इस केंद्र ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई उपयोगी कार्यात्मक अनुसंधान कार्यक्रमों को चलाया। किसानों और अन्य संस्थाओं को कृषि प्रौद्योगिकियाँ हस्तांतरित करने में कैटेट की भूमिका अग्रणी रही हैं। इस द्वारा विकसित विधियाँ और रणनीतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • सामुदायिक खेती विधि

  • संस्थान ग्राम संपर्क कार्यक्रम के जरिए प्रौद्योगिकी आकलन एवं परिशोधन

  • बीज उत्पादन कार्यक्रमों के जरिए के जरिए किसानों को उच्च उत्पादकता के बीज उपलब्ध करवाना

  • टिकाऊ फसल उत्पादन के लिए जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों पर किसान सहभागिता कार्यात्मचक अनुसंधान कार्यक्रम

  • किसान सहभागिता युक्त बीज उत्पादन

  • गेहूं के अग्रपंक्ति प्रदर्शन (FLDs)

  • आकाशवाणी पाठशाला

  • संस्थान 16 कृषि विश्वविद्यालयों और भाकृअपरिषद के संस्थानों के सहयोग से चलने वाला राष्ट्रीय प्रसार कार्यक्रम

  • स्व्यंसेवी संस्था्ओं के साथ सहभागिता कार्यक्रम

  • गावों का एकीकृत विकास और मॉडल ग्राम संकल्पना

  • नवोन्मेषी कृषक-मार्गदर्शित प्रसार डिलीवरी प्रणाली (नवोन्मेषी किसानों के माध्यम से प्रसार)

उल्लेखनीय उपलब्धियाँ:

  • सन 80 के पूर्वार्ध में पूर्वी उत्तर प्रदेश के कछारी क्षेत्रों में सरसों और चने की उपज में लगभग तीन गुना बढ़ोत्तरी कर इन फसलों में क्रांति लाई गईं। इससे राष्ट्रीय स्तर पर दलहन उत्पादन में बढ़ोत्तरी दर्ज की।

  • सन 1990 में उत्तरकाशी (अब उत्तराखंड में) भूकंप की तबाही के बाद केंद्र द्वारा किए गए तकनीकी अंतर्क्षेपणों से उस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पूसा संस्थान की प्रौद्योगिकियों का फैलाव हुआ। जिससे इस क्षेत्र के किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और जीवन स्तर में सुधार हुआ।

  • 12 प्रचालनीय क्षेत्रों में किए गए प्रक्षेत्र परीक्षणों / प्रजातीय परीक्षणों के जरिए लगभग 3000 किसान लाभान्वित हुए। धान, ज्वाार, गेहूं, सब्जीो, जैसी फसलों पर तकनीकी अंतर्क्षेपणों से किसानों को 20 प्रतिशत अधिक उपज मिली और इससे उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। इससे उनमें वैज्ञानिक उत्पादन प्रौद्योगिकियों पर विश्वास हुआ। किसानों ने पूसा 1509 को सर्वश्रेष्ठ धान प्रजाति का दर्जा दिया। गेहूं की प्रजातियाँ एच.डी. 2967 से 58 क्विं./है., एच.डी. 3086 से 60 क्विं./है. उपज प्राप्त हुई जो स्था्नीय प्रजातियों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक रही।

  • धान-गेहूं फसल प्रणाली में मूंग की प्रजाति पूसा विशाल को शामिल कर इसका सघनीकरण किया गया। इसके लिए धान की प्रजातियों को विभिन्न संयोजनों में आजमाया गया, जिनमें धान (पूसा बासमती 1121) – गेहूं (डब्यूलाभ .एच. 711) – मूंग (पूसा विशाल) ने स्थाानीय फसल चक्र धान (पी.बी.1) – गेहूं की तुलना में 45% अधिक लाभ दिया। धान - गेहूं फसल प्रणाली में सब्जीू फसल के रूप में मटर; और रबी मौसम में दलहनी फसल में चने को लेकर किए गए विविधीकरण की वजह से किसानों को 74 प्रतिशत अधिक लाभ मिला।

  • उन्नेत प्रक्षेत्र उपकरण जैसे व्हीुल हैंड हो, उन्नत हँसिया और खुरपा कम हँसिया के उपयोग से खेतिहर महिलाओं की दक्षता में 2-3 गुनी वृद्धि हुई और 1250 रू / हैक्टऔर आर्थिक लाभ भी प्राप्त हुआ।

  • सरसों की फसल में एक्वार हल के जरिए ओरोबैंकी खरपतवार के प्रबंधन का प्रदर्शन किया गया। इसके लिए बुआई पूर्व सिंचाई दिए बिना इस यंत्र के जरिए सरसों की बुआई की गई, जिसके परिणामस्वारूप खरपतवार के प्रकोप में 32-68 प्रतिशत की कमी आई और उपज में 25 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई।

