सेस्क्रा विभाग
डॉ. भूपिन्दर सिंह
अध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक
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निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या, गहन फार्मिंग वाले क्षेत्रों में उत्पादकता में फार्म स्तर पर ठहराव, निर्धनता के वैश्वीकरण, निम्न आय, अल्प पोषण तथा कृषि पर्यावरण के धीरे-धीरे अपघटन के परिणामस्वरूप भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए जोखिम उत्पन्न हो गया है। हाल के वर्षों में खाद्यान्न के अतिरिक्त भंडारण के बावजूद और अधिक उत्पादन करने की आवश्यकता है। हमें भूमि के लिए बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा तथा गैर-कृषि क्षेत्र द्वारा जल एवं अन्य संसाधनों के उपभोग किए जाने के कारण उतनी ही या उससे कम भूमि पर अतिरिक्त मात्रा में खाद्यान्न का उत्पादन करना होगा।

 

हाल के वर्षों में मानवीय क्रियाकलापों के बढ़ जाने के परिणामस्वरूप ऐसी अनेक पर्यावरण संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं जिनका खाद्य प्रणालियों पर अत्यंत गहन प्रभाव पड़ने की संभावना है। ग्रीन हाउस गैस हाउसों के बढ़ने के कारण वैश्विक ऊष्मन से फसल उत्पादकता तथा करोड़ों लोगों की आजीविका सुरक्षा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित हो सकती है। देश के विभिन्न भागों में तेजी से हुए उद्योगीकरण तथा शहरीकरण से अनुपचारित व्यर्थ जल सृजित हुआ है जो अक्सर सिंचाई के लिए प्रयुक्त होने वाले जल क्षेत्रों में जस का तस छोड़ दिया जाता है। परिनगरीय क्षेत्रों में स्थापित उद्योगों जैसे ताप ऊर्जा संयंत्रों से बड़ी मात्रा में एरोसॉल्स का उत्सर्जन हो रहा है। इन सभी से दिन-प्रतिदिन मृदा, वायु और जल प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है जिससे कृषि पारिस्थितिक प्रणालियों की संरचना एवं कार्य प्रणाली प्रभावित हो रही है।

कम होते हुए संसाधनों के संदर्भ में निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पन्न करना कठिन हो गया है। विशेषकर, प्रतिकूल पर्यावरणीय परिवर्तन के परिदृश्य में इस पर ध्यान देना बहुत अनिवार्य है। इसके लिए जहां हमें पर्यावरण के अपघटन को न्यूनतम करना होगा, वहीं पर्यावरण को सुधारने पर विशेष ध्यान देना होगा। आने वाले वर्षों में कृषि के लिए यही प्रमुख कार्य है। पर्यावरण के परिदृश्य में इसके लिए परिवर्तन की निरंतर निगरानी, खाद्य प्रणालियों पर होने वाले परिवर्तनों के प्रभाव के मूल्यांकन, हमारे पर्यावरण पर कृषि संबंधी क्रियाकलापों के प्रभावों तथा कृषि पारिस्थितिक प्रणालियों द्वारा पर्यावरण को पुन: अनुकूल बनाने के लिए अवसरों के उपयोग जैसे पहलुओं पर विशेष ध्यान देना होगा। इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में 1993 में पर्यावरण विज्ञान संभाग की स्थापना हुई। इस संभाग का मिशन और अधिदेश निम्नानुसार हैं :

मिशन

निम्न के माध्यम से परिवर्तित होते हुए पर्यावरण के प्रति भारतीय कृषि का अनुकूलन
  • परिवर्तन की निरंतर निगरानी
  • परिवर्तन का प्रभाव मूल्यांकन
  • अनुकूलन तथा उपचारात्मक कार्यनीतियों का विकास
अधिदेश
  • टिकाऊ कृषि उत्पादकता एवं पर्यावरण के लिए संसाधन प्रबंध पर व्यावहारिक और कार्यनीतिपरक अनुसंधान करना।
  • कृषि-पर्यावरण अंतर-संबंधों पर स्नातकोत्तर शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • कृषि के पर्यावरण की निगरानी और प्रभाव मूल्यांकन पर परामर्शदायी एवं सलाहकार सेवाएं उपलब्ध कराना।