डॉ. एस. के. चक्रबर्ती बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
अध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक
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फैक्स : 011-25841428
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बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संभाग का उदगम 1961 में तत्कालीन वनस्पति विज्ञान संभाग में स्थापित बीज परीक्षण प्रयोगशाला से हुआ था जिसकी स्थापना रॉकफेलर फाउंडेशन की वित्तीय सहायता से की गई थी। वर्ष 1968 में इसे 'बीज प्रौद्योगिकी संभाग' के रूप में प्रौन्नत किया गया, ताकि इस क्षेत्र में अनुसंधान किया जा सके व प्रशिक्षण दिया जा सके। वर्ष 1984 में यह बीज विज्ञान संभाग के रूप में उभरा, ताकि बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रगत क्षेत्रों में अनुसंधान किया जा सके और प्रशिक्षण एवं स्नातकोत्तर शिक्षा प्रदान की जा सके।
संभाग में बीजोत्पादन, प्रमाणीकरण, परीक्षण, गुणवत्ता मूल्यांकन, भंडारण, कार्यिकी, कीटविज्ञान और रोगविज्ञान के क्षेत्रों में उत्कृष्ट अनुसंधान किए गए। वर्तमान में, यह संभाग देश में बीज प्रौद्योगिकी अनुसंधान करने, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों को मार्गदर्शन प्रदान करने व राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव संसाधन सृजित करने के लिए शिक्षण और प्रशिक्षण देने हेतु 'उत्कृष्टता के केन्द्र' के रूप में उभरा है। इसके अतिरिक्त यह संभाग बीजोत्पादन, भंडारण, गुणवत्ता मूल्यांकन, परियोजनाओं के मूल्यांकन, नियोजन एवं कार्यान्वयन, पाठ्यक्रम विकास (स्नातकोत्तर शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए) के क्षेत्रों में परामर्शदायी सेवाएं भी उपलब्ध कराता है। यह संभाग भा.कृ.अ.सं. के करनाल, कटराईं, पूसा (बिहार), इंदौर स्थित क्षेत्रीय केन्द्रों व नई दिल्ली स्थित बीज उत्पादन इकाई में इस संस्थान द्वारा प्रजनित किस्मों के नाभिक/प्रजनक/ प्रमाणित बीजोत्पादन तथा अनुरक्षण एवं प्रजनन के लिए तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्ध कराने के लिए भी उत्तरदायी है। इस संभाग की अध्यक्ष किस्म विमोचन, अधिसूचीकरण, प्रमाणीकरण आदि पर केन्द्र एवं राज्य स्तर की विभिन्नज समितियों की सदस्य हैं और बागवानी फसलों एवं खेत फसलों की नई किस्मों/संकरों को जारी करने, नियमों को निर्धारित करने, विनियमों को बनाने, बीज प्रमाणीकरण से संबंधित नीतियां तय करने, बीज नियम लागू करने, पादप किस्म सुरक्षा आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
 
इस संभाग ने चुनी हुई फसलों में संकरों पर अनुसंधान एवं विकास प्रयासों के प्रवर्धन पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नेटवर्क परियोजना के नियोजन एवं कार्यान्वयन में अग्रणी भूमिका निभाई है और ऐसा 11 समन्वयन केन्द्रों के माध्यम से किया गया है। चुनी हुई फसलों के संकरों में रोगमुक्त बीजोत्पादन तथा परागण गतिकी के साथ-साथ बीजोत्पादन प्रौद्योगिकी के मानकीकरण पर भी इस संभाग में गहन अनुसंधान किया गया है। संभाग में 1976 से 2006 तक भा.कृ.अ.प. की राष्ट्रीय बीज परियोजना भी कार्यरत रही, ताकि नाभिक/प्रजनक बीज उत्पादन के साथ-साथ बीज प्रौद्योगिकी में मूल अनुसंधान करते हुए नेतृत्व प्रदान किया जा सके। संभागाध्यक्ष ने इस कार्यक्रम का 1994 तक समन्वयन किया।

संभाग की बुनियादी ढांचे संबंधी सुविधाओं को रॉकफॉलर फाउंडेशन, इंडो-डैनिश परियोजना, भारत-यू.के. सहयोगात्मक परियोजना, जापानी अनुदान परियोजना तथा एनएटीपी (भा.कृ.अ.प.) के माध्यम से सबल बनाया गया।

  • भारत में बीज उद्योग की तेजी से होने वाली प्रगति को ध्यान में रखते हुए इस संभाग में बीज प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अल्पकालीन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करने का शुभारंभ हुआ और आगे चलकर 1978 में बीज क्षेत्र, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, आदि में लगे कार्मिकों के लिए एक वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम आरंभ किया गया। पूर्णकालिक एम.एससी. और पीएच.डी. पाठ्यक्रमों की शुरुआत क्रमश: 1983 और 1994 में हुई।