उपलब्धियां

फसलों की खेती

  • बरसीम को पहली बार हरे चारे के रूप में प्रयोग के लिए सुझाया गया।
  • ले-फार्मिंग की संकल्‍पना लागू की गई व उसे परिशुद्ध बनाया गया।
  • नाशकजीवनाशी : गुणवत्‍ता एवं सुरक्षा मूल्‍यांकन, 29 अक्‍तूबर-7 नवम्‍बर 2001
  • सौर ताप को न्‍यूनतम करने और फसलों की अधिक से अधिक स्‍थापना के लिए उत्‍तर-दक्षिण दिशा में मेड़ें बनाने की संकल्‍पना सफलतापूर्वक विकसित की गई।
  • चारा तथा लॉन में रोपी जाने वाली घासों की अनेक किस्‍में विकसित की गईं तथा विभिन्‍न घासों के अन्‍तरराष्‍ट्रीय संकलन की नर्सरी का रखरखाव किया गया।
  • बौने गेहूं की खेती की प्रौद्योगिकी ने पिछली शताब्‍दी के छठे दशक के मध्‍य में हरित क्रान्ति में उल्‍लेखनीय योगदान दिया।
  • चावल, गेहूं, मक्‍का, बाजरा, फलीदार फसलों, तिलहनी फसलों व सब्‍जी वाली फसलों की उच्‍च उपजशील किस्‍मों का सस्‍यविज्ञान विकसित किया गया।
  • उत्‍तरी भारत में वसंत के मौसम में सूरजमुखी की खेती का सस्‍यविज्ञान विकसित किया गया।
  • रबी मक्‍का की संकल्‍पना विकसित की गई तथा उसकी जांच उत्‍तर भारतीय स्थितियों में की गई।
  • उत्‍तर भारत के लिए खरीफ में प्‍याज की खेती की सिफारिश की गई।
  • आलू में रोगों को कम करने में पोटाश की भूमिका स्‍थापित की गई।
  • उत्‍तर भारत की स्थितियों के लिए आलू के सच्‍चे बीज का सस्‍यविज्ञान विकसित किया गया।
  • अनाज-आधारित फसल प्रणालियों में लोबिया और मूंग जैसी दोहरे उद्देश्‍य वाली दाना फलीदार फसलों को उगाने की प्रौद्योगिकी पर बल दिया गया।
  • संकर चावल के सस्‍यविज्ञान को परिशुद्ध बनाया गया और 9 टन/हैक्‍टर तक उपज प्राप्‍त की गई।
  • उच्‍च मार्फिन प्राप्‍त करने के लिए अफीम के पोस्‍ते का सस्‍यविज्ञान विकसित किया गया।
  • कपास की फसल के बाद गेहूं और सरसों की रोपाई की प्रौद्योगिकी विकसित की गई।
  • पछेती बुवाई वाली स्थितियों के अन्‍तर्गत बाजरा की रोपाई की तकनीक विकसित की गई।

