फूलों की महत्वपूर्ण फसलों के निम्नलिखित पहलुओं पर मुख्य अनुसंधान किये जा रहे हैं :
- देश के विभिन्न भागों तथा विदेशों से जननद्रव्य (वन्य प्रजातियों सहित) का संकलन, रखरखाव एवं मूल्यांकन
- परम्परागत और आधुनिक प्रजनन विधियों के माध्यम से विभिन्न फसलों की नई किस्मों का विकास
- घरेलू और निर्यात बाजारों के लिए खुली और संरक्षित स्थितियों में पुष्पों के उत्पादन के लिए उन्नत कृषि तकनीकें
- परखनली के बाहर तथा सूक्ष्म प्रवर्धन के क्षेत्र में प्रवर्धन तकनीकों में सुधार
- महत्वपूर्ण रोगों, कीटों व नाशकजीवों का सर्वेक्षण, उनकी पहचान तथा नियंत्रण
- कर्तित फूलों की कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी के लिए पैकेज का विकास
गुलाब में महत्वपूर्ण उपलब्धियां
- संस्थान में वांछित गुणों से युक्त गुलाब की देश में सबसे अधिक संख्या में किस्में विकसित की हैं। हाइब्रिड टी, फ्लोरीवंडा, ग्रेडीफ्लोरा, मिनियेचर और क्लाइम्बर की 75 किस्में जारी की जा चुकी हैं। संकरों/किस्मों की सूची में विशिष्ट रंग और आभा और सुगंध वाली किस्में सम्मिलित हैं। चॉकलेट भूरे रंग की किस्म मोहिनी ने विश्वभर के गुलाब प्रजनकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। उत्प्रेरित उत्परिवर्तकों में अभिसारिका, स्ट्राइप्ड क्रिश्चयन डेयोर, पूसा क्रिस्टीना और मदहोश जैसे प्राकृतिक उत्प्रजनक हैं, चित्रा, पूसा अभिसारिका, क्लाइबिंग सदाबहार, क्लाइबिंग डॉ. होमी भाभा, दिल्ली पिंक पर्ल और नव सदाबहार ने विशिष्ट पैटर्न दर्शाएं हैं तथा इन्हें गुलाब उगाने वालों ने बहुत पसंद किया है।
- गहन प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से विकसित संकर जैसे रक्तगंधा, अर्जुन, रक्तिमा, पूसा गौरव, पूसा पीताम्बर, मदर टेरेसा, प्रिया और डॉ. बी.पी. पाल विदेशी गुलाब की किस्मों के समतुल्य गुणों वाले हैं तथा ग्रीन हाउस में उगाने के लिए उपयुक्त हैं। संस्थान द्वारा विकसित भीम, चम्बे दी कली, गंगा, जवाहर, मृदुला, मृणालिनी, नेहरू सेंटनरी, नूरजहां, प्रियदर्शनी, राजा सुरेन्द्र सिंह ऑफ नालागढ़, बंजारन, जंतर-मंतर आदि वाणिज्यिक खेती करने वालों तथा बागवानी का शोक रखने वालों के बीच का बहुत लोकप्रिय है। यह संस्थान पहला ऐसा स्थान है जिसमें राज्य व्यापार निगम के सहयोग से 1969 में पहली बार फ्रेंकफल्ट और एमेस्टेडम में गुलाब के परीक्षण कन्साइनमेंट भेजे थे। ये कन्साइनमेंट विश्व बाजार में भली प्रकार स्वीकार किये गए।
- बेहतर उपज के लिए उत्तर भारतीय मैदानों में सर्वश्रेष्ठ रोपाई का समय अक्टूबर-नवम्बर सुझाया गया है। एक नया मूलवृन्त रोज़ा इंडिका श्रेष्ठ किस्मों के बड़े पैमाने पर कलिकायन के लिए उत्तरी भारत के मैदानों के लिए सुझाया गया है।
- खरपतवारों को समाप्त करने तथा नमी के संरक्षण के लिए जामुन की सूखी पत्तियों को कार्बनिक पलवार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जिसके लिए अप्रैल के महीने में पत्तियों की 6 इंच से 8 इंच की मोटी पर्त बिछाई जा सकती है। डायूरॉन (2 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/है.) तथा ग्लाइफॉस्फेट (1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/है.) का उपयोग करके आवांछित खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नष्ट किया जा सकता है।
