संभाग की नवीनतम प्राथमिकताएं

  • लक्षित क्रियाकलापों को ध्‍यान में रखते हुए अन्‍तरविषयी प्रकृति के राष्‍ट्रीय एवं अन्‍तरराष्‍ट्रीय कार्यक्रमों को आरंभ करना।
  • राष्‍ट्रीय पैमाने पर फसल बढ़वार निगरानी प्रणाली (सुदूर संवेदन, संबंधपरक जैव-भौतिकी व सामाजिक-आर्थिक स्‍तरों व अनुरूपण मॉडलों के माध्‍यम से)
  • परम्‍परागत, अनुरूपण तथा सुदूर संवेदन युक्तियों का उपयोग करके टिकाऊ कृषि उत्‍पादन के लिए प्राकृतिक संसाधन प्रबंध (गुणनिर्धारण एवं उपयोग)
  • अनुसंधान फार्मों और किसानों के खेतों में क्षेत्र प्रयोग करके और अन्‍तत: फसल बढ़वार मॉडलों के साथ संपर्क स्‍थापित करने के लिए उपविधियां विकसित करके विभिन्‍न फसलों/फसल प्रणालियों (मुख्‍यत: चावल-गेहूं और मक्‍का-गेहूं प्रणालियों) में मृदा के गुणों में जुताई के संदर्भ में वांछित परिवर्तन लागत
  • मौसम संबंधी भविष्‍यवाणी (संक्षिप्‍त, मध्‍यम श्रेणी की तथा उग्र जलवायु/आपदा संबंधी घटनाओं) पर आधारित प्रभावी कृषि-परामर्श के आधार पर निर्णय सहायी प्रणाली का विकास
  • जलवायु संबंधी विविधता तथा इसमें होने वाले परिवर्तन का गुण निर्धारण और कृषि पर इसके संबद्ध प्रभाव
  • प्रोटीन संरचना, जीनोमिक्‍स, जीन अनुरूपण तथा मार्कर सहायी चयन के लिए जैव-भौतिकी
  • संभाग के कार्यक्रमों को सबल बनाने के लिए राष्‍ट्रीय एवं अन्‍तरराष्‍ट्रीय स्रोतों से वाह्य निधि का सृजन
  • संशोधित अधिदेश के अन्‍तर्गत एक विशिष्‍ट, उत्‍कृष्‍टता के दल व फसल बढ़वार निगरानी प्रणाली सृजित करना
  • अनुसंधान परि‍दृश्‍य में बदलाव, टिकाऊपन, विविधीकरण, भविष्‍यवाणी, पैमानों का समेकन
  • संभाग के युवा वैज्ञानिकों को प्रगत युक्तियों का प्रशिक्षण प्रदान करना तथा उन्‍हें कृषि भौतिकी के मिशन/अधिदेशों में सक्रिय रूप से शामिल करना

