उपलब्धियां :
- केंद्र ने 2001 में जोन-1 में जोनल स्तर का द्वितीय स्थान प्राप्त किया ।
- केंद्र ने 2003 में जोन-1 में जोनल स्त्र का तृतीय स्थान प्राप्त किया ।
- सन् 2008 में केंद्र को वर्ष 2005-06 के लिए राष्ट्रीय कृषि पुरस्कार से नवाजा गया ।
- रोजगारोन्मुखी एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों के द्वारा ग्रामीण युवकों द्वारा कृषि से संबंधित व्यवसायों जैसे- मधुमक्खी पालन, डेयरी फार्मिंग, केंचुआ खाद उत्पादन, खुम्ब उत्पादन तथा मोटर वाईंडिग कार्यशाला आदि को अपनाया जिससे उन्हें स्वरोजगार एवं अतिरिक्त आय हुई ।
अग्र पक्ति प्रदर्शनों का प्रभाव :
- औसतन फसलों के उत्पादन में 12 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी ।
- जिले में अरहर फसल का उत्पादन क्षेत्र 112 हैक्टेयर से ज्यादा तक बढ़ा ।
- जौ फसल के उत्पादन क्षेत्र में 2500 हैक्टेयर तक की बढ़ोतरी ।
- चना फसल का उत्पादन क्षेत्र 300 हैक्टेयर तक बढ़ा ।
- चावल-गेहूं फसल चक्र में ग्रीष्म कालीन मूंग को भी सम्मिलित किया गया ।
- अधिक आय देने वाली फसल गेंदे को 50 हैक्टेयर से ज्यादा तक किया गया
- किसानों ने पूसा संस्थान द्वारा विकसित विभन्न किस्मों जैसे धान की पूसा 1121, पूसा 1509 अरहर की पूसा 2001, पूसा 2002, चना की 1103, जौ की बी.एच.-393,गेंहू की एच.डी.-2932, एच.डी. 2967 तथा सरसों की पूसा विजय को बड़े स्तर पर अपनाया ।
- किसानों ने विभिन्न अनाजों, सब्जियों, दालों एवं फलों की खेती में समन्वित कीट प्रबंधन को अपनाना शुरू किया ।
- किसानों ने मिट्टी के जांच के परिणाम के आधार पर खादों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करना शुरू किया ।
- सिलाई-कढ़ाई द्वारा ग्रामीण महिलाओं ने सिलाई कर रु.10000 से 12000 प्रतिवर्ष आय अर्जित की जिससे महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिला ।
- केंद्र द्वारा स्वयं सहायता समूहों का गठन कर उन्हें प्रशिक्षण दिया गया उनमें से क्षितिज समूह द्वारा पूसा सोयानट उत्पाद बनाकर एवं बिक्री कर रु. 20000 से 22000 प्रति माह आय हो रही है । दूसरा समूह आरजू मसाले बनाकर एवं उनकी बिक्री कर रहा जिससे उन्हें रु. 40000 से 50000 प्रति माह की आय हो रही है ।
- सामान्य एवं निजी क्षेत्र हिस्सेदारी योजना के तहत किसानों की पंजीकृत बीज कंपनी बनवायी गई जिससे बीजों का उत्पादन शुरू किया गया ।
- अमरूद एवं किन्नों के 19 उच्च घनत्व के बाग लगवाए गए ।
- अक्टूबर 2010 में किसानों के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की शुरूआत की गई जिसके अंतर्गत किसानों को संक्षिप्त संदेशों के माध्यम से फसल, बागवानी, पशुपालन, फसल सुरक्षा तथा मौसम संबंधी जानकारी दी जा रही है । 1128 किसानों को ये संदेश भेजे जा रहे हैं ।
- केंद्र के द्वारा शहर के स्कूलों में बच्चों को कृषि की नवीनतम प्रौद्योगिकीयां सिखाई जा रही हैं उसके लिए स्कूल में फसल प्रक्षेत्र स्थापित किए गए हैं । समय-समय पर स्कूल के बच्चे केंद्र का भ्रमण कर जानकारी लेते हैं उन्हें आपसी विचार-विमर्श के द्वारा कृषि के महत्व एवं उसके भविष्य के संभावनाओं से अवगत कराया जाता है ।
- जिले के संब्जी उत्पादक किसानों के यहां केंद्र द्वारा 10 नेट हाउस तथा शैड नेट स्थापित किए गए हैं । इनके द्वारा किसान पौध तैयार कर अग्रिम समय में सब्जी की फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें अधिक आय प्राप्त हो रही है ।
- गेहूं पर आधारित फसल पद्यति के लिए 2010-11 में जल संरक्षण कृषि प्रौद्योगिकी का एक नया पदर्शन केंद्र के फार्म पर शुरू किया गया । शून्य जुताई एवं रेज्ड बैड प्लांटर का इस्तेमाल गेहूं की विशेष किस्मों डी.बी.डब्ल्यू 17, एच.डी. 2967, सी.एस. डब्ल्यू-16, सी.एस. डब्ल्यू-18 तथा पी.बी. डब्ल्यू 550 आदि के लिए किया गया ।
- पशुपालकों ने पशुओं को खनिज मिश्रण का प्रयोग करना शुरू किया जिससे पशुओं में खनिजों की कमी से होने वाली बीमारियों की रोकथाम हुई तथा दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई ।
- केंद्र पर कृषि प्रसंस्करण एवं सब्जियों एवं फलों के मूल्य संवर्धन की इकाई शुरू की गई जिसमें प्रशिक्षण के अलावा इन उत्पादों का उत्पादन किया गया ।
- डेयरी विकास कार्यक्रमों द्वारा पशुओं के दूध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई । जिले में डेयरी स्थापन को जबरदस्त बढ़ावा मिला 800 से ज्यादा मिनी डेयरी एवं 60 से अधिक हाईटेक डेयरियां स्थापित हुईं सही समय पर उचित टीकाकरण कर पशुओं में मुंहपका, खुरपका एवं गलघोंटू रोगों पर नियंत्रण किया गया जिसके फलस्वरूप पिछले 10 साल में इन रोगों का प्रकोप नहीं हुआ । समय बृद्ध कटिया कटड़ों को पेट के कीड़ों को मारने की दवा पिलाने से इनकी मृत्यु दर में काफी कमी आयी कृत्रिम गर्भाधान करने से गाय भैंसों की नस्ल में बड़े स्तर पर सुधार हुआ ।
- मोबाइल पर पशुओं के रोगों की रोकथाम से संबंधित जानकारी लेने के कारण पशुपालकों में जागरूकता आई और पशुओं में अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ दूध उत्पादन में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई ।