भा.कृ.अ.सं. क्षेत्रीय केन्द्र, इंदौर (मध्य प्रदेश)

डॉ. एस. वी. साईं प्रसाद
अध्यक्ष
फोन : 0731-2702921
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वर्ष 1946-47 में रतुए की महामारी से नर्मदा घाटी में गेहूं की फसल पूर्णत: नष्ट हो गई थी जिसके परिणामस्वरूप मध्य भारत के लिए गेहूं सुधार कार्यक्रम की योजना बनाने की महती आवश्यकता अनुभव की गई और इस प्रकार, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 1951 में इंदौर में क्षेत्रीय केन्द्र की स्थापना की, जो अब इस क्षेत्र में गेहूं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। यह केन्द्र गेहूं रतुआ नियंत्रण की समन्वित परियोजना के अंतर्गत आरंभ हुआ था जो डॉ. बी.पी.पाल के नेतृत्व में भा.कृ.अ.सं., नई दिल्ली के अंतर्गत कार्यरत था। इसका लक्ष्य भारत की बारानी स्थितियों के लिए कठिया या ड्यूरम गेहूं की रतुआ रोधी किस्मों का विकास करना था।
संस्थान ने कठिया और चपाती वाले गेहूं की रतुआ प्रतिरोधी अनेक किस्में विकसित कीं। केन्द्र द्वारा शुरुआत में विकसित की गई। कठिया या ड्यूरम गेहूं की कुछ किस्में हैं : एनपी संख्या 401, 404, 406 और 412 । चपाती वाले गेहूं की शुरुआत की किस्मों में एनपी 832 के दाने मुलायम 'पिस्सी' किस्म के थे, जबकि एनपी 839 और एनपी 842 के दाने कठोर थे। शीघ्र ही सत्तर के दशक के दौरान मेघदूत (एचआई 7483) मुक्ता (एचआई 385) और सुजाता (एचआई 617) विकसित की गई।
इस केन्द्र ने मध्य भारत में कठिया गेहूं की खेती की खोई हुई गरिमा को वापस लौटाया और 1994-2005 की अवधि के दौरान चार उन्नत कठिया किस्में विकसित कीं, नामत: मालवश्री (एचआई 8381), मालवशक्ति (एचआई 8498), मालव रत्न (एचडी 4672) तथा मालव कीर्ति (एचआई 8627)। डॉ. एच.एन.पाण्डे के नेतृत्व में 1997 से इस केन्द्र ने मध्य प्रदेश में कठिया गेहूं को अत्यधिक लोकप्रिय बनाया जिसके परिणामस्वरूप यह राज्य कठिया गेहूं के संदर्भ में 'एईजैड' (कृषि निर्यात क्षेत्र) के रूप में घोषित किया गया। प्रजनन कार्य के अतिरिक्त इंदौर में अनुसंधान दल रतुआ प्रतिरोध की आनुवंशिकी, ताप की कार्यिकी और सूखा प्रतिरोध के साथ-साथ गेहूं-सोयाबीन फसल प्रणाली में कम लागत वाली गेहूं की खेती की प्रौद्योगिकी के विकास में संलग्न है।

अधिदेश
बारानी क्षेत्रों के लिए गेहूं के जननद्रव्य का रखरखाव एवं मूल्यांकन और प्रजनना
गेहूं के काले और भूरा रतुओं के प्रतिरोधी स्रोतों की पहचान और प्रतिरोधी किस्में विकसित करने में इन स्टॉकों का उपयोग।
रतुआ प्रतिरोधी, उच्च उपजशील और श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली कठिया गेहूं की किस्मों के प्रजनन में राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदान करना।