प्‍याज और बैंगन जैसी फसलों में ट्राइकोडर्मा हारजि़येनम के प्रति पूसा टीएच 3 एसडी की दक्षता का राजस्‍थान के तीन स्‍थानों (समोद, चाकसू और देवगढ़) में परीक्षण किया गया है।

कोल फसलों में काले सड़न का पीसीआर आधारित निदान : विशिष्‍ट प्राइमरों का उपयोग करके कोल फसलों (एक्‍स. कैम्‍पेस्ट्रिस पीवी कैम्‍पेस्ट्रिस) में काले सड़न के विशिष्‍ट निदान के लिए एक प्रोटोकॉल विकसित किया गया। एक्‍स. कैम्‍पेस्ट्रिस पीवी कैम्‍पेस्ट्रिस के सभी पृथक्‍करों से 619 बीपी का प्रवर्धन प्राप्‍त किया गया, जबकि जैन्‍थोमोनाज़, एल्‍वीनिया और स्‍यूडोमोनाज़ की अन्‍य प्रजातियों में कोई प्रवर्धन नहीं पाया गया (चित्र 5)।

 

पादप रोगजनक जीवाणुओं के विभिन्‍न पृथक्‍करों से प्राप्‍त पीसीआर उत्‍पादों के एगारोज़ जैल इलैक्‍ट्रोफोर्स (1 प्रतिशत)
फलदार फसलें

अनार के जीवाण्विक झुलसा की पीसीआर-आधारित पहचान : भारत में अनार (प्‍यूनिका ग्रेनेटम) की खेती में जीवाण्विक झुलसा एक प्रमुख समस्‍या है जो इस महत्‍वपूर्ण फलदार फसल के निर्यात में प्रमुख बाधा है। यह रोग (जैन्‍थोमोनाज़ कैम्‍पेस्ट्रिस पीवी प्‍यूनिसी-एक्‍ससीपी) कर्नाटक, महाराष्‍ट्र, आन्‍ध्रप्रदेश और तमिल नाडु सहित भारत के अनार की खेती वाले अनेक क्षेत्रों में दिन-प्रतिदिन महत्‍वपूर्ण होता जा रहा है। दिल्‍ली और महाराष्‍ट्र से प्राप्‍त किये गए जैन्‍थोमोनाज़ कैम्‍पेस्ट्रिस पीवी प्‍यूनिसी-एक्‍ससीपी के आठ पृथक्‍करों को 50 प्रतिशत समानता स्‍तर पर तीन प्रमुख गुच्‍छों में समूहीकृत किया गया जो उन जीनोमिक फिंगर प्रिन्‍टों पर आधारित था जो एक्‍ससीपी की विशिष्‍ट पहचान के लिए स्‍कार मार्कर के रूप में उपयोग में लाए गए थे। इसके लिए 400 बीपी का ईआरआईसी-पीसीआर एएन ईआरआईसी एम्‍प्‍लीकॉन प्रयोग में लाया गया (चित्र 6)।

चित्र 6 जैन्‍थोमोनाज़ कैम्‍पेस्ट्रिस पीवी प्‍यूनिसी-एक्‍ससीपी की 6 पीसीआर आधारित विशिष्‍ट पहचान; लेन एक्‍ससीपी : जैन्‍थोमोनाज़ कैम्‍पेस्ट्रिस पीवी प्‍यूनिसी; लेन एक्‍सओओ : जैन्‍थोमोनाज़ ओराइज़ी पीवी ओराइज़ी; लेन एक्‍ससीपीएच : जैन्‍थोमोनाज़ कैम्‍पेस्ट्रिस पीवी फैसियोलिकोला