कृषि भौतिकी संभाग से कृषि विज्ञान में प्राप्‍त की गई प्रथम उपलब्धियां

  • 1970 में सुदूर संवेदन तकनीकों का उपयोग करके विश्‍व में पहली बार केरल में नारियल के वृक्षों में जड़ मुर्झान रोग की पहचान
  • गेहूं की उपज के लिए पूर्वानुमानों के परिशोधन में फसल बढ़वार अनुरेखन मॉडलों में सुदूर संवेदी प्राचलों को शामिल करना
  • सिंचाई जल तालाबों तथा मछली पालन तालाबों में होने वाले जल के रिसाव से प्रभावकारी बचाव के लिए इन तालाबों की तली पर बेन्‍टोनाइट की पर्त बिछाने की विधि का प्रदर्शन
  • मृदा में नमी के संरक्षण के लिए मृदा को ठोस बनाने की तकनीक का विकास और जल दाब चालकता को प्रभावी रूप से बढ़ाने व नाइट्रोजन के बेहतर उपयोग के लिए भारी मृदाओं में ढेलों को तोड़ने के लिए चिसलिंग तकनीक का विकास
  • कपास के एक्‍स-रे अपवर्तन से हर्मेन क्रिस्‍टेलाइन ओरिएंटेशन घटक की पहचान जो कपास के रेशे की शक्ति के गुणनिर्धारण का सर्वश्रेष्‍ठ सूचकांक है और उच्‍च प्रौद्योगिकी युक्‍त कपास के लिए प्रजनन कार्यक्रम का उपयोग
  • बारानी खेती के लिए गेहूं और चावल जीनप्ररूपों में सूखा सहिष्‍णुता की छटाई हेतु सूचकांकों के रूप में बीजों के समानीकृत नमी हिस्‍टेरेसिस वक्र
  • मिर्च में कैपसियासिन अंश के आकलन के लिए कॉलम क्रोमेटोग्राफिक सेपेरेशन के साथ अवशोषण वर्णक्रममापी या एब्‍ज़ार्पशन स्‍पैक्‍ट्रोस्‍कोपिक विधि
  • मृदा और पादप सामग्री से लौह तथा टाइटेनियम की अल्‍प मात्राओं के आकलन हेतु परिशुद्ध वर्णक्रममापी विधियां
  • तम्‍बाकू के पौधों में निको‍टीन एल्‍कोलाइड्स के उत्‍पादन में जल प्रणाली का प्राथमिक महत्‍व होना, इस तथ्‍य की पहचान
  • इलैक्‍ट्रोलाइट के लिए मृदा प्रणाली की विद्युत चालकता के अनुपात का प्रदर्शन जो सम-चालकता मान पर मृत्तिका प्रणाली में मौजूद मृत्तिका के अंश की मात्रा से सदैव स्‍वतंत्र होते हुए एक अलग इकाई होती है।
  • इलैक्‍ट्रॉन माइक्रोस्‍कोपी की सहायता से बड़ी संख्‍या में पौधों एवं कीटों के विषाणुओं तथा अन्‍य सूक्ष्‍म-जगत का पृथक्‍ककरण, पहचान व उनका गुण निर्धारण
  • सौर विकिरण-फसल वितान क्रियाओं और विकिरण के विभिन्‍न घटकों, विकिरण उपयोग की दक्षता तथा फसल बढ़वार पर पड़ने वाले उनके प्रभावों व अनाजों व तिलहनी फसलों की उपज पर उनके प्रभावों के संबंध में अध्‍ययनों की शुरूआत
  • जलवायु-जल संतुलन तकनीकों के आधार पर दिल्‍ली व आसपास के क्षेत्रों के लिए अनुशंसित फसल उपयुक्‍तता मानचित्रों को तैयार करना
  • ब्रैसिका की विभिन्‍न प्रजातियों के उपज व उपज गुणों के पूर्वानुमान के लिए गतिशील फसल बढ़वार अनुरूपण मॉडल-BRASSICA का विकास तथा Cambell-Diaz and SWASIM  मॉडलों से इसकी तुलना
  • मृदा नमी में होने वाले परिवर्तनों की त्‍वरित स्‍व-स्‍थानिक माप के लिए न्‍यूट्रॉन नमी मापी की उपयोगिता का प्रदर्शन जो अब भा.कृ.अ.प. के अनेक संस्‍थानों द्वारा अपनाया जा रहा है।
  • फसल मॉडलों के साथ तैयार किये गए निवेशों को सुदूर संवेदन से जोड़कर गेहूं की क्षेत्रीय उपज का पूर्वानुमान
  • फसल टिकाऊपन के साथ जोड़ने के लिए मृदा का भौतिक दर निर्धारण
  • विभिन्‍न फसलों और फसल प्रणालियों के स्‍पैक्‍ट्रल सिग्‍नेचरों को समझना

