भा.कृ.अ.सं. का कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केन्‍द्र एकल खिड़की वितरण प्रणाली के माध्‍यम से विभिन्‍न स्‍टेकहोल्‍डरों को प्रभावी ढंग से उत्‍पाद, सेवाएं और सूचना प्रदान कर रहा है। देश के लगभग सभी राज्‍यों से प्रतिवर्ष लगभग 12000 किसान, उद्यमी/विकास विभागों के अधिकारी व कर्मचारी, छात्र, स्‍वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि आदि फार्म संबंधी परामर्श, नैदानिक सेवाएं, प्रौद्योगिकी निवेशों को खरीदने व प्रशिक्षण के लिए यहां आते हैं। किसानों द्वारा केन्‍द्र के व्‍यक्तिगत भ्रमण के अतिरिक्‍त उन्‍हें पूसा हेल्‍प-लाइन (25841670 तथा किसान कॉल-सेन्‍टर 1551) और पत्रों के माध्‍यम से भी खेती संबंधी परामर्श दिए जाते हैं।

अन्तिम उपभोक्‍ताओं तक संस्‍थान की प्रौद्योगिकियों के प्रसार के लिए यह केन्‍द्र नियमित रूप से एक छमाही कृषि पत्रिका, नामत: प्रसार दूत कर रहा है जो कृषक समुदाय के बीच बहुत लोकप्रिय है। इसके अतिरिक्‍त केन्‍द्र द्वारा रबी और खरीफ फसलों की उत्‍पादन प्रौद्योगिकियों, फल, फूल एवं सब्जियों के उत्‍पादन तकनीकी जैसे प्रकाशन भी इस केन्‍द्र से प्रकाशित होते हैं। किसानों को सरकारी योजनाओं और सुविधाओं के बारे में जानकारी देने के लिए केन्‍द्र से 'किसान जिज्ञासा एवं समाधान' शीर्षक वाला एक प्रकाशन निकाला गया है जिसमें किसानों द्वारा बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्‍नों के साथ उनके उत्‍तर भी दिए गए हैं। यह भी किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है। जो किसान विभिन्‍न फसलों के बीज इस केन्‍द्र से खरीदते हैं उन्‍हें संबंधित फसलों की उत्‍पादन प्रौद्योगिकी से संबंधित पर्चे मुफ्त में उपलब्‍ध कराए जाते हैं। कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केन्‍द्र अपने फसल कैफेटेरिया में नियमित रूप से फसल/बागवानी, औषधीय पौधों पर प्रदर्शन आयोजित करता है ताकि जो किसान इस संस्‍थान में आते हैं वे संस्‍थान द्वारा विकसित किस्‍मों का सजीव निष्‍पादन देख सकें। पिछले कई वर्षों के दौरान इस केन्‍द्र ने प्रौद्योगिकी हस्‍तांतरण के अपने प्रयासों से ऐसे अनेक प्रगतिशील किसान तैयार किए हैं जिन्‍होंने कृषि तथा कृषि उद्यम से संबंधित विभिन्‍न क्षेत्रों में अपनी अलग पहचान बनाई है। अब वे अन्‍य किसानों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन गए हैं और अन्‍य किसानों के बीच उनके क्षेत्रों में संस्‍थान की प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने व उन्‍हें प्रचारित करने की दृष्टि से संस्‍थान के दूत के रूप में कार्य कर रहे हैं। यहां आने वाले आगन्‍तुकों की सूचना एवं परामर्श संबंधी आवश्‍कताओं को सूचना संग्रहालय, पादप निदानशाला, फार्म पुस्‍तकालय, प्रदर्शों, जैव उर्वरकों आदि के माध्‍यम से भी पूरा किया जाता है जो इस केन्‍द्र में प्रदर्शित की गई हैं, किसानों के अतिरिक्‍त इस संस्‍थान के उत्‍पादों, प्रौद्योगिकियों और सेवाओं की मांग बाजार में दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है और इसके साथ ही उद्योग जगत में भी इस संस्‍थान के अनुसंधान उत्‍पादों में गहन रुचि प्रदर्शित की है। केन्‍द्र ने प्रौद्योगिकी सर्जकों तक प्रौद्योगिकी उपयोगकर्ताओं का फीडबैक सीधे-सीधे प्राप्‍त करने के लिए एक क्रियाविधि विकसित की है। इस फीडबैक से इस केन्‍द्र के क्रियाकलापों को बल मिलता है और आवश्‍यकता आधारित प्रौद्योगिकियां तैयार करने का आधार सृजित होता है। कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केन्‍द्र में कृषक समुदाय के साथ कार्यरत् विभिन्‍न एजेन्सियों से भी सक्रिय संपर्क स्‍थापित किया है ताकि विभिन्‍न उपयोगकर्ताओं की सूचना संबंधी आवश्‍यकताओं को प्रभावी ढंग से पूर्ण किया जा सके।
 