 विषाण्विक रोग

जीनोमिक्‍स

मूंगफली में कली ऊतक क्षय विषाणु का आरएनए मध्यित (एम) क्रमीकरण : जीबीएनवी (मूंग के पृथक्‍कर) के माध्‍यम एमआरएलए (एवाई 871097) खंड के संपूर्ण जीनोक्रम का पता लगाया गया। एमआरएनए 4815 एनटी लम्‍बा था तथा इसमें 422 एनटी, 14 व 75 एनटी लम्‍बे अन्‍तरजैनिक क्षेत्र (आईजीआर) द्वारा पृथक्‍क किये गए एम्‍बर सेंस व्‍यवस्‍था में दो परस्‍पर-एक दूसरे से अलग ओआरएफ थे जो क्रमश: जीबीएनवी-टाइप पृथक्‍कर और जीबीएनवी-टमाटर पृथक्‍कर से लम्‍बे नहीं थे। आईजीआरएस ने 56-89 प्रतिशत क्रम समानता प्रदर्शित की जो द्वितीयक संरचना में दिखाई देती थी। आईजीआर क्रमों के बीच भेदों से संबंधित अभी तक कोई भी निश्चित जीवविज्ञानी कार्य नहीं देखा गया है। लम्‍बा ओआरएफ (2366 एनटी) विषाण्विक सेंस स्‍टैंड (वी) था जो 1122 एए लम्‍बे ग्‍लाइकोप्रोटीन प्रिकरसरों (जी1/जी2) को इनकोड करता है। विषाण्विक संपूरक सेंस (वीई) में छोटा ओआरएफ (924 एनटी) 308 एए गैर-संरचनात्‍मक (एनएसएम) प्रोटीन को इनकोड करता है।


तरबूज के कलिका ऊतक क्षय विषाणु का आरएनए मध्यित (एम) क्रमीकरण : गण टॉस्‍पोवायरस के अन्‍तर्गत आने वाला तरबूज का कलिका ऊतक क्षय विषाणु भारत में तरबूज का एक विनाशक विषाण्विक रोगजनक है। तरबूज से वि‍लगित किये गए इस विषाणु ने 2008 के दौरान भा.कृ.अ.सं., नई दिल्‍ली के प्रायौगिक खेतों में कली ऊतक क्षय प्रदर्शित किया। तरबूज के कलिका ऊतक क्षय विषाणु जीनोम का संपूर्ण एमआरएनए क्रमीकृत किया गया है (चित्र 7)। इसमें 4796 न्‍यूक्लियोटाइड थे। एमआरएनए में दो खुले पठन फ्रेम (ओआरएफ) वाले इनकोडिंग मूवमेंट प्रोटीन (एनएसएम) (56-979 एनटी, 307 एए, 34 केडीए) थे और इसके साथ ही जी1 और जी2 ग्‍लाइकोप्रोटीन (1390-4749 न्‍यूक्लियोटाइड, 1119 एमिनो अम्‍ल, 124.44 केडीए से प्राप्‍त) के प्रिकरसर भी थे। एम-आरएनए ने तरबूज के कलिका ऊतक क्षय विषाणु के दो घनिष्‍ठ संबंधियों डब्‍ल्‍यूएसएमओवी और जीबीएनवी- के साथ 75.1-78.6 प्रतिशत समरूपता में भागीदारी की जबकि टीएसडब्‍ल्‍यूडब्‍ल्‍यू- किस्‍म की प्रजातियों के साथ केवल 44.9 प्रतिशत समानता प्रदर्शित की। यह भारत में उपलब्‍ध तरबूज के कलिका ऊतक क्षय विषाणु के संपूर्ण एम-आरएनए जीनोम क्रम की पहली रिपोर्ट है।

 

चित्र 7 तरबूज के कलिका ऊतक क्षय विषाणु के माध्‍यम-आरएनए का जीनोम संघटन। एनएसएम : मूवमेंट प्रोटीन; जी1/जी2 : ग्‍लाइकोप्रोटीन का प्रिकरसर। 1-4796 न्‍यूक्लियोटाइड की स्थितियां हैं।

पपीता के छल्‍ला चित्‍ती विषाणु (पीआरएसवी) का संपूर्ण जीनोम क्रम : भारत के पीआरएसवी रोगप्ररूप पी का संपूर्ण जीनोम 3 टर्मिनल पॉली (ए) टेल को छोड़कर 10317 एनटी लम्‍बा है। इस जीनोम में 86 स्थिति पर शुरू होने वाला 10023 एनटी का इकहरा ओआरएफ है जो यूजीए के साथ 101109-11 स्थिति पर समाप्‍त होता है और इसका अनुवर्ती एक 206 एनटी का 3 यूटीआर है। ओआरएफ 3341 एए के पॉलीप्रोटीन को इनकोड करने की क्षमता रखता है। तुलनात्‍मक क्रम विश्‍लेषण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि भारत से प्राप्‍त पीआरएवी-पी में सभी क्रमों के साथ क्रमश: 83-89 प्रतिशत और 90-92 प्रतिशत की समानताएं हैं जो अन्‍य देशों से प्राप्‍त पीआरएसवी पृथक्‍करों के साथ न्‍यक्लियोटाइड तथा एमिनो अम्‍ल स्‍तरों पर समतुल्‍य हैं।