- तुड़ाई उपरांत लम्बे समय तक ताजा रखने के लिए बाहरी पंखुडि़यों में हल्का रंग दिखाई पड़ने पर उन्हें खोल देना बेहतर रहता है। नवम्बर और जनवरी के महीने में फूलों की तुड़ाई से पहले 200 पीपीएम पोटेशियम सल्फेट और 100 पीपीएम जि़ब्रेलिक अम्ल का छिड़काव करने से फूलों की गुणवत्ता में सुधार होता है और वे गुलदानों में लंबे समय तक ताजा बने रहते हैं। 16-24 घण्टे तक 0.3 प्रतिशत सुक्रोज़ के साथ-साथ 15 मिनट तक सिल्वर थायोसल्फेट (1mM) में रखने से फूलों की गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है।
- श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले निर्यात योग्य गुलाबों का भी संस्थान में विकास किया गया है। इसके साथ ही घरेलू पुष्प उद्योग की आवश्यकताओं के लिए भी यहां श्रेष्ठ किस्मों का प्रजनन हुआ है।
- पहले यह विश्वास था कि गुलाब का डाइबैक रोग डिप्लोयडा रोज़ेरम से होता है लेकिन अनुसंधानों से पता चला कि यह रोग बैटरोलिप्लॉयडा थियोब्रामल और कोलेटोट्राइकम ग्लॉयएसपोरेडस से भी हो सकता है। गुलाब की अरुणिमा तथा अर्जुन किस्मों में पौधों की कटाई छटाई के तुरंत बाद एक पखवाड़े के अन्तराल पर बैविस्टिन (0.2 प्रतिशत) के छिड़काव से डाइबैक रोग का नियंत्रण किया जा सकता है।
- इसी प्रकार चूर्णिल फंफूद को बैविस्टिन (0.1 प्रतिशत), कैराथेन (0.1 प्रतिशत), सल्फेक्स (0.2 प्रतिशत) या वेटेबल सल्फर (0.05 प्रतिशत) के छिड़काव से प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। संस्थान द्वारा विकसित अरुणिमा, अर्जुन, हिमांगिनी, कामता, प्रियदर्शनी, रक्तगंधा और सदाबहार किस्में चूर्णिल फंफूद की सहिष्णु पाई गईं। कैप्टान (0.2 प्रतिशत) और डाइथेन एम-45 (0.2 प्रतिशत) के छिड़काव से काली चित्ती रोग का प्रभावी नियंत्रण हुआ।
ग्लेडियोलस
- कर्तित फूलों के लिए उगाई जाने वाली इस पुष्प की अनेक किस्में विविध प्रकार के रंगों वाली हैं। संस्थान में इस पुष्प का देश में सबसे बड़ा जीनप्ररूप संकलन है। परम्परागत प्रजनन युक्तियों के माध्यम से ग्लेडियोलस के 13 संकर/उन्नत प्रभेद विकसित किये गए हैं। ये संकर विशिष्ट रंगों वाले तथा अधिक निधानी आयु वाले हैं।
- उच्च पैदावार के लिए बहुरंगी किस्मों को सितम्बर से नवम्बर तक रोपा जाना चाहिए। तथापि उत्तर भारतीय स्थितियों में रोपाई का सर्वश्रेष्ठ समय अक्टूबर का दूसरा सप्ताह है। अंकुरण बढ़ाने के लिए जीए3 को 1000 पीपीएम की दर से पौधे की पत्तियों पर छिड़का जाना चाहिए। एक मीटर चौड़ी उठी हुई क्यारियों में चार कतारों में रोपाई करने से बेहतर पुष्पोत्पादन होता है। 3.5 से 4.6 सें.मी. व्यास के बल या कन्द ग्लेडियोलस के पौधों के उत्पादन के लिए श्रेष्ठ है। इन कन्दों को रोपाई से पहले 200 पीपीएम के इन्डोल एसेटिक अम्ल में डुबोने से बल्बों का उत्पादन बढ़ जाता है। ताजे निकाले गए बल्बों को इथाइल क्लोरोहाइड्रिन (3 प्रतिशत) या बेन्जाइल एमिनो प्यूरी (200 पीपीएम) में डुबोने के बाद 100 पीपीएम जीए3 के घोल में डुबोने से बल्बों की शीत सुप्तावस्था शीघ्र समाप्त हो जाती है।
- बल्बों की रोपाई के बाद 0.2 प्रतिशत सटॉम्प के छिड़काव से ग्लेडियालेस में खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। 0.2 प्रतिशत बेविस्टिन का छिड़काव कवकीय रोगों के प्रभावी नियंत्रण में कारगर पाया गया है।