  • पिछली खरीफ फसल में ग्वा।र, प्याृज और तिल की फसल लेने पर भी सरसों में ओरोबैंकी के प्रकोप में 7-10 प्रतिशत की कमी आती है। चने की फसल में एकीकृत फसल प्रबंधन अपनाया गया। इसके लिए पुष्प न के समय पर प्रति एकड़ 2-3 फेरोमोन ट्रैप लगाए गए। जब प्रतिदिन फेरोमोन ट्रैप में 15-20 वयस्कम कीट मिलने लगे, तो न्यू्क्लियर पॉलीहेड्रोसिस विषाणु (एन.पी.वी.) का छिड़काव किया गया, चने की फसल में पीड़क प्रबंधन के लिए इस विधि को प्रभावी पाया गया और इससे चने की उपज में 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

  • राजस्थान के चुरू और झुनझुनू जिलों, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले और दिल्लीं के गांवों में किसानों को समूह-क्रिया वाले तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। यहाँ आठ सहकारी समितियों और तीन किसान क्लिबों के निर्माण को बढ़ावा दिया गया, जिनमें से प्रत्येँक में किसान सदस्योंक की संख्याक 40 से 80 थी।

  • जल संरक्षण प्रौद्योगिकियों, यथा दक्षतापूर्ण सिंचाई के लिए लेज़र समतलीकरण (3 है.), धान सघनीकरण प्रणाली (9 है.), उन्नत मृदा स्वाकस्य््ष के लिए बायोगैस स्ल री का उपयोग (8 है.) आदि के प्रदर्शनों ने प्रति इकाई भूमि और प्रति इकाई जल पर टिकाऊ आधार पर उच्च फसल उत्पाकदकता प्रदान की।

  • गेहूँ (2004-05), धान (मई 2005) और कपास (जून 2005) पर आयोजित की जाने वाली पाठशालाओं ने किसानों में प्रौद्योगिकीय सूचनाओं के जनसामान्य) के स्त(र पर त्व रित हस्तांसतरण में उल्लेपखनीय भूमिकाएँ निभाईं।

  • धान की नई प्रजाति पी. 1509, 15-20 दिन पहले परिवक्व ता वाली पाई गई। इसमें बकानी के प्रकोप की कोई घटना नहीं दिखाई दी। इसकी उपज में पी. 1121 की तुलना में बढ़त नहीं मिल पाई, जबकि बदरपुर सैद में बढ़त पाई गई। इस प्रजाति के बारे में पूर्ण निष्क)र्ष पाने के लिए किसानों के खेतों पर और अधिक जाँच करना आवश्यिक है।

  •  

    धान की प्रजाति पूसा 1401 ने उल्लेेखनीय उपज प्रदर्शित की और यह बकानी से ग्रस्त् नहीं होती है।
  • पूर्वी क्षेत्रों में उच्च4 उपज, अल्पाेवधि और खुशबू के कारण पी.आर.एच.10 एक सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाली धान प्रजाति के रूप में उभरी है।

  • गैर-बासमती धान प्रजाति पी. 2511 ने उपज और अल्पाशवधि के गुणों में उत्कृ.ष्टता प्रदर्शित की।

  • जिन क्षेत्रों में पानी की समस्याी नहीं है, वहाँ धान की पी-44 प्रजाति ने सभी स्थादनीय प्रजातियों (औसत उपज 5.6 टन/है.) को पछाड़ दिया है।

  • समय पर बुआई की दशा में गेहूँ की प्रजाति एच.डी. 2967 और धान-गेहूँ फसल चक्र में एच.डी. 3086 ने सभी स्था नों पर बेहतर प्रदर्शन दिया।

  • चने की प्रजाति बी.जी.डी.-72 ने उच्चन उपज दिया परंतु उसे कम दाम मिला क्यों कि इसके दानों का रंग और आकृति को पसंद नहीं किया गया।

  • भरतपुर में मसूर एल.-4076 को के-75 की तुलना में अधिक बाजार भाव मिला क्योंमकि इसके दाने का आकार और स्वाभद बेहतर था, इसने 7 प्रतिशत अधिक उपज दी।

  • पूसा नवीन–लौकी का एक विशिष्ट बाज़ार उन जगहों में है जहाँ छोटे आकार के फल पसंद किए जाते हैं, जैसे दिल्लीस।

  • इन्हीं बाज़ारों की पसंद के कारण यह अन्ये प्रजातियों, जैसे पूसा संतुष्टि की तुलना में अधिक लाभ देती है।

  •  

    पूसा रुधिरा प्रजाति के गाजर अपने गहरे लाल रंग, अधिक मिठास और बेहतर बाजार भाव के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित किसानों के लिए लाभदायक पाई गई और किसानों ने इससे 2.23 लाख रू. प्रति हैक्ट्र तक शुद्ध लाभ कमाया है।
  • खरबूजे की प्रजाति पूसा मधुरस अपने आकार, आकृति और स्वाजद के कारण बाजार में पसंद की जाती है, अत: यह लाभदायक पाई गई है। इससे किसानों को केवल 3 माह में रू.1.85 लाख प्रति हैक्टकर तक शुद्ध लाभ मिला है।

