सब्जी फसलों में सुधार पर किए गए अनुसंधान को चार प्रमुख घटकों नामत: (i) उत्पादकता और क्वालिटी के लिए प्रजनन (ii) विषमांगता प्रजनन (iii) जैविक बाधाओं के विरूद्ध प्रतिरोधिता के लिए प्रजनन (iv) अजैविक बाधाओं के विरूद्ध प्रतिरोधिता के लिए प्रजनन, में विभाजित किया गया है। इसके अलावा ये, भौतिकीय अध्ययन, पोषणिक आवश्यकताएं, कटाई-उपरांत प्रौद्योगिकी आदि भी अनुसंधान के प्रमुख घटक हैं।
संस्थान द्वारा विकसित की गई उन्नत किस्मों और संकर F1 से निजी बीज उद्योगों को काफी प्रोत्साहन मिलेगा जिससे देश के सब्जी उगाने वाले क्षेत्रों के लगभग 75 प्रशित क्षेत्रों में पूसा संस्थान की किस्मों को उगाया जा सकेगा। सितम्बर 2003 तक 43 सब्जी फसलों की 161 किस्मों और 24 F1 संकरों का विकास किया गया और व्यावसायिक खेती के लिए उन्हें जारी किया गया।
खुली परागित किस्मों की सूची
फसल किस्में*
चौलाई छोटी चौलाई, बड़ी चौलाई, पूसा कीर्ति, पूसा किरन, पूसा लाल चौलाई
पेठा पूसा उज्ज्वल
एस्पर्गस परफेक्शन
चुकंदर क्रिमसन ग्लोब, डेट्रॉइट डार्क रेड
करेला पूसा दो मौसमी, पूसा विशेष
लौकी पूसा समर प्रोलिफिक लौंग, पूसा समर प्रोलिफिक राउन्ड, पूसा नवीन, पूसा संदेश
बैंगन पूसा पर्पल लौंग, पूसा पर्पल राउण्ड, पूसा पर्पल कलस्टर, पूसा क्रान्ति, पूसा भैरव, पूसा उपकार, पूसा उत्तम, पूसा बिन्दु, पूसा अनुपम, पूसा अंकुर
ब्रोकोली पूसा ब्रोकोली केटी एस-1
ब्रूसल स्प्राउट हिल्ड्स आइडियल
बंदगोभी गोल्डन एकड़, पूसा ड्रम हेड, पूसा मुक्ता, पूसा अगेती
गाजर नानटेस, चानटेनी, पूसा केसर, पूसा मेघाली, पूसा यमदाग्नि
फूलगोभी पूसा कात्की, पूसा दीपाली, डी-96, पूसा शरद, पूसा शुभ्रा, पूसा हिमज्योति, स्नोबॉल-16, पूसा स्नोबॉल-1, पूसा स्नोबॉल-2, पूसा स्नोबॉल के-1, पूसा मेघना
सेलेरी स्टैंडर्ड बियरर, फोर्ड हुक एम्परर, राइट्स ग्रोव जाइन्ट
बथुआ पूसा बथुआ-1
मिर्च एनपी 46ए, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार
ग्वार पूसा मौसमी, पूसा सदाबहार, पूसा नौबहार
लोबिया पूसा फाल्गुनी, पूसा बरसाती, पूसा दोफसली, पूसा कोमल
खीरा जेपनीज़ लौंग ग्रीन, स्ट्रेट-8, पूसा उदय
मेथी पूसा अर्ली बंचिंग, पूसा कसूरी
फ्रांसबीन पूसा पार्वती, केन्टुकी वंडर, पूसा हिमलता
मटर असौजी, अर्ली बेजर, लिटिल मार्वेल, आर्केल, मिटिओर, अर्ली जाइन्ट, एनपी 29, बोनविले, सिल्विया, लिंकन, पूसा प्रगति
गांठ गोभी व्हाइट विएना, पर्पल विएना
सेम पूसा अर्ली प्रोलिफिक, पूसा सेम-2, पूसा सेम-3
लेट्यूस ग्रेट लेक्स, चाइनीज़ येलो