सिट्रस ट्राइस्‍टेजा विषाणु (सीटीवी) का आंशिक जीनोम क्रमण : दार्जिलिंग की पहाडि़यों से ओआरएफ 1ए और ओआरएफएस 6-11 से युक्‍त सीटीवी पृथक्‍कर से लगभग 8.1 केबी जीनोमों वाला एक 19.3 केबी जीनोम पृथक किया गया।

सिट्रस पीले चित्‍ती विषाणु (सीएमबीवी) का संपूर्ण जीनोम क्रमण : आन्‍ध्र प्रदेश के चित्‍तूर के नागरिक गांव से एकत्र किये गए सतगुणी संतरे को संक्रमित करने वाले सीएमबीवी के संपूर्ण जीनोम को क्रमित किया गया। यह पूरा जीनोम 7558 एनटी लम्‍बा है और इसमें 6 ओआरएफ हैं। संपूर्ण क्रम विश्‍लेषण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि अध्‍ययनाधीन सीएमबीवी में अन्‍य सीएमबीवी पृथक्‍करों के साथ 87-96 प्रतिशत क्रम समानताएं हैं। अन्‍य बेडना विषाणुओं के साथ तुलनात्‍मक क्रम विश्‍लेषण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि कोको में प्ररोह में सूजन उत्‍पन्‍न करने वाला विषाणु (सीएसएसवी), डिस्‍कोरी बैसीलीफार्म विषाणु (डीएबीवी) और/ड्रेसीना चित्‍ती विषाणु (डीएएमवी) है जिसकी सीएमबीवी के साथ 44.1 प्रतिशत से 48.3 प्रतिशत की सर्वोच्‍च समानता है।

रोगजनकता में मूंग के पीली चित्‍ती भारतीय विषाणु (एमवाईएमआईवी) के प्री-कोट प्रोटीन (ओआरएफ एवी2) तथा कोट प्रोटीन (ओआरएफ एवी1) की भूमिका : रोगजनन में मूंग के पीली चित्‍ती भारतीय विषाणु के प्री-कोड प्रोटीन ओआरएफ एवी2 और कोड प्रोटीन, ओआरएफ एवी1 की भूमिका की जांच एमवाईएमआईवी के डीएनए ए के ओआरएफ एवी2 तथा एवी1 का नेस्‍टेड डिलेशन स्‍पेनिंग करते हुए जांच की गई। कोट प्रोटीन जीन (ओआरएफ एवी1) क्षेत्र के लिए 6 डिलेशन म्‍यूटेंटों के नेस्‍टेड डिलिटिड खंडों तथा सी-टर्मिनल (एवी1-57, एवी1-108, एवी1-160) तथा एवी2 के दो डिलिशन और एन-टर्मिनल (एवी1-75, एवी1-150, एवी1-211) पूर्ण हो चुके थे। इन दो म्‍यूटेंटों - पीबीआईएनबीजीएवी1-150 (1.4 एमईआर) तथा पीबीआईएनबीजीएवी1-57 (1.5 एमईआर) के आंशिक टेंडम रिपीट (पीटीआर) कांस्‍ट्रैक्‍टों को ट्राइपेरेन्‍टल मैटिंग के माध्‍यम से एग्रोबैक्‍टीरियम ट्यूमेफैसियंस के ईएचए 105 प्रभेद में गतिशील बनाया गया। राजमां, लोबिया और उड़द एमवाईएमआईवी के वन्‍य तथा एवी1 म्‍यूटेंटों की एग्रोबैक्‍टीरियम मध्यित निष्क्रियता से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि राजमां में कोट प्रोटीन पर निर्भर रोगजनकता मूंग तथा लोबिया की तुलना में भिन्‍न थी। राजमां में 100 प्रतिशत संक्रमणशीलता वन्‍य प्रकार में देखी गई, तथापि बीजीएवी1-57 तथा बीजीएवी1-150 में क्रमश: 71.4 और 88.5 प्रतिशत संक्रमणशीलता पाई गई। लोबिया तथा मूंग में उत्‍प्रजनकों बीजीएवी1-57 तथा बीजीएवी1-150 ने कोई लक्षण प्रदर्शित नहीं किये। अन्‍य प्रजनकों को संचारित करने या उनके टीके लगाने के प्रयास जारी हैं।