पिछले एक दशक की प्रमुख उपलब्धियां

      संभाग का मुख्‍य उद्देश्‍य मृदा पौधों व वातावरण के उन भौतिक पहलुओं का अध्‍ययन करना व उन्‍हें समझना है जो कृषि उत्‍पादकता बढ़ाने के लिए प्रासंगिक हैं। संभाग के अनुसंधान कार्यक्रमों को मृदा भौतिकी, कृषि जलवायु विज्ञान, कृषि में सुदूर संवेदन व जीआईएस का अनुप्रयोग तथा पादप जैव भौतिकी जैसे क्षेत्रों में बांटा गया है। इनकी प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं :

मृदा भौतिकी

  • किसानों को अपने खेतों में तीन वर्ष में एक बार नियमित रूप से पाटा चलाने की सलाह दी जाती है और इसके साथ ही उन्‍हें मक्‍का के पौधों को मेड़ों पर रोपने की सलाह दी जाती है, न कि पौधों के आसपास मिट्टी चढ़ाने की।
  • बहु-वर्णक्रमी रेडियो मापी उपग्रह आंकड़ों का उपयोग करके विभिन्‍न प्राकृतिक संसाधनों के गुण निर्धारण तथा मृदा में नमी के आकलन के लिए सकल सूचना अंश सूचकांक विकसित किया गया था। मृदा में नमी के अंश के आकलन के लिए ईआरएस-1 उपग्रह को बहुत उपयोगी पाया गया।
  • उपजों की भविष्‍यवाणी तथा भूमि उपयोग नियोजन के लिए सुदूर संवेदित प्राचलों का उपयोग करके डब्‍ल्‍यूटीजीआरओडब्‍ल्‍यूएस मॉडलों के निष्‍पादन में सुधार किया गया है।
  • उत्‍पादकता-संबंधित मृदा प्राचलों के साथ प्राप्‍त किये गए आईआरएस-1 बी, एलआईएसएस-II बहु-तिथि युक्‍त उपग्रह के पारस्‍परिक संबंधों का पता लगाया गया।
  • मृदा में नमी को बनाए रखने के लिए इसके आकलन तथा मृदा के घटकों से उपलब्‍ध गुणों के आधार पर सांख्यिकीय मॉडल विकसित किये गए।
  • सापेक्ष विसरण जो मृदा की क्षरण का एक सूचकांक है, प्रभावशाली ढंग से प्रदर्षित किया गया।
  • मध्‍य प्रदेश के प्रमुख मृदा समूहों का प्रतिनिधित्‍व करने वाले 14 प्रमुख मृदा विज्ञानी अंतरिक्षों के उत्‍पादकता सूचकांक व उत्‍पादकता वर्ग का मूल्‍यांकन जीआईएस पर्यावरण में मृदा के डेटाबेस का उपयोग करते हुए किया गया। मृदा की नमी, जल निकासी तथा बनावट को उत्‍पादकता के सूचकांकों को संचालित करने वाले प्रमुख घटक पाया गया।
  • बैलों से की गई गीली जुताई तथा गेहूं के भूसे को मिलाना चावल की फसल की जड्ों के विकास व दाना उपज बढ़ाने में बहुत प्रभावी पाया गया।