तरबूज पूसा शरबती, पूसा मधुरा, डीएमडीआर-2
सरसों पूसा साग-1
भिंडी पूसा मखमली, पर्किन्स लौंग ग्रीन, सेल-2, सेल-6, पूसा सावनी, पूसा ए-4
प्याज पूसा रेड, अर्ली ग्रेनो, पूसा रत्नार, पूसा व्हाइट फ़्लेट, पूसा व्हाइट राउंड, पूसा माधवी
ब्राउन स्पेनिश
पालक ऑल ग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पूसा भारती
लाल शिमलामिर्च केटी-पीएल-19
पार्सले मॉस-कर्ल्ड, हम्बर्ग
कद्दू पूसा विश्वास, पूसा विकास
मूली पूसा देसी, पूसा रश्मि, पूसा चेतकी, पूसा हिमानी, जेपनीज़ व्हाइट, व्हाइट इसीक्ली, रेपिड रेड, व्हाइट टिप्ड
चचिंडा पूसा नसदार
स्नैप मेलन पूसा शानदार
पालक वर्जीनिया सेवॉय, आस्ट्रेलियन
तौरी पूसा चिकनी, पूसा सुप्रिया, पूसा स्नेहा
घीया अर्ली येलो प्रोलिफिक, आस्ट्रेलियन ग्रीन
शिमलामिर्च केलिफोर्निया वंडर, योलो वंडर
शकरकंदी पूसा सफेद, पूसा लाल, पूसा सुनहरी
टमाटर पूसा रुबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा-120, पूसा गौरव, बेस्ट ऑफ ऑल, ला-बोनिता, इम्प्रूव्ड लाल मेरठी, मारग्लोब, सिऑक्स, रोमा, इटेलियन रेड पियर, पूसा रेड प्लम, पूसा उपहार, पूसा शीतल, पूसा सदाबहार, पूसा रोहिणी
शलगम पर्पल व्हाइट ग्लोब, पूसा स्वीटी, स्नोबॉल, गोल्डन बॉल, पूसा स्वर्णिमा, पूसा चंद्रिमा, पूसा कंचन, अर्ली मिलन रेड
तरबूज शुगर बेबी, असहायी यामातो, पूसा बेदाना, न्यू हेम्पशायर मिडगेट
विंटर बीन पूसा सुमीत
*इस सूची में भा.कृ.अ.सं. के क्षेत्रीय केन्द्रों और संभागों में विकसित किस्में भी शामिल हैं।
F1 संकरों की सूची
फसल F1 संकर
बैंगन पूसा हाइब्रिड-5, पूसा हाइब्रिड-6, पूसा हाइब्रिड-9, पूसा अनमोल
करेला पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2
लौकी पूसा मेघदूत, पूसा मंजरी, पूसा हाइब्रिड-3
बंदगोभी पूसा सिंथेटिक*
शिमलामिर्च पूसी दीप्ति*
फूलगोभी पूसा अर्ली सिंथेटिक, पूसा सिंथेटिक, पूसा हाइब्रिड-2, डीसीएच-541
खीरा पूसा संयोग*
खरबूजा पूसा रसराज
कद्दू पूसा हाइब्रिड-1
घीया पूसा अलंकार*
टमाटर पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हाइब्रिड-4, पूसा हाइब्रिड-8, पूसा दिव्या*
भा.कृ.अ.सं., क्षेत्रीय केन्द्र, कटराईं द्वारा विकसित संकर
जैविक दबावों की प्रतिरोधी किस्में/संकर
फसल किस्म/संकर प्रतिरोधी/सहिष्णु
बैंगन पूसा भैरव फॉम्फोसिस अंगमारी
पत्ता गोभी पूसा ड्रम हैड, पूसा मुक्ता ब्लैक लैग, काला रतुआ
फूलगोभी पूसा शुभ्रा, पूसा स्नोबॉल के-1 काला रतुआ, कर्ड ब्लाइट