बारानी सस्‍यविज्ञान

  • फसल कैफेटेरिया, फसल प्रतिस्‍थापन, कार्बनिक और अकार्बनिक उर्वरकों को उचित स्‍थान पर डालना, पलवारों के उपयोग और उत्‍स्‍वेदन रोकने वाली युक्तियों की संकल्‍पना विकसित की गई।
  • सरसों और गेहूं की बुवाई के लिए इष्‍टतम तापमान की संकल्‍पना सृजित की गई। अक्‍तूबर के मध्‍य में लगभग 26-27 डिग्री सैल्सियस औसत दैनिक तापमान पर सरसों की बुवाई करना उपयुक्‍तम पाया गया।
  • सरसों की पूसा बोल्‍ड किस्‍म को बारानी क्षेत्रों के लिए पहचाना गया और यह किस्‍म औपचारिक रूप से जारी किये जाने के पहले ही किसानों के बीच लोकप्रिय हो गई।
  • गेहूं और चने की फसलों में जलीय-बुवाई प्रौद्योगिकी से फसलों में पौधों की संख्‍या, नाइट्रोजन उपयोग की दक्षता में वृद्धि हुई और जल व पोषक तत्‍वों की उपयोग दक्षता बढ़ी जिससे इन फसलों की उच्‍च उपज प्राप्‍त हुई।
  • ग्रीष्‍म ऋतु में जुताई, खेतों में मेड़ बनाना और कार्बनिक खाद देना जैसी सुधरी हुई नमी संरक्षण तकनीकों का सुझाव विभिन्‍न फसलों के लिए दिया गया।
  • बारानी क्षेत्रों के लिए हरी खाद प्रौद्योगिकी विकसित की गई जिसमें मध्‍य अगस्‍त तक अगेती समाहन के लिए (बढ़वार के 30 दिनों तक) हरी खाद का उपयोग किया जाता है तथा ढैंचा की उच्‍च बीज दर (45 कि.ग्रा./है.) रखते हुए बुवाई की जाती है।
  • बारानी स्थितियों के अन्‍तर्गत लोबिया चारा/मूंग, जौ/सरसों जैसी खरीफ के मौसम वाली अल्‍पावधि चारा/अनाज फलियों की दोहरी फसलें लेने की संकल्‍पना विकसित की गई।     

जल प्रबंध    

  • नाजुक शरीर क्रियाविज्ञानी अवस्‍थाओं के आधार पर सिंचाई अनुसूचीकरण की संकल्‍पना विकसित की गई।
  • बौने गेहुओं में चंदेरी जड़े निकलने की अवस्‍था में पहली सिंचाई करने पर बल दिया गया।
  • ड्रम कल्‍चर तकनीक द्वारा चावल में जल निकासी की आवश्‍यकता के आकलन की संकल्‍पना विकसित की गई। इससे उपज में कमी लाए बिना फसल की पानी में खड़े रहने की गहराई 10 सें.मी. से घटाकर 3-5 सें.मी. रह गई और इस प्रकार जल के उपयोग में किफायत हुई।
  • आयतन के आधार पर सिंचाई की अनुसूची हेतु संकन स्‍क्रीन इवेपोरीमीटर की संकल्‍पना सृजित व विकसित की गई। इससे आईडब्‍ल्‍यू : सीपीई अनुपात की संकल्‍पना विकसित हुई।
  • स्‍वस्‍थाने मृदा में नमी का पता लगाने के लिए टेन्सियोमीटर तथा जिप्‍सम ब्‍लॉक जैसी विभिन्‍न युक्तियां विकसित की गईं तथा उपयुक्‍तता के लिए उनका परीक्षण किया गया।
  • विभिन्‍न फसलों में सुधरी हुई जुताई व बुवाई की विधियों के माध्‍यम से सिंचाई जल के उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियां तैयार की गईं।

