डॉ.अजय अरोड़ा
अध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक
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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में पादप कार्यिकी संभाग की स्थापना 14 नवम्बर 1966 को हुई थी। पादप कार्यिकी विषय में स्वतंत्र संभाग की स्थापना से पूर्व यह तत्कालीन वनस्पति विज्ञान संभाग का एक अनुभाग था । डॉ जे.जे. चिनॉय ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में कार्यिकीय अनुसंधान की शुरूआत 1941 में की थी । 50 के दशक के दौरान अनुसंधान मुख्यतः पर्यावरणीय/अजैविक तनावों एंव पादप पोषण पर केन्द्रित रहे । डॉ आर.डी. असाना इस संभाग के प्रथम अध्यक्ष बने । उनके कार्यकाल के दौरान फसल कार्यिकी अनुसंधान की ठोस नींव रखी गई और इन अध्ययनों की वर्तमान के 'ओमिक्स’ अनुसंधान युग में भी सार्थकता है । डॉ जी.एस. सिरोही ने फसल सुधार में मौलिक अनुसंधान के महत्व को अनुभव किया जिसके परिणामस्वरूप 1980 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत एक अग्रिम पादप कार्यिकी केंद्र की स्थापना हुई । वर्ष 1883 से 1993 के दौरान ’प्रकाश संश्लेषण एंव फसल उत्पादकता पर पी.एल. 480 स्कीम के अतंर्गत भारत-अमेरिका परियोजना का आंरभ होना इस संभाग को सबल बनाने की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रयास था। इस संभाग के मिशन व अधिदेश निम्नानुसार हैं :
पादप कार्यिकीय निपुणताओं को बढ़ाकर फसल उत्पादकता एंव उत्पादन में वृद्धि ।
- पादप प्रक्रियाओं को समझने की दृष्टि से मौलिक और कार्यनीतिपरक अनुसंधान करना जिससे फसल उत्पादकता में आने वाली समस्याओं का हल मिल सके ।
- एम.एस.सी. और पी.एच.डी. उपाधियों के लिए छात्रों को स्नातकोत्तर शिक्षा प्रदान करना ।
- राज्य कृषि विश्वविद्यालय/भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के संस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों को कार्यिकीय तकनीकियों/विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान करना ।