मिर्च पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार सीएमवी, टीएमवी और पर्ण संकुचन कॉम्प्लेक्स
लोबिया पूसा कोमल जीवाण्विक अंगमारी
सेम पूसा सेम-2, पूसा सेम-3 विषाणुरोग, जैसिड, एफिड (फुदका) और फल छेदक (बेधक)
खरबूजा डीएमडीआर-1, डीएमडीआर-2 सीजीएमएमवी, सीजीएमएमवी
भिंडी पूसा सावनी, पूसा ए-4 वाईवीएम विषाणु, वाईवीएम विषाणु, प्ररोह एवं फल बेधक
टमाटर पूसा-120, पूसा हाइब्रिड-2 जड़गांठ सूत्रकृमि, जड़गांठ सूत्रकृमि
*इस सूची में भा.कृ.अ.सं. के क्षेत्रीय केन्द्रों कटराई तथा करनाल में विकसित किस्में भी शामिल हैं।
अजैविक दबावों की प्रतिरोधी किस्में/संकर
फसल किस्म/संकर विशेष गुण
पत्ता गोभी पूसा अगेती उच्च ताप के प्रति सहिष्णु
गाजर पूसा मेघाली शीतोष्ण प्रकार की, उच्च तापमान के तहत उत्स्फुटन (बोल्टिंग) व बीज जमाव
फूलगोभी पूसा हिमज्योति* निचली पहाड़ी क्षेत्रों में गोभी का फूल मई में पूसा मेघना विकसित हो जाता है। उष्ण और आर्द्र मौसम में खेती के लिए उपयुक्त
पालक पूसा हरित* मैदानी भागों में उत्स्फुटन (बोल्ट) नहीं होता है।
मूली पूसा चेतकी, पूसा हिमानी* उच्च तापमान के प्रति सहिष्णु
टमाटर पूसा शीतल, पूसा सदाबहार निम्न तापमान के प्रति सहिष्णु
पूसा हाइब्रिड-1
शलगम पूसा स्वीटी गर्म और आर्द्र परिस्थितियों के प्रति सहनशील
*भा.कृ.अ.सं., क्षेत्रीय केन्द्र, कटराईं द्वारा विकसित संकर
फसल किस्में/संकर विटामिन/मिनरल में रिच
अमरनाथ पूसा किरन, पूसा कीर्ति विटामिन ए एवं सी, लौह, कैल्शियम
पूसा लाल चौलाई
लौकी पूसा हाइब्रिड-1 विटामिन सी, कैल्शियम, लौह
ब्रॉड बीन पूसा सुमित प्रोटीन
गाजर पूसा मेघाली, पूसा यमदाग्नि विटामिन ए
बथुआ पूसा बथुआ-1 विटामिन ए एवं सी, लौह, कैल्शियम
फ्रांसबीन पूसा पार्वती प्रोटीन
मटर आर्केल प्रोटीन
सेम फली पूसा सेम-2 प्रोटीन
सरसों पूसा साग-1 केरोटीन एवं विटामिन सी
पालक पूसा ज्योति तथा पूसा भारती विटामिन ए एवं सी, लौह, कैल्शियम
कद्दू पूसा हाइब्रिड-1 और पूसा विकास विटामिन ए
टमाटर पूसा उपहार, पूसा हाइब्रिड-2 और विटामिन सी
पूसा रोहिणी
रणनीतिपरक अनुसंधान
महत्वपूर्ण मात्रात्मक व गुणात्मक गुणों के आनुवंशिकीय अध्ययन जैसे संकर ओज, संयोजन योगयता, लिंग अभिव्यक्ति और जीन क्रिया (गुणों का वंशानुक्रमण) सभी महत्वपूर्ण शाकीय फसलों के संबंध में किया गया।