अपनी स्‍थापना के समय से ही यह संस्‍थान भारतीय कृषि के लिए प्रासंगिक प्रौद्योगिकियां व प्रक्रियाएं सृजित करता आ रहा है। राष्‍ट्रीय अधिदेश को ध्‍यान में रखते हुए तथा देश को कृषि के क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए ये प्रौद्योगिकियां व प्रक्रियाएं खेती से जुड़े समुदायों तक नि:शुल्‍क पहुंचाई गई हैं। उन्‍नत प्रौद्योगिकियों के माध्‍यम से खाद्य उत्‍पादन में हुई वृद्धि भारत की खाद्य सुरक्षा और भारतीय कृषि की संपूर्ण सफलता का मूल आधार है।
गेहूं की नई किस्‍में : उच्‍च उपज क्षमता व विभिन्‍न रतुओं के बेहतर प्रतिरोध से युक्‍त संस्‍थान द्वारा विकसित गेहूं की नई किस्‍में देश के उत्‍तरी, पूर्वी और मध्‍य मैदानों में किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गई हैं। रोगजनकों की विभिन्‍न प्रजातियों की प्रतिरोधी गेहूं की विभिन्‍न किस्‍मों की पहचान पर संस्‍थान द्वारा किए गए कार्यनीतिपरक अनुसंधान से देश में गेहूं उत्‍पादन में होने वाली क्षति 6.8 मीट्रिक टन कम हुई है और इस प्रकार देश में 2,500 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष की बचत हुई है। देश में कुल प्रजनक बीज उत्‍पादन के संदर्भ में गेहूं के मामले में संस्‍थान की किस्‍मों का कुल हिस्‍सा 20.4-32.9 प्रतिशत है।

सुगंधित, उच्‍च गुणवत्‍ता वाली व उच्‍च-उपजशील चावल की किस्‍म : संस्‍थान द्वारा विकसित चावल की किस्‍म 'पूसा बासमती 1' फार्म स्‍तर पर अब तक की सर्वाधिक उपज देने वाली किस्‍मों की तुलना में लगभग 2 टन/हैक्‍टर अधिक उपज देती है और इससे लगभग 20,000 रूपये/हैक्‍टर का निबल लाभ होता है। उपभोक्‍ताओं की पसंद के कारण पिछले कुछ वर्षों के दौरान संयोग से बासमती चावल के निर्यात में भी वृद्धि हुई है। वर्तमान में 'पूसा बासमती 1' के निर्यात से कुल विदेशी मुद्रा का चावल के निर्यात के संदर्भ में लगभग 50 प्रतिशत भाग (1000 करोड़ रूपये) प्राप्‍त होता है जो आयतन की दृष्टि से लगभग 60 प्रतिशत बैठता है। संस्‍थान द्वारा केरल, कर्नाटक और तमिल नाडु के लिए विकसित चावल की 'पूसा 44' किस्‍म अपने कठोर तने, फसल के पौधों के न गिरने, निवेशों के प्रति उच्‍च सकारात्‍मक क्रिया प्रदर्शित करने, कटाई की दृष्टि से उपयुक्‍तता और अत्‍यधिक उच्‍च उपज क्षमता (10 टन/हैक्‍टर) जैसे गुणों के कारण पंजाब में भी बहुत लोकप्रिय हो गई है। संस्‍थान द्वारा विकसित संकर चावल 'पीआरएच-10' विश्‍व का पहला बासमती गुणों से युक्‍त संकर चावल है जिसकी उपज 'पूसा बासमती 1' की तुलना में अधिक है और बीज कम्‍पनियों ने इसे बहुत पसंद किया है। 2.5 टन/हैक्‍टर से 5-6 टन/हैक्‍टर की उन्‍नत उत्‍पादकता के गुणों से युक्‍त संस्‍थान द्वारा विकसित चावल की किस्‍में 'पूसा सुगंध 2' तथा 'पूसा सुगंध 3' और 'पूसा सुगंध 5' अब देश के 10,000 हैक्‍टर से अधिक क्षेत्र में उगाई जा रही हैं।