कृषि में सुदूर संवेदन तथा जीआईएस का अनुप्रयोग

  • उपग्रह आंकड़ों का उपयोग करके सुल्‍तानपुर (उत्‍तर प्रदेश) तथा गुड़गांव (हरियाणा) में 80 प्रतिशत परिशुद्धता के साथ गेहूं, सरसों और चना की फसलों के लिए लवणता मानचित्रण और फसल बढ़वार संवेदनशीलता संबंधी अध्‍ययन किये गए।
  • जीआईएस और सुदूर संवेदन तकनीकों का उपयोग करके सुल्‍तानपुर की लवण प्रभावित मृदाओं में गेहूं की उपज में भिन्‍नता पर मृदा और फसल प्रबंधन संबंधी कार्य किया गया।
  • गेहूं के परावर्तक वक्र की लाल कौर में प्रथम अपकर्षणशील के सर्वोच्‍च मान को नाइट्रोजन प्रतिबल का उपयोगी संकेतक पाया गया। इसी के दूसरे अपकर्ष के सर्वोच्‍च का उपयोग नाइट्रोजन की कमी के मात्रात्‍मक अनुमान के एक सूचकांक के रूप में किया जा सकता है।
  • कैंपबेल तथा डेयाज़ फसल अनुरूपण मॉडल में नाइट्रोजन प्रतिबल घटक को शामिल कर लिया गया है। बीज उपज पर नाइट्रोजन की निर्भरता को चतुर्दिक प्रकृति का पाया गया।
  • पश्‍चिमी राजस्‍थान में जल संभर के हाइड्रोजन अनुक्रिया व्‍यवहार की स्‍थानिक मॉडलिंग का पता सुदूर संवेदन व जीआईएस का उपयोग करके लगाया गया। किसी जल संभर के स्‍वास्‍थ्‍य को भी परिभाषित करते हुए उसका मात्रात्‍मक निर्धारण किया गया।
  • सुदूर संवेदन संबंधी निवेशों का उपयोग फसलों की उपज क्षमता के पूर्वानुमान को बढ़ाने के लिए फसल बढ़वार अनुरूपण मॉडलों में शामिल किया गया।

कृषि मौसम विज्ञान

  • फसलों के लिए सूक्ष्‍म जलवायु संबंधी घटकों के विभिन्‍न जैविक व अजैविक प्रतिबलों के साथ संबंध को समझा गया।
  • फसल बढ़वार के विभिन्‍न मॉडलों में फसल-मौसम अन्‍तरक्रिया को शामिल किया गया।
  • बिहार राज्‍य के बारानी कृषि वाले क्षेत्रों में सूखे का विश्‍लेषण जल संतुलन विधि का उपयोग करके किया गया।
  • सिंचाई अनुसूची की भविष्‍यवाणी के लिए एसपीएडब्‍ल्‍यू मॉडल में एनसीएमआरडब्‍ल्‍यूएफ द्वारा पूर्वानुमानित तापमान संबंधी आंकड़ों के शामिल किये जाने को तीन दिनों के लिए संतोषजनक पाया गया।
  • पिछले चार दशकों के दौरान दिल्‍ली के उत्‍तरी क्षेत्र में रबी फसलों के दौरान तापमान में 10 डिग्री सैल्सियस की वृद्धि की प्रवृत्ति देखी गई। दैनिक उच्‍चतम तापमान में अत्‍यधिक विविधता रही और साप्‍ताहिक तापमान में उतार-चढ़ाव रात्रि के समय तथा सुबह के समय बहुत अधिक पाया गया।
  • उत्‍तरी गुजरात में एस.के. नगर को बारानी खरीफ फसलों में परागोद्भव काल की अवधि के बाद जल की कमी के कारण अपेक्षाकृत शुष्‍क पाया गया। इसकी गणना जल आवश्‍यकता संतुष्टि सूचकांक से की गई।
  • जैव द्रव्‍य उत्‍पादन के केओस विश्‍लेषण को यह संकेत देने वाला पाया गया कि उन विभिन्‍न कृषि जलवायुवीय/कृषि मौसम विज्ञानी पर्यावरणीय स्थितियों के अन्‍तर्गत गुण निर्धारण के लिए उपयुक्‍त पाया जा सकता है, जिसके अन्‍तर्गत फसल विशिष्‍ट स्‍थायी उत्‍पादकता को प्राप्‍त किया जा सके।
  • फसल बढ़वार संबंधी विभिन्‍न मॉडलों में फसल-मौसम अन्‍तरक्रिया को शामिल किया गया।