पोषक तत्‍व प्रबंध

  • नाइट्रोजन स्थिर करने की क्षमता बढ़ाने में बरसीम तथा अन्‍य फलीदार फसलों में फास्‍फेट उर्वरक डालने का महत्‍व सिद्ध किया गया।
  • फसल उत्‍पादकता बढ़ाने तथा मिट्टी के स्‍वास्‍थ्‍य को बनाए रखने के लिए हरी खाद के महत्‍व को सिद्ध किया गया है।
  • उर्वरक संबंधी साधारण परीक्षण आरंभ किये गए जिनसे बाद में जटिल उर्वरक परीक्षणों को तैयार किया गया। इसके परिणामस्‍वरूप अखिल भारतीय समन्वित सस्‍यविज्ञानी अनुसंधान परियोजना का सृजन हुआ।
  • ऊतक परीक्षण तथा पोषक तत्‍वों को पौधों की पत्तियों पर डालने की तकनीकें विकसित की गईं।
  • फलीदार फसलों पर आधारित फसल प्रणाली में उर्वरकों की खुराक कम करके नाइट्रोजन की बचत का मात्रात्‍मक आकलन किया गया।
  • ट्रेसर अध्‍ययनों का उपयोग करके बहु फसलीय प्रणालियों में नाइट्रोजन और फास्‍फोरस उपयोग की दक्षता का मूल्‍यांकन किया गया तथा इन उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण किया गया।
  • 15N  तथा  32P आइसोटोपों के उपयोग के साथ उर्वरक उपयोग की दक्षता से संबंधित अध्‍ययनों के उल्‍लेखनीय परिणाम प्राप्‍त हुए।
  • यूरिया उर्वरक के लेपन हेतु नीम के संरूप विकसित किये गए। पूसा नीम गोल्‍डन यूरिया तथा नीम बिटर कोटेड यूरिया से सिंचित चावल में नाइट्रोजन उपयोग की दक्षता में वृद्धि हुई तथा उत्‍पादकता भी बढ़ी।
  • खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्‍वों की बचत और मृदा उर्वरता को बनाए रखने के लिए ल्‍यूसिना की हरी पत्तियों की खाद के प्रयोग की अनुशंसा की गई।
  • अनाजों, फलीदार फसलों और तिलहनों की उच्‍च उत्‍पादकता के लिए फलियों में राइज़ोबियम, अनाजों में एजोटोबैक्‍टर तथा एजोस्पिरिलम, फास्‍फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवों तथा वीएएम जैसे जैव उर्वरकों के उपयोग पर बल दिया गया।
  • अनाज, चारे या हरी खाद के लिए फलीदार फसलों के माध्‍यम से होने वाले नाइट्रोजन के योगदान का पता विभिन्‍न अनाज आधारित फसल प्रणालियों में लगाया गया।
  • नाइट्रोजन निरोधक तथा नाइट्रोजन को धीरे विमोचित करने वाले उर्वरक विकसित करके उनकी जांच की गई।
  • चावल-गेहूं प्रणाली में समेकित पोषक तत्‍व प्रबंध के विशेष संदर्भ में क्रमबद्ध कार्य आरंभ किया गया।
  • विभिन्‍न फसल प्रणालियों में फसल अपशिष्‍टों के पुनश्‍चक्रण व प्रबंध, कार्बनिक खादों और जैव उर्वरकों के उपयोग की अवधारणा सृजित की गई तथा उर्वरकों का उपयोग इष्‍टतम बनाने के लिए इसका परीक्षण किया गया।
  • मुल्‍तानी मिट्टी को वाहक बनाकर नीली हरी काई के धान के खेतों में उपयोग से प्रति हैक्‍टर 20-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की बचत हुई।
  • सोयाबीन की फसल में नाइट्रोजन, फास्‍फोरस व पोटाश की अनुशंसित खुराकों के साथ घूरे की खाद तथा जस्‍ते के उपयोग से इस फसल की उपज क्षमता में वृद्धि हुई।
  • निम्‍न श्रेणी के शैल फास्‍फेट के प्रत्‍यक्ष उपयोग की प्रौद्योगिकियां विकसित की गईं।