टमाटर बैगोमोविषाणु की संक्रमणशीलता : जीनोमिक घटकों, टमाटर के पत्‍ती मोड़क बैंगलूरु (टीओएलसीबीवी) और टमाटर के पत्‍ती मोड़क कर्नाटक (टीओएलसीकेवी) विषाणुओं के डीएनए ए डीएनए के आंशिक टेंडम रिपीट (पीटीआर) कांसट्रैक्‍टों का उपयोग करके निकोटियाना बेन्‍थामियाना व टमाटर (पूसा रूबी) पर एग्रोबैक्‍टीरियम-मध्यित निष्क्रियता का अध्‍ययन किया गया जिसमें टीओएलसीबीवी व टीओएलसीकेबी विषाणुओं को ए. टयूमीफैसीयंस प्रभेद ईएचए105 में गतिशील बनाया गया। टीओएलसीबीवी एन. बेन्‍थामियाना तथा टमाटर दोनों में संक्रमणकारी था जबकि टीओएलसीकेवी केवल एन. बेन्‍थामियाना में संक्रमणकारी था। एन. बेन्‍थामियाना की संक्रमणशीलता सभी तापमानों (23-35 डिग्री सैल्सियस) पर देखी गई, जबकि टमाटर में यह 26-30 डिग्री सैल्सियस पर ही देखी गई। एन. बेन्‍थामियाना में टीओएलसीकेवी की लताओं को मोटा करने, पत्तियों के चटकने, पर्णवृन्‍तों के मुड़ने में प्रमुख भूमिका देखी गई। संपूर्ण टीओएलसीबीवी से और अधिक पीछे की ओर पत्तियों के मुड़ने, उन पर चित्तियां पड़ने तथा उनके मुरझाने का प्रभाव पाया गया। टमाटर में टीओएलसीबीवी कांसट्रैक्‍ट तत्‍काल संक्रमण पाए गए तथा इनसे पत्तियों में छेद होने, चित्तियां पड़ने, मुड़ जाने तथा बढ़वार रूक जाने के लक्षण प्रकट हुए चित्र 8।
चित्र 8 टमाटर किस्‍म पूसा रूबी और एन. बेन्‍थामियाना पर टमाटर के बैगोमोविषाणुओं की एग्रोबैक्‍टीरियम मध्यित संक्रमणशीलता

आण्विक नैदानिकी

सिट्रस से नए मेंडारीवायरस की पहचान : आन्‍ध्र प्रदेश के चित्‍तूर से एकत्र किये गए सतगुड़ी संतरे में सीएमबीवी के साथ मेंडारीवायरस का मिश्रित संक्रमण देखा गया। इस विषाणु पर भारतीय सिट्रस छल्‍ला धब्‍बा विषाणु के बहुक्‍लोनी एंटीबाडी थे जो गण मेंडारीवायरस की प्रकार प्रजाति थे। आईसीआरएसवी के साथ विषाणु के तिहरे जीन ब्‍लॉक टीजीबी क्षेत्र के 1119 बीपी क्रम की तुलना से 67 प्रतिशत एनटी क्रम समानता प्रदर्शित हुई जिससे भारत में नींबू वर्गीय फलों को संक्रमित करने वाली नई मेंडारीवायरस प्रजाति का पता चलता है।

सिट्रस रोगजनकों के लिए पीसीआर आधारित नैदानिक किट : सिट्रस को प्रभावित करने वाले आरएनए और डीएनए रोगजनकों की पहचान के लिए एक पीसीआर आधारित नैदानिक किट विकसित की गई है। इस किट का उपयोग सिट्रस के मिश्रित संक्रमण के दो रोगजनकों अर्थात् सतगुड़ी संतरे में सीएमबीवी और आईसीआरएसवी, संतरे में सीएमबीवी और सीटीवी व एक अन्‍य संतरे में हरिमाकारक जीवाणु के मिश्रित संक्रमण की एक साथ पहचान के लिए किया जा सकेगा (चित्र 9)।