पादप जैव भौतिकी

  • भा.कृ.अ.सं. फार्म की बलुआ दुम्‍मट मिट्टियों के तापीय जड़त्‍व की गणना गतिशील स्थिति के अन्‍तर्गत अस्थिर मृदा तापीय स्थितियों की निगरानी करते हुए की गई। यह तकनीक सुदूर संवेदन द्वारा पृथ्‍वी की सतह के आच्‍छादन के तापीय जड़त्‍व के मानचित्रण में अत्‍यंत मूल्‍यवान सिद्ध हो सकती है।
  • एन्‍ट्रॉपी उत्‍पादन फसल बढ़वार व विकास का एक अभिन्‍न सूचकांक है। अत: मक्‍का की सक्षम बढ़वार स्थितियों के लिए एन्‍ट्रॉपी उत्‍पादन अनुरूपण मॉडल विकसित किया गया।
  • प्रकाश संश्‍लेषण की दृष्टि से सक्रिय किरणन के वातावरण में विस्‍तार के द्वारा जमीन की सतह पर उपलब्‍ध सौर ऊर्जा का पूर्वानुमान लगाया गया।
  • कपास के गुले की प्राप्ति के प्रतिशत में वृद्धि के लिए कपास की आर्थिक दृष्टि से उच्‍च उपज के लिए उत्‍प्रेरित पोषण पर अध्‍ययन किये गए जिससे बिना किसी अतिरिक्‍त निवेश के बिनौली की उत्‍पादकता में वृद्धि हुई।
  • एक्‍स-किरण अपवर्तन द्वारा किये गए अध्‍ययन में कपास (गोसीपियम आर्बोरियम) की 24 किस्‍मों में वास्‍तविक कुंडली कोन के मान भिन्‍न-भिन्‍न पाए गए और यह भिन्‍नता चतुगुर्णित गोसीपियम हिरसुटम कपास की किस्‍मों के संबद्ध मानों की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत कम थी।
  • हरमल सेल्‍यूलोज़ क्रिस्‍टेलाइन ओरिएन्‍टेशन घटक की आनुवंशिक वंशानुगतता गोसीपियम हिसुटम और गोसीपियम बार्बेडेन्‍स प्रजातियों के अन्‍तरविशिष्‍ट F1 संकरों में प्रदर्शित की गई।

खेतों में अनुप्रयोग के लिए विकसित प्रौद्योगिकियां

      उच्‍च पारगम्‍य मोटी संरचना वाली मिट्टियों के प्रबंध हेतु संहनन प्रौद्योगिकी : 454 कि.ग्रा. के लोहे के रोलर के साथ (4-6 बार चलाकर) मोटी संरचना वाली दुमट और बलुआ दुमट मिट्टियों के संहनन के परिणामस्‍वरूप नमी के भण्‍डारण में वृद्धि हुई तथा फसलों के लिए पोषक तत्‍वों की उपलब्‍धता भी बढ़ी जिसके परिणामस्‍वरूप सरसों, मक्‍का और गेहूं की फसलों की अधिक उपज प्राप्‍त हुई।

      कम गहराई पर उच्‍च यांत्रिक कठोरता वाली परतों से युक्‍त मृदाओं के प्रबंधन के लिए चिज़ल      प्रौद्योगिकी : अलीपुर गांव की उथली पर्त पर उच्‍च यांत्रिक कठोर पर्त वाली दुमट मिट्टियों में चिज़लिंग करने के साथ-साथ जिप्‍सम मिलाने से उसका विपुल घनत्‍व कम हुआ और उप सतही पर्त की जलदाब चालकता में वृद्धि हुई। इसके साथ ही पीएच 9.1 से घटकर 8.4 हुआ तथा गैर चिज़ल स्थितियों के अन्‍तर्गत प्राप्‍त होने वाली 2.6 क्विंटल प्रति हैक्‍टर की गेहूं उपज की तुलना में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