जुताई एवं खरपतवार प्रबंध

  • फसलों की जुताई संबंधी आवश्‍यकता तथा न्‍यूनतम जुताई की संकल्‍पना पहली बार विकसित की गई।
  • विभिन्‍न फसलों में पोषक तत्‍व में सुधार और जल उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिए कूंड़ सिंचित उठी हुई क्‍यारी प्रणाली विकसित की गई। इस प्रणाली की मसूर, मटर व मैथी की फसलों में व्‍यावहारिकता का पता लगाया गया।
  • स्‍थानिक जल भराव की स्थितियों के अन्‍तर्गत उठी हुई क्‍यारियों में फसलें उगाने की संकल्‍पना विकसित की गई। उच्‍च वर्षा वाले वर्षों में सोयाबीन की फसल में इष्‍टतम पौधों की संख्‍या व उत्‍पादकता प्राप्‍त करने के लिए क्‍यारी में रोपाई की तकनीक विकसित की गई।
  • रासायनिक खरपतवार नियंत्रण की संकल्‍पना खोजी गई। गेहूं जैसी फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली बार 2,4-डी का उपयोग किया गया।
  • व्‍यापक श्रेणी के शाकनाशी, मैथाबेन्‍जथियाजुरान का उपयोग आरंभ किया गया तथा गेहूं की फसल में फैलेरिस माइनर, जंगली जई तथा चौड़ी पत्‍ती वाले खरपतवारों के विरूद्ध इसके प्रभाव का मूल्‍यांकन किया गया।
  • लागत को न्‍यूनतम करने तथा मृदा में अपशिष्‍ट की समस्‍या से निपटने के लिए फसलों की कतारों में शाकनाशियों के पट्टियों में उपयोग की संकल्‍पना विकसित की गई।
  • मैट्रीब्‍यूजिन तथा सोडियम क्‍लोराइड के छिड़काव से पार्थिनियम का नियंत्रण किया गया।
  • प्रभावी खरपतवार नियंत्रण और पोषक तत्‍वों की बचत के लिए स्‍टेल बीज-क्‍यारी प्रणाली विकसित की गई।
  • मक्‍का पर सिमेज़ीन की कम खुराकों के अनुरूपण प्रभाव को सिद्ध किया गया।
  • खरपतवारों के नियंत्रण के लिए मृदा सौरीकरण (खेतों को धूप में खुला छोड़ना) की संकल्‍पना विकसित की गई।
  • सभी प्रमुख फसलों तथा फसल प्रणालियों के लिए समेकित खरपतवार प्रबंध के उपाय विकसित किये गए।

फसल प्रणाली एवं फार्मिंग प्रणाली

  • स्‍थानिक और क्षेत्रीय संदर्भ में 400 प्रतिशत गहनता से युक्‍त रिले फसल प्रणाली की संकल्‍पना तैयार की गई (मक्‍का-आलू-गेहूं-मूंग)।
  • सफल बहु-फसली प्रणाली के लिए मूंग की पूसा बैसाखी किस्‍म को रिले फसल प्रणाली का एक महत्‍वपूर्ण घटक माना गया।
  • बहु-मंजिली फसल प्रणाली की संकल्‍पना सृजित की गई।
  • सदियों पुरानी मिश्रित फसल प्रणाली को जुड़वा प्रकार रोपाई प्रणाली को शामिल करके सुधारा गया। इस प्रणाली में अल्‍प अवधि में तैयार होने वाली फलीदार व तिलहनी फसलों को बाजरा, ज्‍वार तथा मक्‍का जैसी अनाज वाली फसलों में अन्‍तरफसल के रूप में उगाया गया।
  • बारानी क्षेत्रों के लिए मक्‍का + मूंग, गेहूं + मसूर, सरसों + चना आदि जैसी उन्‍नत अन्‍तरफसल प्रणालियों को अपनाने का सुझाव दिया गया।
  • सिंचित क्षेत्रों के लिए खरीफ मक्‍का + मूंग, रबी मक्‍का + पालक, मूंगफली + सूरजमुखी, फेनल + मेथी जैसी अन्‍तरफसल प्रणालियां अपनाने का सुझाव दिया गया।
  • बैंगन + फेनल फसल प्रणाली को सर्वाधिक लाभदायक पाया गया।
  • चावल-गेहूं फसल प्रणाली का चावल-गेहूं-मूंग, चावल-आलू-मूंग या चावल-बरसीम फसल प्रणालियों के रूप में विविधीकरण सर्वाधिक लाभदायक और टिकाऊ पाया गया।
  • फसल प्रणालियों के विविधीकरण और मृदा की उर्वरता में सुधार के लिए सोयाबीन की अनुशंसा की गई।

उन्‍नत यंत्र/औजार

  • प्‍याज की हो
  • शर्मा हो
  • बैलों से चलने वाला उर्वरक व बीज रोपाई यंत्र
  • सरन मिनी पाइपर रोपाई यंत्र
  • सरन निराई-गुड़ाई यंत्र