चित्र 9 नैदानिक किट द्वारा हरिमा विषाणु (सीजी) तथा सिट्रस पीले चित्‍ती विषाणु (सीएमबीवी) की पीसीआर तथा डुपलैक्‍स पीसीआर आधारित पहचान तथा इसकी तिरुपति में सीएमबीवी और सीजी मिश्रित संक्रमित सिट्रस में अन्‍य प्रोटोकालों के साथ तुलना। एम-मार्कर; लेन 1 और लेन 2 : मिश्रित संक्रमित नमूने में सीवाईएमवी की पहचान के लिए नियंत्रण; लेन 3 और लेन 4 : मिश्रित संक्रमित नमूने में हरिमा जीवाणु की पहचान के लिए नियंत्रण; लेन 5 : सीएमबीवी तथा सीजी के लिए डुपलैक्‍स पीसीआर हेतु किट का उपयोग करते हुए निष्‍कर्षित डीएनए; लेन 6 : सीएमबीवी तथा सीजी के लिए डुपलैक्‍स पीसीआर हेतु एनसीएम का उपयोग करते हुए निष्‍कर्षित डीएनए; तथा लेन 7 : सीएमबीवी और सीजी के लिए डुपलैक्‍स पीसीआर हेतु सोडियम सल्‍फाइड विधि का उपयोग करते हुए निष्‍कर्षित डीएनए

 


 

आनुवंशिक विविधता

सिट्रस ट्राइस्‍टेजा विषाणु : दार्जिलिंग (19), दिल्‍ली (14) तथा बैंगलुरु (5) से उद्भूत 38 सीटीवी पृथक्‍करों की सीपी जीन क्रमों की तुलना से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि उनमें 89-99 प्रतिशत न्‍यूक्लियोटाइड क्रम समानता है तथा वे चार फाइलोजेनेटिक क्‍लेडों में विशिष्‍ट थे (चित्र 10)। क्‍लेड-1 में दार्जिलिंग की पहाडि़यों तथा दिल्‍ली के 14 पृथक्‍कर थे, क्‍लेड-3 में दिल्‍ली और बैंगलुरु के 7 पृथक्‍कर थे, क्‍लेड-4 में दार्जिलिंग, दिल्‍ली के 7 पृथक्‍कर थे तथा क्‍लेड-6 में दार्जिलिंग पहाडि़यों से प्राप्‍त 1 पृथक्‍कर था। क्‍लेड-2 और 5 में कोई भी भारतीय पृथक्‍कर नहीं था। क्‍लेड-1 और क्‍लेड-4 बहुत ही अलग प्रकार के थे। क्‍लेड-3 में मौजूद भारतीय सीटीवीएस के सदस्‍य आस्‍ट्रेलियाई सीटीवी पृथक्‍कर पीबी 61 से संबंधित हैं और 6 के सदस्‍य कैलिफोर्नियाई सीटीवी पृथक्‍कर एसवाई 568, एनयूएजीए जापानी पृथक्‍कर तथा इस्राइली पृथक्‍कर वीटी से संबंधित थे।

चित्र 10 कवच प्रोटीन (सीपी) जीन पर आधारित उखाड़े गए फाइलोजेनेटिक वृक्ष का आधार दर्शाने वाला चित्र जिसमें भारतीय सीटीवी पृथक्‍करों का अन्‍य अन्‍तरराष्‍ट्रीय सीटीवी पृथक्‍करों के साथ तथा चार बिल्‍कुल अलग फाइलोजेनेटिक क्‍लेडों के साथ निर्मित भारतीय सीटीवी पृथक्‍करों के साथ संबंध दर्शाया गया है।

 

पराजीनी प्रतिरोध

RNAi  सप्रेसर AC4 में टमाटर के पत्‍ती मोड़क नई दिल्‍ली विषाणु (ToL CNDV) की रोगजनकता : टमाटर के AC4 कैलेसों को जब AC4 जीन कान्‍सट्रक्‍टों (शार्ट हेयरपिन, इन्‍वर्टिड रिपिट, ट्रंकेटिड तथा इन्‍ट्रॉन हेयरपिन स्‍प्‍लाइस्‍ड) पर आधारित विभिन्‍न RNAi के साथ रूपांतरित किया गया तो उन्‍होंने फीनोटिपिक एबरेशन्‍स में सुधार दर्शाया जिससे यह सुझाव मिलता है कि AC4 प्रोटीन miRNA पाथवे को प्रभावित करके पोषक विकास जीवविज्ञान में सम्मिलित है (चित्र 11)

 

 

 

सिट्रस का एग्रोबैक्‍टीरियम-मध्यित रूपांतरण : एन्‍टीसेंस ओरियनटेशन में कवच प्रोटीन (सीपी) जीन (के9) का उपयोग करके एग्रोबैक्‍टीरियम - मध्यित रूपांतरण के माध्‍यम से सृजित कागज़ी नींबू के प्‍यूटेटिव सिट्रस रूपांतर, 20 रूपांतर पीसीआर धनात्‍मक थे। इन रूपांतरों की सदर्न विश्‍लेषण द्वारा और पुष्टि की जाएगी।