      क्‍यारी रोपाई : 30 सें.मी. की कूंड़ और उसके बाद 37.5 सें.मी. की क्‍यारियों को रबी में गेहूं और खरीफ में मक्‍का या सोयाबीन उगाने के लिए उचित पाया गया। परम्‍परागत रोपाई की तुलना में इन फसलों को क्‍यारियों में उगाने से न केवल ईंधन और श्रम की बचत हुई बल्कि जल, बीज, उर्वरकों व नाशकजीवनाशियों की बचत हुई और इसके साथ ही फसल उत्‍पादकता या तो उतनी ही बनी रही या उससे अधिक रही।

            तालाबों में होने वाले जल के रिसाव को कम करने के लिए सिंचाई के जल भण्‍डारण तालाबों और मछ‍ली पालन तालाबों की तली में सोडियम बेन्‍टोनाइट की पर्त बिछाना प्रभावकारी पाया गया तथा इस तकनीक का प्रदर्शन किया गया।

     पौद पर पलवार बिछाने की तकनीक : पपड़ी से प्रभावित मृदाओं में पौद पर पलवान बिछाने की प्रौद्योगिकी से पौदों के अंकुरण में वृद्धि की जा सकती है। इस प्रौद्योगिकी में बुवाई के तुरंत बाद बिजाई की कतारों में 30 क्विंटल/हैक्‍टर की दर से घूरे के खाद या 20 क्विंटल/हैक्‍टर की दर से गेहूं के भूसे का उपयोग किया जाता है। इस विधि से बाजरा, ज्‍वार और कपास की पौदों के अंकुरण में वृद्धि हुई और बाजरा तथा ज्‍वार की अन्‍न उपज बढ़ने के साथ-साथ कपास की बिनौला उपज भी बढ़ी।

      फसल अपशिष्‍ट के पुन: उपयोग की प्रौद्योगिकी : एमारफोरस फेरिएल्‍यूमिना सिलिकेट की उपस्थिति के कारण मिट्टियों की प्राकृतिक कठोरता को फसल अपशिष्‍ट के पुन: उपयोग की प्रौद्योगिकी द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इस प्रौद्योगिकी में चावल की भूसी, धान के पुआल, मूंगफली के छिलकों का चूरा, बीजों की बुवाई के 15-30 दिन पूर्व या बरसात का मौसम आने पर मिट्टी में 5 टन प्रति हैक्‍टर की दर से मिलाया जाता है। फसल अपशिष्‍टों के पुन: उपयोग से बारानी, ज्‍वार, मक्‍का, रागी तथा गेहूं की दाना उपज और मूंगफली की फलियों की उपज में उल्‍लेखनीय रूप से वृद्धि हुई।

      सुदूर संवेदन, जीआईएस, अनुरूपण मॉडलों तथा संबंधित पर्तों का उपयोग करके गेहूं की क्षेत्रीय उपज के पूर्वानुमान का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया।

