पुष्पविज्ञान एवं भूदृश्य निर्माण विभागडॉ. एस. एस. सिंधु
अध्यक्ष एवं प्राध्यापक
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प्रति इकाई अधिक लाभ तथा सभी अवसरों पर 'अपनी बात पुष्पों के माध्यम से कहने' की बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारण परंपरागत खेत फसलों से व्यावहारिक विविधीकरण की दृष्टि से पुष्पों की खेती का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। यद्यपि पुष्पों को उगाने की कला भारत के लिए नई नहीं है तथापि, बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक स्तर पर इनकी खेती तथा पॉली हाउसों में इनकी संरक्षित खेती भारत में अपेक्षाकृत नई है। विपुल आनुवंशिक विविधता, विभिन्न प्रकार की कृषि जलवायु संबंधी परिस्थितियों बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न मानव संसाधन के कारण भारत में इस क्षेत्र में विविधीकरण के नए मार्ग प्रशस्त हैं जिनका अभी तक पर्याप्त रूप से दोहन नहीं हुआ है। विश्व व्यापार संगठन के युग में विश्व बाजार के खुल जाने के कारण पुष्पों तथा पुष्पोत्पादों का विश्व भर में स्वतंत्र रूप से आवागमन संभव है।

इस संदर्भ में प्रत्येक देश को प्रत्यकी देश की सीमा में व्यापार करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। विश्व स्तर पर 140 से अधिक देश पुष्पों की फसलों की खेती में लगे हुए हैं। विभिन्न देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका पुष्पों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। जहां प्रति वर्ष 10 बिलयन डॉलर से अधिक के पुष्पों की खपत होती है। इसके बाद उपभोग के मामले में जापान का स्थान है जहां प्रति वर्ष 7 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के पुष्पों की खपत होती है। भारत का भविष्य में बेहतर स्कोप है क्योंकि उष्णकटिबंधीय पुष्पों की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है और भारत जैसे देश द्वारा इसका लाभ उठाया जा सकता है क्योंकि हमारे यहां देशी वनस्पति जगत में उच्च स्तर की विविधता उपलब्ध है।

पुष्प हमारे देश के समाज में गहराई से जुड़े हुए हैं और इनके बिना कोई भी समारोह पूर्ण नहीं होता है। हमारा घरेलू उद्योग प्रतिवर्ष 7-10 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रहा है। इस वर्ष 300 करोड़ रुपये का टर्न ओवर था जिसमें केवल दिल्ली का ही योगदान 50 करोड़ रुपये का था और इसके बाद बंगलुरु का स्थान था जहां का टर्न ओवर 45 करोड़ था। फूलों की खेती का क्षेत्र एक लाख हैक्टर से अधिक हो गया है और इनमें से अधिकांश क्षेत्र तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पुष्प विज्ञान के अनुसंधान में विशिष्ट स्थान रखता है और यहां 1933 में ही डॉ. बी.पी.पाल जैसे उत्कृष्ट वैज्ञानिकों ने पुष्पों पर अनुसंधान कार्य किया था। वर्ष 1983 में अलग पहचान मिलने के बाद से ही पुष्पविज्ञानएवं भूदृश्यनिर्माण संभाग में परंपरागत और जैवप्रौद्योगिकीय युक्तियों का उपयोग करके फसल सुधार पर सुनियोजित और वृहत अनुसंधान कार्यक्रम चलाए गए, पुष्पों का खुले और संरक्षित पर्यावरणों में उत्पादन किया गया और कृषक समुदाय के लाभ केलिए प्रौद्योगिकियों का प्रसार किया गया। संभाग के अधिदेश इस प्रकार हैं :

  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए विश्व व्यापार संगठन के युग में विश्व स्तर के कर्तित फूलों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन हेतु बेहतर प्रौद्योगिकीय पैकेज का विकास
  • घरेलू तथा निर्यात बाजार के लिए भारतीय पुष्पविज्ञान को बढ़ावा देना
फूलों की खेती के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र तथा फूलों का उत्पादन बढ़ाना।