 

संस्‍थान द्वारा विकसित चना, अरहर और मूंग की उन्‍नत किस्‍में बारानी फसल उत्‍पादन की दृष्टि से अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण हैं। ये फसलें कम अवधि में पक जाती हैं तथा फसल क्रम के लिए उपयुक्‍त हैं। इनसे खाद्यान्‍न के उत्‍पादन में वृद्धि हुई है और भारतीय आहार में प्रोटीन का स्‍तर सुधरा है। इस संस्‍थान द्वारा विकसित तिलहनी किस्‍मों ने राष्‍ट्रीय तिलहन उत्‍पादन में उल्‍लेखनीय योगदान दिया है। 'पूसा बोल्‍ड' नामक संस्‍थान की किस्‍म को अपनाने से तिहलनों पर प्रौद्योगिकी मिशन को अपार सफलता मिली है।

 

सब्जियों की किस्‍में एवं जननद्रव्‍य : संस्‍थान द्वारा विकसित विभिन्‍न सब्जियों की विभिन्‍न किस्‍मों व जननद्रव्‍य के अनुरक्षण से बीज उद्योग का विकास हुआ है जिससे संस्‍थान की किस्‍में देशभर में प्रचारित व प्रचलित हुई हैं। इन किस्‍मों की खेती सीमांत व छोटे किसानों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुई है और इससे ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्‍या को प्रत्‍यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगारों के अनेक अवसर सृजित हुए हैं। इसके अतिरिक्‍त इस संस्‍थान द्वारा विकसित अनेक किस्‍में या तो अगेती बोई जा सकती हैं या पछेती जिससे किसान अपनी सहूलियत के अनुसार वर्षभर उपयुक्‍त फसल क्रम अपना सकते हैं। इससे भारतीयों का आहार क्षेत्र विविधीकृत व विस्‍तृत हुआ है और ग्रामीण व शहरी, दोनों क्षेत्रों में सब्जियों के उपभोग में वृद्धि हुई है। संस्‍थान ने सब्जियों की 43 फसलों की लगभग 200 उन्‍नत किस्‍में विकसित की हैं। वाणिज्यिक रूप से महत्‍वपूर्ण सब्‍जी वाली फसलों के दो दर्जन से अधिक संकर विकसित किए गए हैं। देश में सब्‍जी की खेती वाले क्षेत्र के 50 प्रतिशत से अधिक भाग में इस संस्‍थान द्वारा विकसित सब्जियों की खेती की जाती है।

 

संस्‍थान ने बे-मौसम नर्सरी उगाने के लिए कम लागत वाले पॉलीहाउस, उच्‍च मूल्‍य वाली सब्‍जी की फसलों के लिए कम लागत में पॉलीहाउस में सब्जियों की खेती, महत्‍वपूर्ण कुकरबिटेसी सब्जियों में किफायती संकर बीज उत्‍पादन के लिए प्रौद्योगिकी, खरीफ के मौसम में प्‍याज उत्‍पादन की प्रौद्योगिकी, विभिन्‍न मौसमों में फूलगोभी की खेती, असामान्‍य लेकिन देश में लोकप्रिय हो रही विदेशी सब्जियों की खेती आदि जैसी प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं जो सब्‍जी उत्‍पादन में महत्‍वपूर्ण योगदान दे रही हैं। हमारे देश में बीज उद्योग का विकास 160 से अधिक खेत व सब्‍जी वाली फसलों के उच्‍च गुणवत्‍ता वाले प्रजनक बीजों की उपलब्‍धता के कारण संभव हुआ है और ऐसा इस संस्‍थान द्वारा विकसित किस्‍मों के माध्‍यम से हो सकता है।

