भा.कृ.अ.सं., आरबीजीआरसी, क्षेत्रीय केन्द्र, अदुतुरै, तमिलनाडु

डॉ. एम. नागराजन
प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक
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पिछली शताब्दी के साठ के दशक के मध्य में नई दिल्ली स्थित भा.कृ.अ.सं. के प्रजनकों ने चावल में शटल प्रजनन की आवश्यकता महसूस की। मौसमों के न होने पर संस्थान के वैज्ञानिकों ने अदुतुरै स्थित तत्कालीन चावल अनुसंधान केन्द्र में अपने प्रजनन वंशक्रमों को उगाया व उनका चयन किया। उन्होंने दीर्घावधि वाले प्रकाश संवेदी वंशक्रमों के साथ संकरीकरण भी किया। ये वे वंशक्रम थे जो भा.कृ.अ.सं. में खरीफ के मौसम में पुष्पित नहीं होते थे। आगे चलकर इन प्रजनकों ने अपने श्रेष्ठ प्रजनन वंशक्रमों का नाशकजीवों और रोगों के विरुद्ध प्रतिरोध, उपज क्षमता और अनुकूलनशीलता के लिए मूल्यांकन करना आरंभ किया। कई वर्षों के दौरान इस कार्यक्रम में मिली सफलता के परिणामस्वरूप 1981 में इसी परिसर में एक स्थायी सुविधा की स्थापना की गई और ऐसा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान व तमिल नाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर के बीच हुए एक समझौता ज्ञापन के अंतर्गत किया गया। बाद में इसे चावल प्रजनन और आनुवंशिकीय अनुसंधान केन्द्र का नाम दिया गया और इसका उद्देश्य रबी मौसम (दिसम्बर से मई) के दौरान चावल की फसल के लिए शटल प्रजनन की सुविधा उपलब्ध कराना था।

 

अधिदेश

  • संस्थान के मुख्य चावल प्रजनन कार्यक्रमों को गैर-मौसमी सुविधा उपलब्ध कराना।
  • मुख्यालय के अन्य संभागों के सहयोग से मूलभूत व रणनीतिपरक अनुसंधान करना।