फूलगोभी के जनन द्रव्य के बारे में किए गए विस्तृत अन्वेषण के फलस्वरूप यह मत बना कि भारतीय फूलगोभी एक अलग समूह से संबंधित है और यूरोपियन फूलगोभी की किस्मों से एकदम भिन्न है। बिल्कुल सरल चयन द्वारा और बाद में शायद पुनर्संयोग के विभिन्न यूरोपीय किस्मों में संकरण के परिणामस्वरूप भिन्न-भिन्न परिपक्वता वाले समूह तैयार किए गए। भारतीय फूलगोभी की किस्मों स्व-असंगत वंशक्रमों का विकास किया गया जिनका इस्तेमाल संकर बीज उत्पादन में किया जाएगा।
खीरे और खरबूजे के किए गए विस्तृत केरियोटाइप विश्लेषण से यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया कि क्रमश: एशिया और अफ्रीका में इनके विकास के लिए दो भिन्न विधियां अपनाई गईं। एन्ज़ाइम के इलेक्ट्रोफोरेटिक विश्लेषण से पता चला कि जीनस कुकुमिस की दो जातियों के बीच बहुत कम समानता है। खरबूजे में लिंग प्रकारों के वंशानुक्रमण का विस्तार से अध्ययन किया गया और खीरे में स्थिर उभयस्त्रीलिंगी वंशक्रमों का विकास किया गया।
लघु दिवसीय प्याज पूसा रेड के नर वंध्यकरण और मेन्टेनर वंशक्रमों को अलग करने से निकट भविष्य में F1 संकरों को विकसित करने में सहायता मिलेगी।
कद्दू के पश्चगामी (रिसेसिव) जीन मार्करों को अलग किया गया। इनका उपयोग व्यावसायिक स्तर पर संकर बीज उत्पादन में किया जाएगा।
फसल एवं बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी और साथ ही शाकीय फसलों की कटाई के बाद की प्रौद्योगिकी
उत्तर मैदानी भागों के लिए खरीफ की प्याज की उत्पादन प्रौद्योगिकी
मैदानी भागों में खरीफ की फसल में उगाने के लिए एक उपयुक्त किस्म एन-53 का चयन और सिफारिश की गई।
बीज की बुवाई : मई के आखिर से जून तक
रोपण समय : अगस्त का मध्य
कटाई : दिसम्बर-जनवरी
उपज : 150-200 क्विं/है.
खीरा वर्गीय सब्जियों की उपज बढ़ाने के लिए पौध बढ़वार नियामकों तथा लिंग-अभिव्यक्ति हेर-फेर के लिए रसायनों का प्रयोग करना
महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्न प्रकार से हैं :
खीरा : एमएच तथा ईथ्रल = 100 से 200 पीपीएम तक
लौकी : ईथ्रल = 100 पीपीएम
खरबूजा : ईथ्रल = 150 से 250 पीपीएम तक
करेला : एमएच = 150 पीपीएम
बोरॉन = 4 पीपीएम
तरबूज : टीआईबीए = 25 पीपीएम
बोरॉन = 3 पीपीएम
मौलिन्डेनम = 3 पीपीएम
कद्दू : ईथ्रल = 100 से 200 पीपीएम तक
तौरई और चचिंडा : ईथ्रल = 200 पीपीएम
नोट : पौधों में जब 2 पत्तियां और चार पत्तियां निकलें तो स्प्रे करें।
उत्तरी मैदानी भागों में फ्रांसबीन की सफल खेती के लिए बुवाई के समय का मानकीकरण :
किस्म : पूसा पार्वती, कन्टेन्डर, प्रिमीयर और ट्वीड वंडर
बुवाई का समय
(क) वसंत का मौसम : जनवरी का आखिरी हफ्ता तथा फरवरी का पहला हफ्ता
(ख) पतझड का मौसम : अक्तूबर का पहला हफ्ता