पुरस्‍कार/सम्‍मान

  • डॉ. नवीन कालड़ा को वर्ष 2003-04 के लिए हुकर पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।
  • डॉ. नवीन कालड़ा को वर्ष 1995 में फर्टिलाइज़र एसोसिएशन ऑफ इंडिया का धीरू मोरारजी स्‍मारक पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।
  • डॉ. नवीन कालड़ा वर्ष 1993 में रॉयल मैट्रोलॉजिकल सोसायटी, यू.के. के अध्‍येता चुने गए।
  • डॉ. नवीन कालड़ा को मृदा विज्ञान, प्राकृतिक संसाधन प्रबंध और सस्‍यविज्ञान के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट स्‍नातकोत्‍तर अनुसंधान योगदान के लिए भा.कृ.अ.प. का वर्ष 1987 के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरस्‍कार प्रदान किया गया।
  • डॉ. नवीन कालड़ा को उनके हिन्‍दी में लिखे गए सर्वश्रेष्‍ठ शोध पत्र के लिए पुरस्‍कृत‍ किया गया।
  • डॉ. नवीन कालड़ा को एशियन ब्राउन क्‍लॉउड के यूएनईपी पैनल का सदस्‍य चुना गया।
  • डॉ. ए.वी. मोहर्रिर को एनआईएससीओएम, सीएसआईआर की शासी परिषद् द्वारा इंडियन जर्नल ऑफ फाइबर एंड टैक्‍सटाइल रिसर्च के संपादकीय मंडल का सदस्‍य नामित किया गया।
  • डॉ. एन.वी.के. चक्रवर्ती को अण्‍डमान जर्नल ऑफ एग्रीकल्‍चरल रिसर्च के संपादकीय मंडल का सदस्‍य बनाया गया।
  • डॉ. एन.वी.के. चक्रवर्ती को कृषि के क्षेत्र में उनके उत्‍कृष्‍ट योगदान के लिए बायोवेद रिसर्च एंड कम्‍यूनिकेशन सेन्‍टर फैलोशिप पुरस्‍कार, 2003 से सम्‍मानित किया गया।
  • डॉ. आर.पी. अरोड़ा को 1984 के दौरान नाइट्रोजन में उर्वरक उपयोग अनुसंधान के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए सर्वश्रेष्‍ठ कार्य के लिए एफएआई सिल्‍वर जुबली अवार्ड ऑफ एक्‍सीलेंस प्रदान किया गया।
  • डॉ. (श्रीमती) यू.के. चोपड़ा को बैंगलूरू में 17-23 नवम्‍बर 1994 में आयोजित सुदूर संवेदन पर 15वें एशियाई सम्‍मेलन में सर्वश्रेष्‍ठ पोस्‍टर प्रस्‍तुतीकरण के लिए पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।
  • डॉ. वी.के. सहगल को सुदूर संवेदन व जीआईएस का उपयोग करके फसल अनुरूपण मॉडल द्वारा गेहूं की क्षेत्रीय उपज के आकलन में किये गए उनके पीएच.डी. कार्य हेतु उत्‍कृष्‍ट स्‍नातकोत्‍तर अनुसंधान के लिए वर्ष 2002 का भा.कृ.अ.प. का जवाहर लाल नेहरू पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।
  • डॉ. वी.के. सहगल को इंडियन सोसायटी ऑफ रिमोट सेंसिंग के जयपुर में 3-5 नवम्‍बर 2004 को आयोजित 24वें राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन व राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी में प्रस्‍तुत किये गए मौखिक श्रेणी के शोध पत्र के लिए सर्वश्रेष्‍ठ शोध पत्र पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।
  • श्री आर.एन. गर्ग को दूसरी अन्‍तरराष्‍ट्रीय फसल विज्ञान कांग्रेस (17-24 नवम्‍बर 1996, भारत) आयोजित करने में प्रदान की गई मूल्‍यवान सेवाओं की सराहना करते हुए एक प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
  • श्री आर.एन. गर्ग को दूसरी अन्‍तरराष्‍ट्रीय फसल विज्ञान कांग्रेस (17-24 नवम्‍बर 1996, भारत) की प्रकाशन समिति का सदस्‍य नामित किया गया।
  • श्री आर.एन. गर्ग को आन्‍ध्र प्रदेश कृषि विश्‍वविद्यालय, हैदराबाद में 5-7 जुलाई 1995 को समस्‍याग्रस्‍त क्षेत्रों में कृषि उत्‍पादन बढ़ाने के लिए मृदा भौतिकी स्थितियों में सुधार विषय पर भा.कृ.अ.प.-एआईसीआरपी की रजत जयंती कार्यशाला में उनके बहुमूल्‍य योगदान के लिए एक प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
  • डॉ. आर.एन. साहू को 2003 के दौरान इंडियन साइंस कांग्रेस एसोशिएशन का युवा वैज्ञानिक पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।
  • डॉ. देबाशीश चक्रवर्ती ने 2001 के दौरान सर्वश्रेष्‍ठ पीएच.डी. शोध प्रबंध कार्य पर इंडियन  सोसायटी ऑफ सॉयल साइंस का पुरस्‍कार प्राप्‍त किया।