  • धान की अल्पावधि प्रजाति पी.बी. 1509 (5.2 टन/है. तक) ने पी.बी. 1121 (4.2 टन/है.) की तुलना में अधिक उपज प्रदान की और इसमें बकानी रोग की कोई घटना रिपोर्ट नहीं की गई।

  • वर्ष 2016-17 के दौरान, गेहूँ, सरसों, मटर और गाजर की स्थान विशिष्ट उन्नत किस्मों पर प्रदर्शन लगाए गए। गेहूँ की प्रजाति एच.डी. 2967, एच.डी. 3086 और एच.डी. 3059 ने सभी मॉडल गाँवों में अच्छा प्रदर्शन किया। एच.डी. 3059 पछेती बुआई की स्थितियों के लिए उपयुक्त है और इसकी उच्च उपज और पीत रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होने के कारण किसान इस किस्म को पसंद करते हैं।

  • गाजर पूसा वृष्टि की औसत उपज (12 टन/है) रही जो किसानों की किस्मों की अच्छी औसत (11 टन/है) की तुलना में अच्छी थी। परंतु उपभोक्ताओं ने लाल रंग वाले गाजर को पसंद किया एवं कुछ स्थानों में गाजर की लंबाई अपेक्षा से कम रही। किसान गाजर की इस नई किस्म से संतुष्ट नहीं थे।

  • कैटेट के अंगीकृत गाँवों में ग्राम ज्ञान संसाधन केंद्र स्थापित किए गए ताकि किसानों को नवीनतम जानकारी और ज्ञान तक पहुँच प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जा सके। इससे वे उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों, खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन, जलवायु परिवर्तन के अनुसार अनुकूलन, विकास योजनाएँ, अनुदान आदि के बारे में अवगत हो सकें।

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा एस.एम.एस. के जरिए किसानों को प्रदान की जारी कृषि परामर्श सेवा से संबंधित फ़ीडबैक लिए गए। जानकारी और परामर्श सहायता की गुणवत्ता के बारे में धारणा का भी आकलन किया गया। यह आकलन विभिन्न मानदंडों, जैसे जानकारी की स्पष्टता, पठनीयता, समयबद्धता, खेत की परिस्थितियों में व्यावहारिकता और स्वीकार्यता के आधार पर किया गया। यह सेवा किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई है क्योंकि उन्होंने इस कृषि परामर्श सेवा को अपने लिए फायदेमंद पाया। किसानों का सुझाव था कि ध्वनि संदेश होने से निरक्षर किसानों को भी लाभ मिलेगा।

  • ग्राम राजपुर (अलीगढ़) उ.प्र. और खजूरका (पलवल), हरियाणा की 100 गैर-गर्भावस्था और गैर-दुग्धावस्था वाली प्रजनन आयु (18-45 वर्ष) वाली ग्रामीण महिलाओं में पोषण स्थिति, आहार ग्रहण और कमी संबंधी रूझानों का आकलन किया गया। यह आकलन प्रश्नावली के माध्यम से साक्षात्कार, खाद्य/पोषण ग्रहण करना, मानवमिति, और कमी के चिकित्सकीय लक्षणों का अवलोकन द्वारा किया गया, जिससे पता चला कि अधिकांश महिलाएँ दीर्घकालिक ऊर्जा न्यूनता पाए जाने के कारण कुपोषित पाईं गईं।

  • उन्नत किस्मों और भिन्न-भिन्न फसलों के प्रचार-प्रसार से ग्रामीण घरों की आहार विविधता में सुधार हुआ। उच्च उपजशील प्रजातियों को अपनाने से भी उपज में बढ़ोत्तरी हुई और इससे घरेलू स्तर पर अधिक लाभ प्राप्त हुआ।

  • नवोन्मेषी किसान-मार्गदर्शित प्रसार डिलीवरी प्रणाली (नवोन्मेषी किसानों के माध्यम से प्रसार): पूसा संस्थान ने गत 10 वर्षों में लगभग 300 प्रगतिशील किसानों को भा.कृ.अ.संस्थान-नवोन्मेषी किसान और भा.कृ.अ.संस्थान-अध्येता किसान पुरस्कार से पुरस्कृत किया है। ये किसान देश के विभिन्न भागों में रहते हैं और विभिन्न कृषि पारिस्थितिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। संस्थान ने देश के विभिन्न भागों के कुछ चयनित नवोन्मेषी/ प्रगतिशील किसानों के माध्यम से एक कृषक-मार्गदर्शित प्रसार डिलीवरी प्रणाली की शुरूआत की है। इस तरीके से नवोन्मेषी किसानों के जरिए किया जाने वाला प्रौद्योगिकी हस्तांतरण विशाल कृषक समुदाय में प्रभावी साबित हो सकता है। वर्तमान में देश के विभिन्न भागों से 20 नवोन्मेषी किसानों का चयन किया गया है और इनके जरिए यह कार्यक्रम कार्यान्वित किया जा रहा है।