भा.कृ.अ.सं. द्वारा विकसित मूली की किस्मों से वर्षभर उत्पादन :
किस्में रोपण की अवधि कटाई की अवधि
पूसा देसी अगस्त-अक्तूबर सितम्बर-दिसम्बर
पूसा रेशमी सितम्बर-नवम्बर अक्तूबर-जनवरी
जेपनीज़ व्हाइट अक्तूबर-दिसम्बर दिसम्बर-फरवरी
पूसा हिमानी अप्रैल-अगस्त मई-सितम्बर
भा.कृ.अ.सं. द्वारा विकसित फूलगोभी की किस्मों से लगभग वर्षभर उत्पादन :
परिपक्वता समूह किस्म बुवाई का समय फूलगोभी तैयार होने का समय
अगेती-1 पूसा अर्ली मई के अन्त में अगस्त-अक्तूबर के अन्त में
सिन्थेटिक
अगेती-2 पूसा केतकी जून अक्तूबर-नवम्बर
पूसा दीप्ति
मध्य अगेती पूसा हाइब्रिड-2 जुलाई-अगस्त नवम्बर-दिसम्बर
पूसा शरद
मध्य पछेती पूसा सिन्थेटिक अगस्त के अन्त में दिसम्बर-जनवरी
पूसा शुभ्रा
पछेती पूसा स्नोबॉल-1 सितम्बर-अक्तूबर जनवरी-मार्च
पूसा स्नोबॉल
के-1
उत्तरी मैदानों में अगेती फसल के मौसम में टमाटर की फसल उगाने की सफल प्रौद्योगिकी
किस्में : पूसा शीतल तथा पूसा सदाबहार
बुवाई का समय : सितम्बर के अन्त में और नवम्बर के शुरू में
गोभी तैयार होने का समय : मध्य फरवरी
औसत उपज : 300-400 क्विं/है.
कुक्करबिटों की बे-मौसमी नर्सरियां उगाने के लिए कम लागत वाली पॉली हाउस प्रौद्योगिकी तथा सोलेनेसी कुल की सब्जियों से उच्च लाभ
पॉली हाउस पॉलीथीन की चादर (200 गेज़) से बना एक शून्य ऊर्जा कक्ष है जिसे सुतली और कीलों की सहायता से बांस द्वारा बनाया जाता है। इसका आकार आवश्यकता तथा स्थान की उपलब्धता पर निर्भर करता है। सूर्य की किरणों से पारदर्शी पॉलीथीन की चादर के माध्यम से पॉली हाउस के अन्दर का तापमान 6-10 डिग्री सैल्सियस बढ़ जाता है और इसलिए पॉली हाउस के अन्दर का पर्यावरण दिसम्बर और जनवरी के महीनों में भी गर्म हो जाता है। इसलिए फरवरी के पहले हफ्ते के दौरान जब पाले का डर खत्म हो जाता है तो नर्सरी में उगाई गई खीरा वर्गीय और सोलेनेसी कुल की सब्जियां खुले मैदानों में बुवाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इस प्रौद्योगिकी के कारण किसान एक से डेढ़ महीने पहले तुड़ाई कर सकते हैं और बसंत-ग्रीष्म ऋतु के समय बाजार में सब्जियां बेच कर अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं।
टमाटर, बैंगन, लौकी और कद्दू की संकर बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी
बैंगन और टमाटर के लिए
1. रोपण क्षेत्र : 2/3 मादा पैतृक के लिए तथा 1/3 नर पैतृक के लिए
2. पौध से पौध की दूरी : मादा पैतृक के लिए 75 60 से.मी., नर पैतृक के लिए 60 60 सें.मी.