- प्रति पौधा अगेती पुष्पन तथा बेहतर गुणवत्ता वाले अधिक संख्या में बल प्राप्त करने के लिए इस पुष्प को पाली हाउसों में उगाना चाहिए। आंशिक छाया में मौसमी उत्पादन की प्रौद्योगिकी को परिशुद्ध बनाया गया है। यह प्रौद्योगिकी पहाड़ी क्षेत्रों में ग्लेडियोलस के बल की दूसरी फसल प्राप्त करने की दृष्टि से बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।
- बेन्जाइल एमिनो प्यूरिन (0.5 मि.ग्रा./लीटर), एनएए (0.5 मि.ग्रा./लीटर), इन्डोल ब्यूटाइलिक अम्ल (0.5 मि.ग्रा./लीटर) का उपयोग करके परखनली के माध्यम से इस पुष्प के त्वरित प्रवर्धन की प्रौद्योगिकी मानकीकृत की गई है।
एमेरिलिस
- एमेरिलस की एक उन्नत किस्म सूर्य किरण उगाए जाने के लिए जारी की गई है जिसके फूल लाल व सफेद दोरंगे होते हैं। बड़े पैमाने पर उगाए जाने के लिए प्रति एकड़ 30,000 से 40,000 बल्बों की रोपाई की जानी चाहिए। रोपाई की दूरी बल्ब से बल्ब के बीच 20 सें.मी. और कतार से कतार के बीच 30 सें.मी. रखी जानी चाहिए।
- रोपाई के पूर्व 5 से 6 टन घूरे के खाद, 2.5 क्विंटल मूंगफली या नीम की खली और 100 कि.ग्रा. सुफला (15:25:15, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश)/एकड़ उर्वरक के रूप में दिये जाने चाहिए। बुवाई के एक माह बाद शूकिया निकलते समय प्रति एकड़ 25 कि.ग्रा. यूरिया डालने से बेहतर उपज प्राप्त होती है।
कार्नेशन
15-20 सें.मी. ऊंची मेड़दार क्यारियों जो एक मीटर चौड़ी हों, में 15 सें.मी. की दूरी पर 6 कतारों में रोपाई करना प्रति वर्ग मीटर उपज के लिए सबसे अधिक उपयुक्त पाया गया है। रोपाई के बाद पहली बार 30 दिनों पर और दूसरी बार 50 दिनों पर पिंचिंग से बेहतर पुष्प उपज प्राप्त होती है।
गेंदा
दो उन्नत खुली परागित किस्में नामत: पूसा नारंगी गेंदा और पूसा बसंती गेंदा विकसित करके वाणिज्यिक खेती के लिए जारी की गई हैं। ये उन्नत किस्में किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं तथा उत्तर भारत में व्यापक रूप से उगाई जा रही हैं।
हॉलीहॉक
चार F1 संकर नामत: पूसा एप्रीकॉट सुप्रीम, पूसा पेस्टल पिंक, पूसा पिंक ब्यूटी और पूसा येलो ब्यूटी देश में पहली बार जारी किये गए हैं। ये पुष्प बीच से दोहरे मुड़े हुए होते हैं तथा 2.0 से 2.5 मीटर लंबे तने पर एक कॉलम का निर्माण करते हैं। इन संकरों के अतिरिक्त 7 खुली परागित किस्में नामत: दुल्हन (लाल), दीपिका (हल्की पीली), गौरी (गुलाबी), पूसा हॉलीहॉक गुलाबी (गुलाबी), पूसा हॉलीहॉक कृष्णा (उन्नाबी), पूसा हॉलीहॉक लालिमा (लाल) और पूसा हॉलीहॉक श्वेता (सफेद) जारी की गई हैं। इन किसमों के दोहरे पुष्प होते हैं तथा पौधे की ऊंचाई 1.0 से 1.5 मीटर होती है।
कोरीऑप्सिस
बागों में प्रदर्शन के उद्देश्य से एक स्व–स्फूर्त उत्प्रजनक पूसा टाटा जारी किया गया है। इसके पुष्प का शीर्ष ऐंठी हुई धारियों से युक्त होता है जो तारे जैसे आकृति वाला होता है।
बोगेनविलिया
- संस्थान का यह संभाग बोगेनविलिया का अन्तरराष्ट्रीय पंजीकृत प्राधिकारी है। बोगेनविलिया की 323 किस्मों का विवरण तैयार करके एक चैकलिस्ट प्रकाशित की गई है। संस्थान द्वारा विकसित अनेक किस्मों में से एक अनूठी किस्म विशाखा है जो गुलाबी रंग की होती है। यह उद्यान प्रेमियों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गई है।
