पादप रोगविज्ञान

डॉ. रश्मि अग्रवाल
अध्यक्ष

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पादप रोगविज्ञान संभाग 100वर्ष से अधिक पुराना है। मूल रूप से इसकी स्थापना भारत में कवक एवं पादप रोगविज्ञान संबंधी अनुसंधान आरम्भ करने के लिए वर्ष1905में पूसा,बिहार में, इम्पीरियल कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कवकविज्ञान अनुभाग के रूप में की गई थी। इस संस्थान का नई दिल्ली में स्थानान्तरण होने के पश्चात, वर्ष 1943-44 में इसके अनुभाग दर्जे का उन्नयन कर इसे कवकविज्ञान संभाग और वर्ष 1947-48 में कवकविज्ञान एवं पादप रोगविज्ञान संभाग तथा बाद में इसे पादप रोगविज्ञान संभाग का नाम दिया गया था। पादप विषाणुओं के संबंध में अनुसंधान हेतु दो क्षेत्रीय केन्द्रों, एक पुणे (महाराष्ट्र) और दूसरा कालिम्पोंग (पश्चिम बंगाल) की क्रमशः वर्ष 1939 एवं वर्ष1956 में स्थापना की गई।

रोग नैदानिकी, रोगजनकों की पहचान एवं रोग संबंधी जोखिमों का प्रबंधन करना, इस संभाग के प्रमुख कार्य कर रहे हैं। विगत वर्षों के दौरान, यह संभाग चार मुख्य अनुभागों अर्थात कवकविज्ञान, कवक रोगविज्ञान, जीवाणु विज्ञान एवं विषाणु विज्ञान के साथ विकसित हुआ है। पादप रोगविज्ञान संभाग में हर्बेरियम क्रिप्टोगैमी इंडी ओरिएंटेलिस (एचसीआईओ) एवं भारतीय प्ररूप संवर्ध संग्रह (आईटीसीसी), प्रगत संकाय प्रशिक्षण केन्द्र (सीएएफटी) तथा ऊतक संवर्धन द्वारा उगाए गए पौधों के विषाणु-सूचीकरण के लिए संदर्भित केन्द्र, “लाइफ लाइन” हैं। इस संभाग में उच्च कोटि का प्रशिक्षित वैज्ञानिक, तकनीकी एवं फील्ड स्टाफ है। यही पादप रोगजनकों की नैदानिकी (डायाग्नोसिस) एवं उनके लक्षण-वर्णन हेतु कार्य करने के लिए उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाएं, इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी, जीनोम की क्लोनिंग, इलेक्ट्रोफोरेसिस, अनुक्रमण (सीक्वेंसिंग), रोगों के निदान हेतु पीसीआर, ऊतक संवर्धन, पादप रूपांतरण आदि की सुविधाएं मौजूद हैं।

 

अधिदेश

  • पादप रोगों की जांच, पहचान करने और प्रबंधनार्थ मूलभूत एवं अनुप्रयुक्त अनुसंधान करना
  • पादप रोगविज्ञान में स्नातकोत्तर शिक्षा एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में शेक्षिणिक उत्कृष्टता के लिए एक केन्द्र के रूप में सेवा प्रदान करना
  • नई अवधारणाओं एवं प्रौद्योगिकियों के विकास के माध्यम से पादप रोगविज्ञान संबंधी अनुसंधान में राष्ट्रीय नेतृत्व उपलब्ध कराना।