3. नर और मादा पैतृकों की बीच की दूरी कम से कम 100 मी. अलग ब्लाकों में होनी चाहिए।
4. स्वस्थ फसल लेने के लिए सामान्य तरीकों (बुवाई पद्धतियों) को ही अपनाना चाहिए।
5. नर और मादा दोनों ही प्रकार की फूली हुई कलियों, जिनमें अगले दिन फूल आने की संभावना है, को बोरी आदि से ढक देना चाहिए ताकि उनमें संदूषण न हो जाए।
6. बधियाकरण या तो शाम के समय और परागण के अगले दिन या परागण होने के दिन सुबह-सुबह कर देना चाहिए।
7. परागण करने से पहले पराग को सुबह-सुबह ही इकट्ठा करके पेट्री डिश में कुछ समय तक रख दें।
8. संकरण के बाद फल के जमने तक फूलों को संदूषण से बचाना चाहिए।
9. संकरित फलों को ठीक से एकत्र करने और उनसे बीज निकालने तक पूरी सावधानी रखनी चाहिए।
10. बीजों को छाया में सुखाएं।
कद्दू और लौकी के लिए
व्यावसायिक स्तर पर इन सब्जियों के संकर बीज उत्पादन के लिए मादा पैतृकों से सभी नर फूल वाली कलियों को चुनकर अलग कर दें और प्राकृतिक संकर परागण के लिए मादा पैतृक के निकट ही नर पैतृक को उगने दें। सक्रिय संकर परागण और बीज उपज के लिए मादा पैतृक पौधों की प्रत्येक तीन पंक्तियों के बाद नर पैतृक पौधों की एक पंक्ति लगाएं। मादा पैतृक पौधे के पके हुए फलों को तोड़ने के बाद उनसे F1 बीज निकाले जा सकते हैं। यहां यह सुझाव दिया जाता है कि कम से कम 500 मीटर के घेरे में खीरा वर्गीय सब्जियों की कोई भी किस्म न उगाई जाए।
उच्च लाभ लेने के लिए मैदानी भागों में प्रमुख असामान्य विदेशी सब्जियों की उत्पादन प्रौद्योगिकी
शाकीय विज्ञान संभाग ने असामान्य या आमतौर पर उगाईन जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण सब्जियों जैसे ब्रोकोली, चाइना बंदगोभी, लीक, लेट्यूस सेलेरी, पार्सले, चेरी, टमाटर आदि की उत्पादन प्रौद्योगिकी के मानकीकरण में अग्रणी स्थान हासिल कर लिया है। ये महत्वपूर्ण विदेशी सब्जियां न केवल पौष्टिक और महानगरों में और पर्यटक स्थलों पर खूब बिकने वाली सब्जियां हैं अपितु इनका निर्यात मूल्य भी बहुत अधिक है जिससे कि उत्पादनकर्ता को बहुत अधिक आय और लाभ मिलता है। इन सब्जियों से संबंधित उत्पादन प्रौद्योगिकी इस संभाग में बुलेटिन के रूप में उपलब्ध है। इसके साथ ही इनके बीज भी यहां से लिए जा सकते हैं।
भण्डारण के दौरान आलुओं में अंकुर निकल आते हैं। इसके नियंत्रण के साथ-साथ बढ़वार नियामकों सीआईपीसी और कम लागत वाले वाष्पीकरण से (ठंडे किए गए) शीतित भंडार गृहों के निर्माण की प्रौद्योगिकी।
आलुओं में अंकुरण को 3 माह तक (अप्रैल-जून) नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए उन पर 0.5 प्रतिशत के सीआईपीसी (आइसोप्रोपाइल N3 क्लोरोफिनायल कार्बामेट) के सांद्रण का स्प्रे करके वाष्पीकृत शीतल भंडार गृह में रख दिया जाना चाहिए। आलुओं पर यह रसायन 10 मि.ली./1 कि.ग्रा. की दर से छिड़कना चाहिए और भंडारित करने से पहले आलुओं को सुखा लेना चाहिए।