- कटाई छटाई अनुसूचितयों को मानकीकृत करने के लिए विकसित की गई समेकित प्रौद्योगिकी के विकास से यह स्पष्ट हुआ है कि सेंडेरियाना, साइफेरी, डॉ. एच.बी. सिंह जैसी किस्मों को बहुत कम कटाई छटाई की आवश्यकता होती है, जबकि टोमेटो, बॉइस डी रोज़, कयाडा को आंशिक कटाई छटाई की तथा शुभ्रा, डॉ. आर.आर. पाल, थिम्मा, क्रुम बियेगल को गहन कटाई छटाई की आवश्यकता होती है। इन किस्मों का आइसोजाइम प्रोफाइल प्रलेखित किया गया है ताकि देश में उपलब्ध जीन पूल का गुण निर्धारण हो सके। चूंकि बोगेनवेलिया एक कठिन उगने वाली जड़दार फसल है अत: शरद ऋतु में इसकी जड़ें तेजी से और गहरी जम सकें, इसके लिए बॉटम हीट तकनीक विकसित की गई है।
विकसित की गई कृषि तकनीकें
बेहतर बढ़वार तथा पौधों में बेहतर पुष्पन के लिए हवाई हिबिसकस के लिए मूलवृन्त के रूप में हिबिसकस साइनेनसिस का उपयोग करके प्रवर्धन विधियां मानकीकृत की गई हैं। प्रत्येक वर्ष मानसून के महीनों के दौरान गमलों से निकालक जड़ों की हल्की कटाई छटाई करने से पौधे बौने और स्वस्थ बने रहते हैं।
जैवप्रौद्योगिकी
संस्थान में जैवप्रौद्योगिकियों का उपयोग करके गुलाब, कार्नेशन, गेंदा और ग्लेडियोलस के त्वरित प्रवर्धन के लिए पुनर्प्रजननशील प्रोटोकॉल विकसित किये गए हैं। संस्थान में वांछित गुणों से युक्त नई-नई किस्में विकसित करने के लिए जैवप्रौद्योगिकी के माध्यम से पुष्प फसलों के सुधार पर विशेष ध्यान दिया गया है।
संरक्षित कृषि
संस्थान में पॉली हाउसों में कर्तित फूलों (गुलाब, गुलदाउदी, ग्लेडियोलस तथा एशियाई लिली) के उत्पादन के लिए कम लागत वाली देसी प्रौद्योगिकी विकसित करने का एक सशक्त कार्यक्रम चलाया जा रहा है। संस्थान में विकसित किस्मों का संरक्षित पर्यावरण के अन्तर्गत उगाने हेतु उनकी उपयुक्तता का आकलन किया गया। संस्थान के संकर नामत: रक्तिमा, रक्तगंधा और अर्जुन संरक्षित पर्यावरण के अन्तर्गत उगाए जाने के लिए आशाजनक पाए गए हैं। एशियाई लिली के फूलों को 15 दिन पहले खिलाने की प्रौद्योगिकी को मानकीकृत किया गया है। गुलदाउदी प्रवर्धन (मई-सितम्बर के दौरान) तथा एशियाई लिली उगाने (अक्टूबर-फरवरी के दौरान) के अनुसूचीकरण से वर्षभर पॉलीहाउस का कारगर उपयोग हो सकता है।
मूल्यवर्धन
रंग निकालकर, सुगंधित तेल आसवित करके, औषधीय तथा पोषक यौगिक प्राप्त करके पुष्पविज्ञान में मूल्यवर्धन के मार्ग प्रशस्त हुए हैं। देश में हो रहे विकासों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए संस्थान ने फूल की महत्वपूर्ण फसल गेंदे से रंग को पृथक करके इस गुण निर्धारण का कार्य किया है। विश्वभर से एकत्र किये गए समृद्ध जीन पूल से संस्थान में अनेक आशाजनक संकरों/किस्मों का विकास हुआ है जिनका कैरोटिनॉयड रंजक तथा ल्यूटिन अंश के लिए मूल्यांकन किया गया है। गेंदा से पृथक किया गया आकर्षक नारंगी रंग विभिन्न खाद्य पदार्थों में व्यापक रूप से प्रयुक्त हो रहा है साथ ही इसे कुक्कुट आहार में लेने से अण्डे के योक तथा चूजे के मांस में रंग की गहनता बढ़ जाती है। कैरोटिनॉयड में औषधीय गुण होते हैं और इसके सेवन से आंखों को लंबे समय तक क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन रंजकों का सौंदर्य प्रसाधनों में भी उपयोग बढ़ रहा है। इन यौगिकों के पृथक्ककरण व शुद्धिकरण के प्रौद्योगिकी पैकेज विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि किसानों को इनसे अधिक से अधिक लाभ हो सके।