सिंचाई की दक्षता बढ़ाने में अत्‍यंत उल्‍लेखनीय उपलब्धि इस संस्‍थान द्वारा विकसित तकनीकों के माध्‍यम से प्राप्‍त की गई है। इस संस्‍थान ने उच्‍च घनत्‍व वाली पॉलीइथिलीन (एचडीपीई) पाइप आधारित स्प्रिंकलर इकाई विकसित करके उसे लोकप्रिय बनाया है। इस संस्‍थान द्वारा विकसित व लोकप्रिय बनाई गई ड्रिप सिंचाई प्रणाली में फलों व सब्जियों की खेती वाले क्षेत्र में इन फसलों के उत्‍पादन में पिछले अनेक वर्षों से उल्‍लेखनीय योगदान दिया है और इनका उत्‍पादन वर्ष-प्रति-वर्ष बढ़ रहा है। संस्‍थान ने पूर्व निर्मित कंकरीट की लाइनिंग वाली प्रौद्योगिकी डिज़ाइन की है जो उत्‍तर भारत की बलुआ तथा दुमट बलुआ भूमियों में अनेक सिंचाई परियोजनाओं के लिए उपयुक्‍त है। इस प्रौद्योगिकी से 5 मिलियन हैक्‍टर-मीटर सतही जल की बचत होती है जिससे 10 मिलियन हैक्‍टर अतिरिक्‍त फसल क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है और इससे देश में प्रतिवर्ष 10 मीट्रिक टन अधिक खाद्यान्‍न का उत्‍पादन होता है।

 

नाशकजीवनाशी ऑक्‍सीम ईथर, एल्‍केन पॉलियॉल एल्‍कानोऐट, एजाडिरेक्टिन तथा अवकृत एजाडिरेक्टिन सांद्र (कीटनाशी); मेन्‍कोजैब, थियोफेनेट मिथाइल प्रतिस्‍थापित ए-पाइरॉन्‍स (कवकनाशी); प्रतिस्‍थापित सगंधीय एलकीन्‍स (सूत्रकृमिनाशी), रेबडोसिया आधारित मच्‍छरों का लार्वानाशी, नीम तेल ईडब्‍ल्‍यू, डीडीटी और टेमेफॉस के जल में विसरणशील दाने, ब्‍यूटाक्लोर के प्‍लवनशील दाने, कारबेरिल ईसी और नियंत्रित रूप से विमोचित होने वाला उत्‍पाद (नाशकजीवनाशी संरूप); एजाडिरेक्टिन के लिए प्राकृतिक और कृत्रिम स्‍टेबलाइजर, डाइ और टेट्राहाइड्रोएजाडिरेक्टिन, यूरियेज़ के रूप में 5-प्रतिस्‍थापित-1,3,4-ऑक्‍साडियोज़ोन-2-थियोल्‍स और ट्राइक्‍लोरो-बैन्‍ज़ीन (नाशकजीवनाशी एडज्‍यूवेंट) जैसी प्रौद्योगिकियां व्‍यावसायीकरण के लिए उपयुक्‍त हैं।

 

भा.कृ.अ.सं. ने कृषि आधारित औद्योगिकीकरण तथा निर्यात के लिए प्रौद्योगिकी सहायता भी उपलब्‍ध कराई है। चावल की किस्‍म 'पूसा बासमती 1' से चावल मिलों का आधुनिकीकरण हुआ है और निर्यात को बढ़ावा मिला है। बढ़े हुए उत्‍पादन के माध्‍यम से बागवानी फसलों के द्वारा मूल्‍यवर्धित उत्‍पादों के प्रसंस्‍करण उद्योग व निर्यात में वृद्धि हुई है। इस संस्‍थान द्वारा वाणिज्यिक रूप से अपनाए जाने के लिए विकसित नाशकजीवनाशियों व कृषि रसायनों से संबंधित देसी प्रौद्योगिकियों के कारण निजी कृषि रसायन उद्योगों को विकास के अवसर उपलब्‍ध हुए हैं। दो जैव-संरूपों नामत: कैलीसेना एसडी और कैलीसेना एसएल को मृदावाहित रोगजनकों के नियंत्रण में प्रभावी पाया गया है और इससे पौधों की बढ़वार अच्‍छी हुई है व फसलों की उपज भी बढ़ी है। संस्‍थान ने इन जैव संरूपों के भारत में व विदेशों में विपणन के लिए यह प्रौद्योगिकी मैसर्स कैडिला फार्मास्‍यूटिकल्‍स लिमिटेड को हस्‍तांतरित की है।