फूलगोभी को 40 से. पर दो माह तक सफलतापूर्वक भंडारित करने के लिए पहले क्लिंग फिल्म में लपटेने तथा अन्य उपचारों की प्रौद्योगिकी ।
पहले क्लिंग फिल्म में लपेटने से शीत भण्डार गृहों में (40 सै. तथा 85% R.H.) भंडारित की गई फूलगोभी 60 दिनों तक सुरक्षित रह सकती है। केवल 2 प्रतिशत से भी कम भार कम होता है और संवेदी स्तर 4-प्वाइंट स्केल पर 3 से भी ऊपर ही रहता है।
बैंगन में पेड़ी निकलना-रेटूनिंग
खरीफ की स्टैन्डर्ड फसल को दिसम्बर और जनवरी माह में 3-4 हल्की सिंचाई देकर पाले और ठंड से बचाया जाता है। जनवरी के अन्तिम सप्ताह या फरवरी के पहले सप्ताह में जब पाले का खतरा दूर हो जाता है तो खड़ी फसल के पौधों की ऊंचाई 30-40 सें.मी. रखकर उनकी कटाई-छटाई कर दी जाती है। पौधों की देखरेख और उनके सुरक्षा संबंधी उपाय समय-समय पर आवश्यकतानुसार दिय जाते हैं। मार्च के मध्य से फलों की अतिरिक्त तुड़ाई की जा सकती है जिससे उत्पादनकर्ताओं को उच्च लाभ प्राप्त हो सकता है। इस पद्धति को अपनाने से ग्रीष्म ऋतु में उगाई गई बैंगन की नई फसल की अपेक्षा रेट्न फसल 30 से 40 प्रतिशत अतिरिक्त आय हो सकती है।
दियारा भूमि और नदी तल क्षेत्र में खीरा वर्गीय सब्जियों की खेती
खीरा वर्गीय सब्जियों को सर्दी के मौसम में नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। इससे गैर-मौसम में भी ये सब्जियां मिल सकती हैं। मानसून के दौरान प्रत्येक वर्ष ताजी कांप और चिकनी मिट्टी जाम होने से नदिया के तटवर्ती भागों में सब्जियों की खेती बहुत अच्छी तरह से होती है। उत्तरी मैदानी भागों में नवम्बर से मार्च माह के दौरान दियारा क्षेत्र में लम्बी टैप जड़ वाली होने के कारण खीरा वर्गीय सब्जियां उगाने के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं।
भण्डारण के दौरान आलुओं में अंकुर निकल आते हैं। इसके नियंत्रण के साथ-साथ बढ़वार नियामकों सीआईपीसी और कम लागत वाले वाष्पीकरण से (ठंडे किए गए) शीतित भंडार गृहों के निर्माण की प्रौद्योगिकी।
आलुओं में अंकुरण को 3 माह तक (अप्रैल-जून) नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए उन पर 0.5 प्रतिशत के सीआईपीसी (आइसोप्रोपाइल N3 क्लोरोफिनायल कार्बामेट) के सांद्रण का स्प्रे करके वाष्पीकृत शीतल भंडार गृह में रख दिया जाना चाहिए। आलुओं पर यह रसायन 10 मि.ली./1 कि.ग्रा. की दर से छिड़कना चाहिए और भंडारित करने से पहले आलुओं को सुखा लेना चाहिए।
फूलगोभी को 40 से. पर दो माह तक सफलतापूर्वक भंडारित करने के लिए पहले क्लिंग फिल्म में लपटेने तथा अन्य उपचारों की प्रौद्योगिकी
पहले क्लिंग फिल्म में लपेटने से शीत भण्डार गृहों में (40 सै. तथा 85% R.H.) भंडारित की गई फूलगोभी 60 दिनों तक सुरक्षित रह सकती है। केवल 2 प्रतिशत से भी कम भार कम होता है और संवेदी स्तर 4-प्वाइंट स्केल पर 3 से भी ऊपर ही रहता है।